Friday 7 September 2018

उच्चतम न्यायालय ने सेक्षन 377 रद्द किया, भारत में समलैंगिकता अब उचित है  - कप्तान अजीत वाडकायिल

यह हिंदी पोस्ट नीचे के अंग्रेजी पोस्ट का हिंदी में अनुवाद है:
http://ajitvadakayil.blogspot.com/2018/09/supreme-court-strikes-down-sec-377.html

उच्चतम न्यायालय ने सेक्षन धारा रद्द किया, भारत में समलैंगिकता 6 सितंबर 2018 से उचित है.

ये अदालत का निर्णय निरर्थक और अमान्य है.

https://timesofindia.indiatimes.com/india/gay-sex-is-not-a-crime-says-supreme-court-in-historic-judgement/articleshow/65695172.cms

https://www.khabarindiatv.com/india/national-what-is-section-377-of-ipc-469518

धारा 377 के विचार-विमर्श से पहले ही सभी को '5 न्यायाधीशों के बेंच' की राय पता थी. मीडिया ने इसे काला और सफेद करके दिखाया है.

जबकि संविधान के अनुसार न्यायाधीशों को निर्णय से पहले अपने मन मंदिर की बात सामने नहीं लानी चाहिए. 

कानूनों को केवल सांसदों द्वारा निर्मित या ख़त्म किया जा सकता है .. यह हमारा संविधान कहता है.

यदि गोपनीयता का कानून इस तरह संविधान के टेम्पलेट का उपयोग करके लागू किया जा सकता है,  तो उस हिसाब से बाल यौन शोषण, नेक्रोफिलिया(लाश के साथ शोषण करना) और पशुसंभोग करने की भी अनुमति दी जा सकती है ..

बंद दरवाज़े के पीछे विकृत सेक्स करना जायज़ नहीं है,कर्म बंद कमरे में भी पहुच जाता है.

ईश्वर स्वतंत्रता के नाम पर किसी व्यक्ति के लंड को किसी अन्य व्यक्ति के पिछवाड़े(टट्टी निकालने) वाले छेद में डालने की अनुमति नहीं देता.  

यह प्यार नहीं बल्कि हवस है.

पूर्वकल्पित विचार रखने वाले पांच कौलेजियम न्यायाधीशों 130 करोड़ लोगों के राष्ट्र के लिए ऐसा व्यापक निर्णय नहीं दे सकते. हमारा भूमि दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति वाली भूमि है।

कौलेजियम के न्यायाधीश का अनिर्वाचित और दायित्व शून्य है।

हमारा संविधान एक न्यायाधीश द्वारा दूसरे न्यायाधीश को चुनने की अनुमति नहीं देता है.

हम लोगों को हिजड़ों के लिए सहानुभूति है --- लेकिन होमोसेक्सुअल,समलैंगिक लोगों के लिए सहानुभूति नहीं है, जिनमें से 99.5% बाल यौन शोषण करने वाले होते हैं।

याद रखें, जनता संविधान से ऊपर हैं .. जज केवल संविधान तक ही हैं.

अगर कोई भी समलैंकिक व्यक्ति इससे सहमत नहीं है, - .. कृपया  नार्को ट्रूथ सेरम टेस्ट करवाने के लिए कबूल करे, ताकि हम उससे पता लगा सकें कि उसने  कितने बच्चों के साथ शोषण आरंभ किया और किस उमर में उसके साथ शोषण किया गया था.

हमें मालूम चलेगा की सभी समलैंगिक व्यक्ति पचासों बच्चों का उत्पीड़ित करते हैं. यह प्यार नहीं बल्कि जानवरों वाला हवस है.

उसके नारको टेस्ट से ये भी मालूम चलेगा कि किस उम्र में उसका पहली बार उत्पीड़न हुआ था.

ये नारको टेस्ट टी.वी पर लाइव दिखाया जाना चाहिए-- और सच्चाई कबूल करने के बाद उसे स्टूडियो से गिरफ्तार करके हिरासत में भेजना चाहिए.

यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पौक्सो) को समलैंगिकों पर लागू होना चाहिए.

 जानवर के साथ सेक्स और कौटुम्बिक व्यभिचार(इन्सेस्ट) को गंभीर रूप से दंडित किया जाना चाहिए.

यह विकृत व्यक्ति चाहे हज़ार बार बोले कि उसकी बकरी,गाय या बहन सेक्स के लिए इच्छुक थी और उसके पिछवाड़े में मेरे लंड घुसने पर उसे कोई ऐतराज़ नहीं था,तो हम उसपर विश्वास नहीं करेंगे.

सफेद समलैंगिक लोग भारत के मौजूदा शासकों को चालू तरीके समझा-बुझा रहे हैं.


मोदी को किसकी चिंता--उसके तो बच्चे ही नहीं हैं.

मोदी को किसकी चिंता?--उसके तो बच्चे ही नहीं हैं. लाखों सालों से चली आ रही उसकी रक्तरेखा उसके साथ ख़त्म हो जाएगी.

मोदी ने गैर-क़ानूनी तरीके से ये धारा 377 का निर्णय 5 कौलेजियम जजों पे छोड़ दिया है बल्कि इस धारा पर निर्णय लेने के लिए उसे जनता के चुने हुए सांसदों से वोटिंग करवानी चाहिए.

प्रतिशत के अनुसार भारत में समलैंगिकों की सबसे कम आबादी है.

यह डीप स्टेट एजेंट अमर्त्य सेन (रोत्सचाइल्ड पत्नी वाला) था, जिसने पहली बार आईपीसी की धारा 377 के खिलाफ आवाज़ उठाई,जब उसने सितंबर 2006 में समलैंगिकों के लिए फ्री सेक्स की मांग की.


ये "हारे हुए लौयर जो जज बन जाते हैं" इनका अदालती अतिसन्धान(judicial overreach) बहुत हो गया है.

सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक बेंच ने 24 अगस्त, 2017 में  'गोपनीयता' को मौलिक अधिकार मेंघोषित कर दिया।

बकवास !

हमारे यहाँ जग्गी वासुदेव नाम का एक दुष्ट गुरु है जिसने भारतवासियों से कहा है की उन्हें बाँध कमरे में होने वाली गतिविधियों की चिंता नहीं करनी चाहिए.

भैया, कर्म का क़ानून बंद कमरे में भी काम करता है.

हम रोत्सचाइल्ड का "अँधा क़ानून" वाला सिस्टम नहीं चाहते.

हम चाहते हैं "प्राकृतिक न्याय" की एक्स-रे वाली आँखें होनी चाहिए जिससे की धर्म कायम रहे, हमें थाईलैंड का हवसि धम्मा नहीं चाहिए.


"संविधान" के ऊपर "हम लोग"(यानी जनता) हैं,

"हम लोग" के उपर वतन है,

और "वतन" के ऊपर धर्म है।

धर्म के उपर कुछ भी नहीं होता.

धर्म सच की रक्षा करता है और अच्छे लोगों को निष्पक्षता प्रदान करता है.
  । यह प्राकृतिक न्याय है।

"हम लोग" जो संविधान से ऊपर हैं, गोपनीयता क़ानून के द्वारा बालशोषण, पीडोफिलिया और पशुसंभोग की अनुमति नहीं देंगे ..

गोपनीयता वतन के हितों से ऊपर नहीं हो सकता. किसके लिए गोपनीयता? विकृति और बुराई छुपाने के लिए?

गोपनीयता का अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है; इसमें सीमाएं हैं जिन्हें केस-टू-केस के आधार पर पहचाने जाने की आवश्यकता है.

आपको याद दिलाएं कि हमारे सम्माननीय मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने ट्रिपल तालाक का समर्थन किया - इस आदमी का क्या मूल्य है?

मुझे इस सरदार जज के पड़ोसी से इसके बारे में बहुत कुछ पता है.

वह अब भारत में विदेशी वकील लाना चाहता है।

किसलिए मि लॉर्ड?



