Sunday 28 January 2018

विष्णु के दस अवतार - कॅप्टन अजीत वाडकायिल


यह पोस्ट निम्न लिंक के पोस्ट का हिन्दी अनुवाद है:-

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2012/05/ten-avatars-of-vishnu-capt-ajit.html


दशावतारम -
कॅप्टन अजीत वाडकायिल
 
इस पोस्ट में मेरा मक्सद हिंदू पौराणिक कथाओं के बारे में वेटिकन द्वारा फैलाए गए झूठ को सही करना है .

यह याद रखना चाहिए कि भारतीय लोग 800 वर्षों तक गुलाम थे, पहले हमलावर मुसलमानों के और फिर हमलावर ईसाइयों के .

भारतीय इतिहास को नष्ट करना आक्रमणकारियों के लिए उचित था . गौतम बुद्ध को जानबूझकर विष्णु अवतार के रूप में रखने का प्रयास किया गया है। ऐसा नहीं हो सकता। बुद्ध एक भारतीय थे और वह एक मात्र नश्वर(mortal) थे।

बुद्ध ने वैदिक ज्ञान आम आदमी के लिए उपलब्ध कराया . वेदों  पर ब्राह्मणों का एकाधिकार था . वे दावा करते थे कि 'वेदों का ब्रह्मान' उनके लिए संदर्भित था .

यह ग़लत है .

वेदों के अनुसार ब्रह्मान का मतलब है मृगजिन्साक चेतना क्षेत्र(morphogenetic consciousness field) .

यह संस्कृत भाषा में 5000 ईसा पूर्व में (आज से 7000 साल पहले) ऋग वेद में लिखा गया था . उस दौरान बाकी दुनिया के लोग भोजन के लिए जानवरों का डंडे से शिकार करते थे, अंधेरी गुफाओं में रहते थे और अजीब आवाज़ों में संवाद करते थे .

 

दुनिया ने चेतना(कॉन्षियसनेस) का अर्थ तभी समझा जब जर्मन निवासी वर्नर हैसेंबेर्ग भारत में शांतिनिकेतन में आए और इस सिद्धांत को समझे जिसके फलस्वरूप उन्हें नोबेल पुरस्कार से नमाज़ा गया .
 

हाइजेनबर्ग, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक रोथसचाइल्ड द्वारा भारत की चोरी किस गई वैदिक ग्रंथों का उपयोग कर रहा था।


बुद्ध ने सिर्फ हिंदुत्व को प्रतिबिंबित किया और खुद के लिए शोहरत प्राप्त की। उन्होंने दाहिनी ओर वाले वैदिक चिह्न स्वास्तिक को उल्टा कर दिया और इसे बाहिनी ओर वाला स्वास्तिक बना दिया . ऐसा हो ही नहीं सकता कि विष्णु का एक अवतार स्वास्तिक को उल्टा कर दे जो कि शिवजी के पुत्र गणेश की हथेली पर है।

कुछ हिंदू स्रोतों ने बुद्ध को छोड़कर बलराम को यहाँ घुसा दिया है . यह फिर ग़लत है . हमें अपनी समझ का प्रयोग करना चाहिए . बलराम कृष्ण के बड़े भाई थे, जो कि विष्णु के अवतार थे। एक ही समय में दो विष्णु अवतार होने का कोई मतलब नहीं है .

अयप्पा ही गुमशुदा अवतार है . अयप्पा कृष्ण और कलकी के बीच का अवतार है . विकिपीडिया के अनुसार अयप्पा विष्णु के पुत्र हैं जो कि झूठ है .


विष्णु  के दस अवतार यह हैं:-
1.मत्स्य(मछली)
2.कूरमा(कछुआ /कासव)
3.वराहा(सुअर /डुककर)
4.नरसिम्हा(मानव शेर)
5.वामन(बौना /ठेंगू)
6.परशुराम(क्रोधित पुरुष,कुल्हाड़ी वाला राम)
7.राम(उत्तम पुरुष ,अयोध्या का राजा)
8.कृष्ण(दिव्य राजनेता)
9.अयप्पा
10.कल्कि(महान योद्धा,अंतिम अवतार).

 
अयप्पा कौन? बहुत से उत्तर भारतीय ये पूछ रहे होंगे . हर दक्षिण भारतीय जानता है अय्यप्पा कौन है . केरल में 5.5 करोड़ लोग सबरीमाला की तीर्थ यात्रा पर जाते हैं। अयप्पा मूर्ति भगवान परशुराम द्वारा स्थापित की गई थी . google में टाइप करें:
SABARIMALA , MAKARA VILAKKU- VADAKAYIL .
 
वह एक भगवान था जो अभी बहुत कम उम्र में गायब हो गया था। मिस्रियों ने उन्हें एक आगंतुक देवता इम्होटेप के रूप में माना(एक मास्टर हीलर / एक ईश्वर जो शांति लाने आया था) - जो हमेशा मेरू की कुंजी(key to meru) रखता है .