वर्तमान की कौलेजियम प्रणाली  स्वतंत्रता से पहले की  न्याय प्रणाली व्यवस्था से भी बदतर है।

फिरसे दोहराता हूँ, जज क़ानून नहीं बना सकते.

वो सिर्फ़ क़ानून का व्याख्या कर सकते हैं,वो भी तब जब उनसे पूछा जाए-- नाकी उनकी मान मर्ज़ी से. 

और ये विदेशी चंदा पाने वाले देश द्रोही, जिनका खुराफाती उद्देश्य होता है,उनके पी.आई.एल दर्ज करवाने पर जजों को क़ानून का व्याख्या नहीं करना चाहिए.

माफी दोस्तों, शासनात्मक सत्ताधारी(executive) कौलेजियम जजों के गुलाम नहीं हैं.

वो दिन गए.

वो दिन दूर नहीं है जब रिटायर्ड जज जेल की चक्की पीस रहे होंगे. विदेश दौरों पर ये जज बड़े लापरवाह रहे हैं.

कौलेजियम न्यायपालिका(नोएम चौमस्की जैसे रोत्सचाइल्ड एजेंट की मदद से) अपने आप को गैर ज़िम्मेदार "शासक प्राधिकारी" बनाना चाहते हैं और शासनात्मक सत्ता को अपना चपरासी बनाना चाहते हैं.  

"हम लोग" कौलेजियम न्यायपालिका को चुने हुए अधिकारियों को दबाने की अनुमति नहीं देंगे-- भले ही पीएम मोदी में विरोध करने का बूता ना हो.

गोपनीयता क़ानून लाखों ग़रीब भारतीयों के लिए किस काम के जिन्हें अपनी अगली रोटी का अता-पता है- या फिर वो बदकिस्मत बच्चे जो सड़क पर सोते हों.

हम भारत में सोली सोराबजी या फाली नरीमन जैसे बेईमान लॉयर या जजों को भारत पे राज नहीं करने देंगे.
इनमें से बहुत से जज और लॉयर उपर की कमाई को छिपाकर रखते हैं.

लोकतंत्र में गोपनीयता एक मौलिक अधिकार है पर ये असीम नहीं है.

अगर तुम्हे पूरी आज़ादी से जीना है तो किसी दूर-दराज़ द्वीप पर जाओ जहाँ पर कोई क़ानून नहीं है और वहाँ तुम अपनी गान्ड में छड़ी घुसाकर घूमो. कोई भी क़ानूनी समाज कुछ सार्तों पर ही गोपनीयता प्रदान करेगा.

अभी मैं देख रहा हूँ; चेहरे पर मास्क लगाए हुए लोग जश्न बना रहे हैं.

हिंदू मज़हब में माता पिता द्वारा शादी तय की जाती है क्यूंकी लोग हवस को प्यार समझ लेते हैं.

हवस(वासना) केवल एक अस्थायी प्रतिबद्धता है जो हवस की इच्छा होने तक ही सीमित रहता है. एक समलैंगिक विकृत व्यक्ति भीड़ वाली बस में एक लड़के पर मुठ(सड़का) मारता है फिर उसके बाद वह उस बस को छोड़कर दूसरी बस में प्रवेश करता है.

हवस केवल सेक्स की लालच है जो की रोमांटिक प्यार से बहुत दूर है। हवस कोई गहरी भावनात्मक बंधन पैदा नहीं कर सकता जैसे आप अपने प्रेमी से करते हैं. समलैंगिक हवस नहीं टिकता है और वे कई पार्ट्नर की तलाश करते हैं, अक्सर एक समय में 2-3.

हवस सुसू की तरह है। यह बस तीव्र संतोषजनक भावना है जो सब कुछ हो जाने के बाद जल्दी से चला जाता है। कुछ ऐसा समझो- तुम्हे ज़ोर की मूत लगी है और मूतने के बाद तुम अच्छा महसूस कर रहे हो. लेकिन तुम्हारा  दिमाग़ कहता है की तुम्हे तुरंत दूसरे टाय्लेट में जाना चाहिए.