वैटिकन और मैक्स मुलर ने कहा है कि ट्रोजन युद्ध सबसे पहले महायुद्धों में से एक था, जबकि उन्हें मालूम था की रामायण और महाभारत के दो महायुद्ध 2000 साल पहले हो चुके थे. 

महाभारत युद्ध 4000 ईसा पूर्व में हुआ और रामायण युद्ध 4200 ईसा पूर्व में हुआ। बहुत सारे पात्र दोनों युद्धों में थे . सातवे अवतार भगवान राम ने लंका के राजा रावण के साथ रामायण युद्ध लड़ा था.


आम धारणा के विपरीत,रावण बुरा आदमी नहीं था . उन्होंने युद्ध हारा और एक 'हारे हुए' बन गये. यदि उन्होंने युद्ध जीता होता, तो दशहरा में हम रावण की बजाय भगवान राम पे ज्वलंत तीरों की शूटिंग कर रहे होते . वैसे विष्णु अवतार कभी नहीं हारते .

 
रावण एक वैदिक विद्वान थे। उन्के एक सिर में दस सिरों के जितना ज्ञान था. इसलिए,उनके हमेशा दस सिर दिखाए जाते हैं.
रावण वेदों को बहुत अच्छी तरह से जानते थे . इसलिए  वैटिकन और मैक्स मुलर के मुताबिक वेदों का 1700 ईसा पूर्व में लिखा जाना एक झूठ है.

ऋग वेद को 5000 ईसा पूर्व में लिखा गया था।

 
रावण पे वापिस आता हूँ--

कोई यूरोपीय अपने बच्चे का नाम हिट्लर नहीं रखेगा . उस बच्चे को स्कूल में भी प्रवेश नहीं मिलेगा और वह रैगिंग और हेज़िंग का शिकार होगा। इसी तरह कोई भी समझदार भारतीय अपने बेटे का नाम टीपू सुल्तान या औरंगजेब नहीं रखेगा.लेकिन कई दक्षिण भारतीय हैं जो अपने बच्चे का नाम रावण रखते हैं।

माया दानव जिन्होने सूर्य सिद्धान्त लिखा था, और त्रिपुरा (अटलांटिस) के वास्तुकार थे , वे मन्दोद्रि के पिता थे जो की रावण की पत्नी थी . माया ने रावण की राजधानी,लंकापुरी को भी बनाया. द्रोणाचार्य के पिता महर्षि भारद्वाज थे। रावण के उड़न तश्तरी विमन उनके बड़े आधे भाई कुबेर के थे। युद्ध के बाद,राम ने विमान कुबेर को वापिस दे दिया . कुबेर की माँ भारद्वाज की बेटी थी .

पद्‌म पुराण को रावण के दादा महर्षि पुल्यास ने भीष्म को सुनाया गया था .भीष्म महाभारत युद्ध के एक एहम किरदार थे.

बलराम, कृष्णा के भाई ने गौधम गदा के साथ लड़ाई जीतने के लिए दुर्योधन को प्रशिक्षित किया।

उन दिनों 12 स्ट्रॅंड डीएनए वाले महारिशि 200 साल तक जीवित रहते थे . परशुराम ने द्रोणा को अपना कुल्हाड़ी दे दी। भीष्म और परशुराम ने अंबा के मुद्दे पर कई दिनों तक लड़ाई की.
13 वें दिन कृष्ण ने सूर्यग्रहण का इस्तेमाल अर्जुन की खातिर जयद्रथा को मारने के लिए किया था, जिसने अर्जुन के पुत्र को चक्रव्यूह में  मार डाला था . कुरुक्षेत्र के क्षेत्र में सूर्य ग्रहण की तिथि निर्धारित करना आसान है।
युद्ध के दौरान यह सूर्य ग्रहण की कहानी दिलचस्प है.

 
पांडवों के निर्वासन के दौरान, जयद्रत्त ने द्रौपदी का अपमानित किया और उससे ज़बरदस्ती शादी करने का प्रयास किया। भीम ने उसका पीछा किया और उसे जिंदा पकड़ लिया . युधिष्ठिर ने जयदथ को मृत्यु से बचा लिया है और उसे जाने दिया क्योंकि वह दुर्योधन की बहन का पति था . हालांकि भीम ने जयद्रत्त के बालों को काटा, उसके चेहरे को काला किया और फिर उसे जाने दिया।

इस अपमान का बदला लेने की इच्छा रखते हुए, जयद्रत्त ने शिव को खुश करने के लिए एक गंभीर तपस्या की। उसने पांडवों को पराजित करने की शक्ति माँगी . शिव ने उन्हें युद्ध में एक दिन तक पांडव बंधुओं को पकड़ने की शक्ति प्रदान की--सिवाय अर्जुन के जो भगवान कृष्ण द्वारा संरक्षित था .
 

जयद्रत्त ने महाभारत युद्ध में इस शक्ति का इस्तेमाल किया . युद्ध में उन्होंने पांडवों के खिलाफ अपने बहनोई दुर्योधन का सहयोग किया।
जैसे ही पांडवों का युद्ध में उपरी हाथ हो रहा था,दुर्योधन ने द्रोणाचार्य पर पांडवों पर नरम होने का आरोप लगाया . तभी द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को पकड़ने के लिए चक्रव्यूह सर्पिल भंवर बनाने का निर्णय लिया।

द्रोणा को मालूम था कि पांडवों में केवल अर्जुन को ही पता था कि कैसे गठन के अंदर और बाहर निकला जाए . इसलिए उन्होंने समसपतक नामक योद्धाओं को युद्धक्षेत्र के एक कोने में अर्जुन को आकर्षित करने का काम सौंपा ताकि वे चरकव्यूह पर हमला ना कर सके .


जैसे ही चक्रव्यूह घूमते हुए युद्धक्षेत्र में तूफान की तरह आया तब पांडवों की विशाल सेना मौत की चपेट में आ गईं . 

बिना अर्जुन के पांडवों को किसी तरह गठन रोकने की जरूरत थी अन्यथा उनकी सेना का अपूरणीय नुकसान हो जाता.
 
अर्जुन की अनुपस्थिति में, केवल अभिमन्यु को पता था कि चक्रव्यूह कैसे प्रवेश करें।

इसलिए उसे इसमें प्रवेश करने को कहा गया था .
लेकिन  उसे पता नहीं था कि कैसे इसके बाहर निकलना है, इसलिए अन्य पांडवों ने उसके पीछे बारीकी से पीछा करने का वादा किया , ताकि अंदर जाने का रास्ता बंद न हो जाए . 

लेकिन अभिमन्यु के गठन में प्रवेश करने के बाद, जयद्रत्त  ने अन्य पांडवों के लिए रास्ता अवरुद्ध कर दिया और वे पीछे से उनकी सहायता नहीं कर सके .
 

अभिमन्यू अकेले फंस गए और बेरहमीं से मारे गए .
अपने बेटे की मौत के बारे में सुनकर अर्जुन ने शपथ ली थी कि वह अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रत्त को मार डालेगा नहीं तो एक जलती हुई आग में प्रवेश करके अपना जीवन दे देगा।
दुर्योधन ने निर्णय लिया कि अगले दिन जयद्रत्त युद्ध के मैदान में प्रवेश नहीं करेगा लेकिन शिविर की सुरक्षा के भीतर रहेगा . उनकी पूरी सेना शिविर के चारों ओर पहरा देकर अर्जुन को वहाँ आने से रोकेगी . 

अगले दिन महाभारत युद्ध की सबसे भयानक लड़ाई हुई . अकेले अर्जुन, कृष्ण द्वारा संचालित रथ के द्वारा, दुर्योधन के जनरलों को एक के बाद एक हराया . लेकिन वे उसके पास वापस आते रहे। इसके बावजूद सूर्यास्त से पहले अर्जुन दुर्योधन के शिविर के नज़दीक पहुच गया था।
 

हालांकि कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वह टाइम पे दुश्मन के शिविर तक नहीं पहुच पाएगा . अब केवल एक ही रास्ता बचा था . कृष्ण सूरज को आकाश से छुपाने के लिए अपनी माया या दिव्य शक्तियों का उपयोग करेंगे। अर्जुन (झूठी में) हार मान लेगा .

अर्जुन की मौत का तमाशा को देखने के लिए जयद्रत्त अपने को रोक नहीं पाएगा . वह बाहर आ जाएगा . अर्जुन को सूर्य-अस्त के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। उसे तभी 
जयद्रत्त  को मार ना चाहिए .

यह योजना पूरी तरह काम कर गई . जैसे ही जयात्राता की मृत्यु हो गई, कृष्ण ने तब फिर से माया का काम किया और सूरज उज्ज्वल हो गया, संक्षिप्त ग्रहण के बाद .

आकाश में अंधेरा देखकर, जयद्रत्त अर्जुन की मृत्यु देखने के लिए बाहर आ जाता है। सूरज फिर से चमकना शुरू होता है, और तभी  अर्जुन अपने गाँधीव धनुष से घातक तीर चलाता है .

वह उसके सिर को उड़ा देता है  और एक साथ कई तीरों का इस्तेमाल करता है ताकि कटे हुए सिर को जमीन को छूने से रोका जाए . यह जयद्रत्त के पिता विद्धक्षत्र की गोद में मीलों दूर जाकर गिरता है,जहाँ वे अपने आश्रम में तपस्या कर रहे थे.
 
जयद्रत्त के पिता ने यह वरदान दिया था कि जिसने भी उनके  बेटे का सिर काटा वह तभी मार जाएगा जब सिर ज़मीन पर गिरेगा .