जबकि यदि आप हवस में हो तो आपके दिल का रवैया मतलबी होगा, स्वयं पर ध्यान केंद्रित रखकर. हवस आमतौर पर शारीरिक उपस्थिति के आधार पर एक मजबूत प्रारंभिक सेक्स आकर्षण है। एक बार जब शारीरिक इच्छा समाप्त हो जाती है, तो उनमें आपकी रुचि आमतौर पर समाप्त हो जाती है।

हावस एक शारीरिक भावना है जिसे हम "क्षणभर की गर्मी" में करने वाला कार्य कहते हैं। टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन जैसे लिंग हार्मोन के बढ़ने से हवस बड़ जाता है। ये मूल भौतिक संतुष्टि के लिए एक अंधाधुंध बेचैनी पैदा करता है.

प्यार एक लंबी दौड़ है। प्यार किसी अन्य व्यक्ति के प्रति स्नेह और देखभाल की गहरी भावना पैदा करता है। प्यार में व्यक्तिगत बलिदान शामिल होता है .. जब आप किसी के साथ प्यार करते हैं, तो आप दूसरे व्यक्ति के साथ भविष्य देखते हैं और आपके साथी को अपनी जीवन योजनाओं में शामिल किया जाता है।

"प्यार और रोमांस" भरोसा, वफादारी और गहरे भावनात्मक लगाव से जुड़े हुए हैं, जहां समय ठहर जाता  है। यदि आपका साथी ऐसा व्यक्ति है जिससे आप अपने भीतर के विचार शेयर करना चाहते हैं, तो आप प्यार में हैं।

दूसरे के लिए बलिदान करने और मतभेद सुलझाने की इच्छा होता है। समझौता करने की यह क्षमता है जिससे दोनों जीतें या कम से कम अन्य व्यक्ति की राय को मौका दें।

प्रेम दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता बनाता है और इरादे वास्तविक होते हैं। आप प्यार करने वाले व्यक्ति को बेवफूफ नहीं बनाओगे. प्यार सुरक्षा, शांति, आंतरिक खुशी और एक स्थिर, ठोस साझेदारी को बढ़ावा देता है जो आत्मविश्वासऔर सुरक्षित बच्चों को पाल-पोसने के लिए आदर्श माहौल प्रदान कर सकता है।

प्यार बिना शर्त का वास्तविक सौदा होता है। जब आप किसी ऐसे व्यक्ति से बात करते हैं जिसे आप पसंद करते हैं, तो आप अपनी बातचीत में खो जाते हैं, और घंटे मिनटों की तरह गुजरते हैं। जब भी वह आपको अपने दिन के बारे में बताती है तो आप उसे सुननेको इच्छुक होते हो. आप बस इतना करना चाहते हैं कि आप उसके साथ रहें, चाहे आप सेक्स कर रहे हों या नहीं। इच्छुक नहीं हैं। आप बस उसके साथ रहना चाहते हो चाहे आप सेक्स कर रहे हो या नहीं।

यदि आप प्यार करने वाले व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाते हैं तो यह सचमुच दिव्य जुनून का विस्फोट होता है। प्यार साथ के उज्जवल भविष्य को देखता है। यह महसूस होता है कि आपका जीवन उसके बिना पूरी तरह खाली होगा। आप उसे अपने परिवार के साथ पेश करना चाहते हैं और आप उसे अपनी सभी योजनाओं में शामिल करते हैं।

वह आपको खुश करती है, और आप उसे खुश करने के लिए कुछ भी करेंगे। असली प्यार लोगों के अंदर का सबसे अच्छा बाहर लाता है। प्रेम चीजों को वास्तविक रूप में स्वीकार कराता है.  महिला को उसके स्तन या ऊपरी होंठ में प्लास्टिक सर्जरी करवाने की जरूरत नहीं होती. प्यार तब होता है जब आप बिना कुछ वापस पाने की उम्मीद से दूसरे व्यक्ति की मदद करते हैं. 

सफेद समलैंगिक संख्या की सुरक्षा चाहते हैं ..