नीचे:- हीरों से भारी हुई विष्णु की स्वर्ण-मूर्ती 10 करोड़ अमरीकी डॉलर से अधिक कीमत की है . यह मूर्ती  पिछले साल केरल के श्री पद्मनाभास्वामी मंदिर के एक छोटे .तयखाने से निकाली गई थी. कुल खजाना 24 अरब अमरीकी डालर से अधिक का है .
 





भागवद् गीता का अनुवाद:-
"ओ भरत के वंशज,जब भी और जहां भी धर्म में गिरावट होती है और अधर्म का उदय होता है--तब मैं खुद आता हूँ.पवित्र उद्धार के लिए और दुर्व्यवहारियों को नष्ट करने के लिए, साथ ही साथ धर्म के सिद्धांतों को पुनः स्थापित करने के लिए, मैं हज़ार सालों में खुद का आगमन करता हूँ."



विष्णु का 9 वां अवतार वास्तव में भगवान अयप्पा है . ब्रिटिशेरो ने 9वी अवतार के रूप में, बुद्ध को स्थापित किया है। बुद्ध सिर्फ एक नश्वर हिंदू संत था, जो कि गौतम गोत्र का था . तब उन्होंने पाया कि यह काम नहीं किया. आजकल वे भगवान अय्यप्पा को कूड़े में डालने के लिए बहुत उत्सुक हैं.

क्योंकि इस ग्रह पर सबसे बड़ी वार्षिक तीर्थयात्रा सबरीमाला तीर्थ है (कुंभ मेला नहीं) और यह हर साल बड़ती जा रही है .  उन्होंने मुल्लापेरियर बांध के मुद्दे पर भी दंगे करवाने की कोशिश की है, क्योंकि तमिल और आंध्र के तीर्थयात्रियों का ट्रेकिंग मार्ग इस इलाक़े से जाता है . तमिल तीर्थयात्रियों पर पत्थर फिकवाने के ज़िम्मेदार विदेशी वित्त पोषित ईसाई मिशनरी हैं.

शुरू में उन्होंने अय्यप्पा को एक हालिया घटना बनाने की कोशिश की .लेकिन मुस्लिमों के साथ अय्यप्पा की काल्पनिक नकली बातचीत का हवाला देते हुए उन्होने उसे 1600 साल के इतिहास में आगे बड़ा दिया .

जब उन्हें लगा कि यह काम नहीं कर रहा, तब उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि अय्यप्पा शिव और विष्णु के बीच के समलैंगिक संबंधों का संतान हैं।(भगवान कसम---गोरे ईसाई आक्रमणकारियों ने इसे वास्तव में देखा था और इसकी वीडियो रेकॉर्डिंग भी की थी,हाहाहा)

उनके द्वारा बनाए गए कुछ नकली पुराणों के अनुसार--जब शिव मोहिनी के साथ सेक्स कर रहा था,तब मोहिनी वापस 'पुरुष विष्णु' के रूप में परिवर्तित हो गई . इसका मतलब एक पुरुष दूसरे पुरुष को थोक रहा था.

इस तरह के विचित्र विषाद हिंदू धर्म में गोरे ईसाई आदमी द्वारा डाला गया है--और भारत के ईसाई मिशनरी इसके भी आयेज निकल गए हैं . विकिपीडिया भी यही झूट दोहराता है .google में टाइप करें-- MOHINI WIKIPEDIA , तब आपको समझेगा मैं क्या कह रहा हूँ.
वैटिकन ने मुसलमानों के इतिहास के साथ भी यह सभी कलाकारी करने कि कोशिश की, लेकिन उन्हें फतवा और मौत की धमकी मिली,अब वे इस्लाम से ऐसा नहीं करते.

google में टाइप करें--
 VISHNU AVATAR VARAHA BOAR VADAKAYIL

VISHNU FIRST MATSYA AVATAR VADAKAYIL

VISHNU AVATAR NARASIMHA VADAKAYIL

 


तिरुपति के 7 पहाड़  तिरछे भगवान विष्णु के चेहरे की तरह लगती हैं:-
व्रुशभाद्रि--नंदी का पहाड़,भगवान विष्णु का वाहन
अंजनाद्री- हनुमान का पहाड़
नीलादरी-नीला देवी का पहाड़-मान्यता है कि नीला देवी अपने भक्तों के कटे बालों को कबूल करती है
गारूदादरी या गारउदाचलाम-गरुदा का पहाड़,विष्णु का वाहन
सिशाधारी-शेष का पहाड़,विष्णु का दास
नारायणदरी - नारायण का पहाड़, श्रीवरारी पडलू यहाँ स्थित हैं
वेंकआटद्री- भगवान वेंकटेश्वर की पहाड़ी


सूर्य का व्यास(diameter) पृथ्वी  के व्यास के 108 गुना है।

पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी चंद्रमा के व्यास के  108 गुणा  है ..

पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी सूर्य के व्यास का 108 गुणा है .

पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी 149 900 000 किलोमीटर है .

पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी 381 000 किलोमीटर है .

चाँद का व्यास 3499 किलोमीटर है .
पृथ्वी का व्यास 12798 किलोमीटर है .

सूरज ग्लोब, जो गर्मी का एक स्रोत है, उसकी 10,000 'योजना' की चौड़ाई (विस्तरा) है। चंद्रमा की 25 'योजना' की चौड़ाई है "

1 योजना 140 किलोमीटर है (यह दूरी आधुनिक रैखिक(linear) है --नाकी ऊर्जा सर्पिल समय / दूरी पथ{energy spiral time/distance path} जो हमारे सभी पुराणों में वर्णित है) . हकीकत में, ब्रह्मांड में सबकुछ,सूक्ष्म या विशाल, सर्पिल ऊर्जा(spiral energy) है।

रैखिक समय में प्रकृति पुरूष से निकली है .प्रकृति मतलब साफ सृष्टि और पुरुष मतलब सभी बनाए हुए से पूर्ण. यह एक बिंदू है जिससे सभी चीजें अस्तित्व में आईं।


गैर-रैखिक समय में, यह बिंदु वहाँ मौजूद होती है जहां 'कुछ नहीं' और 'कुछ' मिलते हैं.

यह खाली जगह 108 है।
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2015/07/oort-cloud-hindu-yugas-and-breath-of.html

हिंदुओं को बेवकूफ दिखाने के लिए गोरे आक्रमणकारी के द्वारा योजना / युग में झूठ का जहर डाला गया है। बी आर अम्बेडकर को हमारे वेदों / उपनिषद / पुराणों के 'झूठ वाले स्थानों' की एक सूची दी गई और उसने एक किताब लिखी(रिड्ल्स इन हिन्दुइस्म) जैसे की वो बहुत बड़े वेदिक पंडित थे .

जब आप पृथ्वी से सूर्य और चंद्रमा को देखते हैं, तो वे समान आकार के रूप में नज़र आते हैं, यह समान आकार उनकी दूरी और व्यास के कारण दिखाई देता है।

108 विभाजन 'पुरूष और प्रकृति' का एक साथ आने को दर्शाता है. यह पुरूष और प्रकृति की कंपन है जिससे हम अस्तित्व में आए .

आयुर्वेद के अनुसार,हमारे शरीर में 108 मर्म पॉइंट हैं।  वे पॉइंट होते हैं जहां चेतना शरीर से टकराती है जो एक जीवित प्राणी को ठीक कर सकता है या उसे मार सकता है।

वे महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो चेतना और शरीर को जोड़ते है, जहां पुरूष (चेतना) प्रकृति (शरीर) के साथ आता है जिससे जीवित जीवों को जीवन मिलता है .  जब हम संस्कृत मंत्र 108 बार पढ़ते हैं, तब यह मंत्र प्रत्येक मर्म को कवच (संरक्षण) देने का कार्य करते हैं.

श्री यंत्र के 108 चौराहों ने पुरूष और प्रकृति के ब्रह्मांडीय संतुलन का आह्वान करता है और महर्षि की 'मौलिक क्षमता' दोनों स्पष्ट रूप से देखने मदद करता है .

नौ केतु से जुड़ा है, जो कि मोक्ष कराक (मुक्ति) है.

 श्री यंत्र में 9 जुड़ाव त्रिकोण, 5 अंक नीचे और 4 अंक ऊपर की ओर होते हैं। मिस्र के महान पिरामिड का आधार कोण 51 डिग्री 49 मिनट है, जैसा कि 10000 साल पुराने श्री यंत्र पिरामिड में है . दोनों ही पाई(pi) और फ़ाई(phi) के बीच समान संबंध दिखाते हैं.

हाइपोटिन्यूज(कर्ण) और आधार(बेस) का रेशिओ आधा होता है . फाई 'गोल्डन रेशियो' है -एक दिव्य अनुपात(divine proportion) जो (1 + स्क़ुऐर-रूट 5) / 2 द्वारा दिया जाता है . ये यह दर्शाता है कि फ़रोआह के वास्तुकार ईजिप्ट से नहीं थे .

3 लाइनें 54 अंकों में एक दूसरे को काटती हैं(संस्कृत वर्णों की संख्या) जो शिव और शक्ति गुणों के साथ मिलकर जादू संख्या 108 बनाते हैं..

संख्यात्मक रूप से, नौ एक बहुत ही विशिष्ट संख्या है, यह हमेशा स्वयं को वापस देता है . यह देखें कि यह अन्य संख्याओं के साथ कैसे व्यवहार करता है:
 9 x 1 = 9
9 x 2 = 18, 1 + 8 = 9
9 x 3 = 27, 2 + 7 = 9
9 x 4 = 36, 3 + 6 = 9
9 x 5 = 45, 4 + 5 = 9
9 x 6 = 54, 5 + 4 = 9
9 x 7 = 63, 6 + 3 = 9
9 x 8 = 72, 7 + 2 = 9
9 x 9 = 81, 8 + 1 = 9
9 x 10=90, 9 + 0 = 9
9 x 11=99, 9 + 9 = 18, 1 + 8 = 9
9 x 12 = 108

108 हिंदू राजा मंत्र ओम की संख्यात्मक समकक्ष है  जो समय और स्थान की लय के साथ सिंक्रनाइज़ेशन में और संपूर्ण संपूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है. एक प्राचीन महारिशि द्वारा पहने गए रूद्राक्ष माला में 108 मोती थे।

जब दूध के आकाश (आकाश गंगा- ब्रह्मांड का दूधिया तरीका) समय की शुरुआत में मंथन किया गया था,यह केवल पॉज़िटिव और नेगेटिव ब्रह्मांडीय ताकतों की कामकाजी एकता से बना था ---जो है देव(देवताओं) और असूर(राक्षस)।  {When the ocean of milk ( Akash Ganga- milky way of the cosmos  ) was churned in the beginning of time, it could only be done with the working unity of the positive and negative cosmic forces-  devas (gods) and asuras (demons).}

विरोध करने वाले तमस  और रजस चेतना(कॉन्षियसनेस) के माध्यम से जुड़े हुए हैं .

शिव के त्रिशूल का मध्य भाग सत्त्वा है। यह दो ध्रुवों के बीच, क्वांटम संभावना भंवर कंपन के बारे में है।( It is about quantum possibility vortex vibrations, between two poles. )... यह द्वैत हिंदू धर्म का आधार है .

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/05/dvaita-vedanta-of-sanatana-dharma-or.html

शिव की तीसरी आंख को सक्रिय करने के लिए या उच्च आयामों(dimensions) को समझने के लिए पीनील ग्लैंड (आत्मा) और पिट्यूटरी ग्लैंड (शरीर) को एक क्षेत्र बनाने के लिए एक साथ गूंजना(रेज़ोनेट) करना ज़रूरी है.   यह हिंदू पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन द्वारा दर्शाया गया है।

पिनीयाल ग्लॅंड या ग्रंथि बनाता है=अमृत-पिनोलीन  ( 6-methoxy-tetra-dydro-beta carboline, or 6-MeO-THBC ) . पिनोलिन भी जीवन के बहुत महत्वपूर्ण पल्स के साथ प्रतिरूप करता है =7.83 हर्ट्ज. डीएनए को पुनरावृत्ति करने के लिए उपयोग की जाने वाली पल्स को सभी सफल चिकित्सकों के दिमागों और हाथों से निकलते पाया गया है , भले ही वे किसी भी धर्म को मानते हों.

आप अपनी पीनियल ग्रंथि के बिना क्वांटम दुनिया का निरीक्षण नहीं कर सकते .

अन्य 5 इंद्रियों में बहुत संकीर्ण बैंडविड्थ हैं .
महारिशि मानते थे की क्वांटम स्क्रीन के नीचे का अदृश्य दृश्यमान को जन्म देता है.

आध्यात्मिक पूर्वी दिमाग के लिए, समुद्र मंथन की कहानी कुंभ मेले की तरह विश्वास की अद्भुत कृत्यों का उत्पादन करती है, जो 6000 वर्षों से चल रहा है।
तमस और रजस एक दूसरे के प्रति सचेत हैं।अमृत चेतना के फ्रैकटल भाव को बताती है . अमृत बाहरी नहीं है, यह आपके सिर के अंदर उत्पन्न होता है। 12 डी .एन. ए. धागे  वाले महारिशि अपने दैनिक इस्तेमाल के लिए,आकाश से रेकॉर्ड को पड़ सकते थे,उसे फ्रैकटल जॉमेट्री में बदला सकते थे .

शिव के सिर पर कोबरा उठी कुण्डलिनी का प्रतीक है. यह स्वयं का अहसास (तीसरी आंख खोलने की), चेतना का अंतिम लक्ष्य है . यह मंथन कुंडलिनी को अपनी रीढ़ की पहाड़ी अक्ष (मरु) पर नीचे जड़ चक्र के कछुए के साथ बढ़ने देता है। सहस्रार चक्र में पति शिव से मिलने पत्नी पार्वती आती है. सुषुम्ना नाडी का द्वार उसके पुत्र गणेश द्वारा मूलाधार चक्र में खोला जाता है.

108 उपनिषद हैं ... नटराज के ब्रह्मांडीय नृत्य में 108 भरतनाट्यम ढंग होते हैं .