माफी, भारतीयों में मानव और सुवर(डुक्कर) का मास खाने से होने वाली डी.एन.ए की विकृतियाँ नहीं होती..

29 जून 2008 को, पांच भारतीय शहरों (दिल्ली, बैंगलोर, कोलकाता, इंदौर और पांडिचेरी) में समलैंगिक गर्व परेड हुआ …

2 जुलाई 2009 के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को वैध बनाने का फैसला लिया था. पिंक पेज्स, भारत की पहली ऑनलाइन एलजीबीटी समलैंगिक पत्रिका को  जारी किया गया ... .

16 अप्रैल 2009 को, भारत की पहली समलैंगिक पत्रिका बॉम्बे डोस्ट, मुंबई में सेलिना जेटली द्वारा पुनः लॉन्च की गई थी ... ..

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अनुच्छेद 377 के उन्मूलन के समर्थन में सेलिना जेट्ली बंदर की तरह उछालने लगी.






'न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' के प्लान के अनुसार 7 अरब लोगों की आबादी को 50 करोड़ से 100 करोड़ लाना है। हवसि सेक्स आंदोलन का वैधकरण बिग ब्रदर द्वारा "यौन अभिव्यक्ति के वैकल्पिक रूप" की तरह से वित्त पोषित किया जाता है ..

ग़लत छेद में लंड डालने को प्यार कहा जाता है. प्यार और हवस के बीच की लाइन को धुन्द्ला किया जा रहा है.

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के पैसों पर पलने वाले चम्चे शादी और परिवार और प्राकृतिक क़ानून और सभ्यताओं को ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं.

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का लक्ष्य है-- हवसि जानवरों,मूलहीन व्यक्तियों,अकेले और जड़-हीन व्यक्तियों की एक पीढ़ी बनाना  जो स्वयं के अप्राकृतिक जुनूनों के गुलाम हों, ताकि उनके नए मास्टर के खिलाफ कोई गंभीर विरोध ना कर सके …

समलैंगिक कुख्यात रूप से अस्थिर और अविश्वसनीय होते हैं। यदि आप उन्हें अपने बिज़नेस में उन्हें शामिल करते हैं तो आपका बिज़नेस बर्बाद होगा ..

आज हम देख सकते हैं कि लगभग सभी समलैंगिक आक्टिविस्ट यहूदी ज़ीयोनिस्ट लॉबी और फ्रीमेसन की कठपुतली है .. यदि आप कुछ समर्थकों के साथ एक समलैंगिक कार्यकर्ता बन सकते हैं तो हैजएयर बहुत पैसा प्राप्त हो सकता है …

नास्तिक ब्रिंडा करात जैसे रोत्सचाइल्ड कम्युनिस्ट समलैंगिकों का समर्थन ऐसे कर रहे हैं जैसे कि उनका जीवन इस पर निर्भर है .... क्यों नहीं? .. उसके कोई बच्चे तो हैं नहीं ....

यह सब वास्तव में मानवता के खिलाफ एक गुप्त और अनैतिक युद्ध है ... .. धर्म  नई विश्व व्यवस्था(न्यू वर्ल्ड ऑर्डर) के लिए एक प्राकृतिक बाधा है .. इंटरनेट पर सेक्स वेबसाइट की बाढ़ जनता को सुन्न करती है, जिससे उनका मूल पशु जुनून बाहर आता है और इससे वे अधिक लचीला बन जाते हैं …

यहाँ तक की उत्पीड़न वाले सेक्स को भी "प्यार का एक्सप्रेशन" कहा जा रहा है.

बिना बीवी-बच्चों वाला टाइम्स ऑफ इंडिया का बुटका मालिक "विनीत जैन" हर रोज अपने अख़बार में पोस्ट निकालता है कि कैसे डिल्डो,चमड़े के बेल्ट,हथकड़ियों का प्रयोग सेक्स के दौरान किया जाए.

यदि एक सेलिब्रिटी या कॉरपोरेट बॉस समलैंगिकता की आलोचना करता है, तो यहूदी "बिग ब्रदर" पूरी कोशिश करेगा की उसका करियर खत्म हो जाए.