12 राशी और 9 नवग्रहों की संख्या बढ़कर 108 होती है .
कलारी 108 मर्मों के बारे में बात करता है.
पीरियाडिक टेबल में 108वा और सबसे भारी तत्व हैसियम (108 प्रोटॉन) है.बाकि बहुत कम समय रहते हैं।

श्री यंत्र द्वारा प्रस्तुत ईश्वर का मन हाइपरस्पेस के माध्यम से लौकिक संगीत है . सब कुछ की कहानी इस रहस्यवादी 3 डी ज्यामिति में निहित है।
बिग बैंग की गर्मी ने दिमित्री मेंडेलीव की आवधिक तालिका(periodic table)  में तत्वों का निर्माण किया। संस्कृत और मलयालम में 54 वर्ण हैं।

विष्णु अवतार वरहा सूअर ने 108 को ब्रह्मांडीय समीकरण में रखा। याद रखें, सूअर मूर्तियों के मिलने के बाद मुसलमानों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद में पूजा करना बंद कर दिया।

वराका अवतार में, सूअर के रूप में विष्णु ने पृथ्वी को अपने दांतों के बीच महासागर से बाहर किया और इसे ब्रह्मांड में अपनी जगह पर बहाल किया और बाद में हीनरण्यक्ष(जय) को भी ख़त्म किया.

यह एक बढ़िया अन्योक्ति(allegory) है..

 antar-maharnava upagatam adi-daityam
tam damstrayadrim iva vajra-dharo dadara

"असीमित रूप से शक्तिशाली भगवान ने धरती के बचाव के लिए सूअर का रूप ग्रहण किया और पहले राक्षस हिरण्यक्ष को अपने दागों के साथ चीरा"(एस बाघवतम 2.7.1).

दिव्य जादू देखें .
पृथ्वी पर हम चन्द्रमा के केवल एक तरफ देख सकते हैं, हालांकि दोनों चंद्रमा और पृथ्वी घूमते हैं। -इसके लिए कुछ दिव्य फिक्सिंग की आवश्यकता है, है ना?
पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान हम सूर्य के कोरोना के किनारे को ही देख पाते हैं---इसके लिए भी कुछ दिव्य फिक्सिंग की आवश्यकता है, है ना?
क्योंकि धरती की छाया की परछाई धरती के व्यास के 108 पीछे जाती है और सूर्य  पृथ्वी से 108 गुना बड़ा है.

 जब 12 व्यास डीएनए वाले महारिशि ने 5000 ईसा पूर्व में हमारे वेदों में यह सब लिखा था तब कोई लेजर बीम नहीं थी.
ऋग वेद  वराहा का वर्णन करती हैं. वराहा लगभग सभी प्रमुख पुराणों में महिमा है.

"सभी बलिदानों का सर्वोच्च आनंद लेने वालों ने धरती के कल्याण के लिए सूअर का अवतार स्वीकार कर लिया। उन्होंने धरती को ब्रह्मांड के नीचे के क्षेत्रों से उठाया "- (श्रीमान भगवत 1 1.3.7)

हिरण्यक्ष का वरदान था कि कोई जानवर या मनुष्य उसे मार नहीं सकता। तो विष्णु एक सूअर के रूप में आया, जो पशु सूची में नहीं था।

यह आश्चर्यजनक है कि प्राचीन काल में भी भारतीयों को पता था कि सुअर मनुष्य के करीब है। यही कारण है कि हिंदू सूअर नहीं खाते।
जंगली सुअर की सूंड होती है..पशु सुअर की रचना करने के लिए मानव के जीन को जंगली सुअर के साथ मिलाया ताकि पालतू सुअर बन सके. क्योंकि पालतू सुअर इंसान और जंगली सुअर के जीन्स का मिश्रण है,इसे खाना आदम-खोरी जैसा है. यहूदियों और मुसलमानों ने इस अवधारणा का पालन किया।

यही कारण है कि सुअर को पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान जानवर माना जाता है... सूअर की त्वचा इंसानों की जाली त्वचा पे लगा जा सकता है. सुअर का हृदय वाल्व का उपयोग मनुष्यों में बहुत कम कठिनाई के साथ किया जा सकता है..मनुष्यों से पहले कैंसर की दवाएं और अन्य रसायनों को अक्सर सूअरों पर परीक्षण किया जाता है।

सुअर का डीएनए  इंसान जैसा है. मानव डीएनए, जब सुअर कोशिकाओं में इंजेक्ट होता है,तब यह भ्रूण बन जाता हैं।

इंसुलिन पे निर्भर डाइयबिटीस वाले लोग अपने शरीर में सुअर का इंसुलिन इंजेक्ट करते हैं. यही कारण है कि विषाणु जो परजीवी के रूप में घूमते हैं उन्हें मानव कोशिकाओं में स्थानांतरित करना आसान लगता है। वायरस अपने आप से नहीं बच सकते, मुझे आशा है कि आप यह जानते हैं। नाल में सुअर का भ्रूण, नाभि के माध्यम से पोषण प्राप्त करता है। वे सपना देख सकते हैं. सूअरों का डीएनए वास्तव में 99% मनुष्यों जैसा है. यह आश्चर्यजनक है कि डीएनए में कितना छोटा असर पूरी तरह से अलग प्रजातियां पैदा करता है! सूअर आनुवंशिक(genetic) रूप से बहुत मनुष्यों के करीब हैं.

बंदर और डॉल्फ़िन के बाद सुअर तीसरा सबसे बुद्धिमान जानवर हैं. सुअर अर्ध-रंग में देख सकते हैं जबकि अन्य स्तनधारी  काले और सफेद रंग में देखते हैं..

विष्णु का पहला अवतार मत्स्य एक डॉल्पिन था- यही कारण है कि कोई इंसान डॉल्फ़िन नहीं खाता है।

यह हाल ही में साबित हुआ है कि डॉल्फ़िन अन्य जलीय प्राणियों की तरह नहीं हैं.

वे जागरूक(conscious) प्राणी हैं और दर्पण परीक्षण(mirror test) पास करते हैं। सिर्फ मानव, भारतीय हाथी और बोनोबो और डॉल्फ़िन दर्पण परीक्षा पास करते हैं। डॉल्फिन समझदारी में मनुष्यों के बाद दूसरे नंबर पे आते हैं. एमआरआई स्कैन साबित करते हैं कि यह समुद्री स्तनधारियों स्वयं-जागरूक हैं . डॉल्फ़िन कौशल और जागरूकता का प्रदर्शन करती है जो कि पहले मनुष्य में ही मुमकिन माना जाता था।

डॉल्फिन ध्वनि आवृत्तियों छोड़ते है, जिससे एक क्षेत्र उत्पन्न होता है जो मस्तिष्क और बायोमोलेक्युलर प्रणाली को 7.83 ह्ज़ तक बॅलेन्स रखता है... डॉल्फिन द्वारा उत्सर्जित ध्वनि(frequency) में 7.83 हर्ट्ज की आवृत्ति है, जो हिंदू राजा मंत्र ओम और पृथ्वी के दिल की धड़कन के समान है(schumann's resonance)..अंतरिक्ष यात्री अपने अंतरिक्ष यान में 7.83 फ़ील्ड जनरेटर ले जाते हैं। कोई हिंदू मंत्र मंत्र ओम से शुरू किए बिना पूरा नहीं हो सकता.
ओम ध्वनि शंख से आती है, क्योंकि उसके आंतों को मोरोगोजेनेटिक चेतना क्षेत्र या ब्रह्मैन द्वारा आकार दिया जाता है।(From the conch OM sound comes as its innards are shaped by the morphogenetic consciousness field or BrahmAn.) महाभारत युद्ध से पहले, भगवान कृष्ण ने अपने पंचजन्य शंख को बजाया था  जिससे कौरवों में आतंक फैल गया था. उसकी आवाज़ दुनिया भर में एक सॉलिटॉन तरंग(वेव) की तरह थी, जो कि एक ऐओनोस्फैर का उपयोग कर रही थी।

शंख के अंदर हवा के मार्ग की आंतरिक वक्रता(inner curvature)  फाइबोनैचि श्रृंखला पर आधारित है। फिबोनैचि एक इटालियन चोर था फिबोनैची बेजाया अल्जीरिया में था,जब उसे भारतीय वैदिक गणित के बारे में पता चला- जिनका अनुवाद अरबियों ने किया था. वे इस ज्ञान को इटली में ले गये.

ईसाई आमेन और यहूदी शलॉम हिंदू राजा मंत्र ओम से चुराए गए है. ओम नाइट्रिक ऑक्साइड निकलवाता है-आमेन और शालों का कोई मतलब ही नहीं..जब आप ओम के प्रतीक को आईने में दिखाते हैं तो यह 786(संस्कृत नंबर सिस्टम में) हो जाता है -जो कि प्रत्येक कुरान पर पवित्र संख्या है.
धरती का रेज़ोनेन्स 7.83,14,20,26,33,39 अथवा 45 हर्टज़ है जिसमे 7.83 हर्टज़ सबसे ताकतवर है(जिसे ओम या शूमन फ्रीक्वेन्सी भी कहते हैं).

ओम - 7.83 हर्टज़
गम - 14 हर्टज़
ह्लीम - 20 हर्टज़
ह्रीम - 26 हर्टज़
क्लीम - 33 हर्टज़
क्रोव्म - 39 हर्टज़
स्रीं - 45 हर्टज़

मनुष्य 20 हर्ट्ज से कम कि फ्रीक्वेन्सी नहीं सुन सकता - लेकिन हमारे दिल इसे सुन सकते हैं।

डॉल्फ़िन 7.83 हर्ट्ज के ओर आकर्षित होते हैं जब इसे पानी के नीचे शोध के दौरान ध्वनि वाद्य यंत्र  या सॉनिक इन्स्ट्रुमेंटेशन के माध्यम से भेजा जाता है .


कृपा और शांति!

 



कॅप्टन  अजीत वाडकायिल

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