समलैंगिक गौरव परेड एक महान अजीब किस्म का पागलपन है जहाँ बिके हुए मलिच गान्ड्ड में लंड घुसने को रोमैंटिक प्यार की तरह प्रदर्शित करते हैं. 

प्यार को अब बुनियादी हवस के लिए प्रतिस्थापित किया जा रहा है .. परिवार के मूल्यों और आध्यात्मिक क्षय को खत्म करना न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का उद्देश्य है। समलैंगिकों को "यौन उन्मुखीकरण" की पहचान रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है....

'' सभी समलैंगिक चीज़ें"'की इलुमिनेटी(न्यू वर्ल्ड ऑर्डर) पदोन्नति ज्यादातर लोगों की जानकारी से बहुत ज़्यादा गहरी और भयावह भूमिका निभाती है ... अजीब दिखने और व्यवहार करने वाले समलैंगिकों को ऐसे दिखाया जाता है जैसे वो दुनिया के बड़े उपहार हों....

अमरीका में तो और भी ज़्यादा हो गया है... वहाँ पर कई अजीब किताबें--जैसे की डैडीस न्यू रूममेट,डैडी की शादी, किंग ऐंड किंग-- स्कूल के सिलाबस में ADL द्वारा लाई गई हैं जिससे छोटे बच्चे अश्लील विकृत सेक्स कबूल को सही समझें.

यह सब यह जानने के बावजूद कि अमेरिका में एड्स जैसी विभिन्न बीमारियों के कारण औसत समलैंगिक 44.7 से कम उम्र में मर जाता है। ... यह तब होता है जब आप प्रकृति के नियमों के खिलाफ जाते हैं …

स्कूलों में ब्रेनवॉशकिया जाता है कि समलैंगिकता न केवल प्राकृतिक बल्कि जीवन का एक बेहतर तरीका है और "जीवन-विकल्प" की कई रोमांचक वस्तुओं में से एक है. 

बिग ब्रदर ने अमेरिकन साइकाट्रिक एसोसिएशन (एपीए) को समलैंगिकता पर उनकी निंदा को दूर करने के लिए मजबूर किया। …इसलिए अब बिका हुआ एपीए कहता है की समलैंगिक होना विकृति नहीं बल्कि एक अवस्था है-जैसे बाएँ हाथ वाले लोग होते हैं.

वे दावा करते हैं की यह मेडिकल निर्णय है जबकि उनसे जबरन ऐसा करने को कहा गया था.

मुझे बेनामी मीडिया द्वारा कट्टर चित्रित किया जाएगा, और निंदा की जाएगी यह कहने के लिए कि गानड्ड में लंड घुसाना विकृति है - जबकि जो कीड़े मूँह वाले मलिच इसका समर्थन करेंगे उन्हें "सज्जन विश्व नागरिक" चित्रित किया जाएगा.

यहूदी बिग ब्रदर नियंत्रित मीडिया ने पहले से ही मशहूर ऐतिहासिक लोगों को झूठी से समलैंगिक घोषित किया है.

इसका मुख्य कारण सरल है: यह समलैंगिकों को सकारात्मक छवियों (यानी "सकारात्मक" प्रतीकों और मॉडल) के साथ जुड़ाता है; जैसे विज्ञापनदाता सेलिब्रिटी फ्रीडम,मुक्ति आदि जैसे कैच वाक्यांशों का उपयोग करते हैं …

मिररनाउ न्यूज़ चैनल की फाय डी सूज़ा ने समलैंगिकों को कूल बताया है.

युवा पत्रकारों को गे समलैंगिकता का समर्थन करने के लिए मजबूर किया जाता है वरना उनकी नौकरी चली जाएगी.

मास मीडिया, यहूदी नियंत्रित हॉलीवुड और अकादमिक ने खुराफाती से नैतिक इंद्रियों पर हमला करके  "समलैंगिक संस्कृति" को सफलतापूर्वक तैयार किया है .....

सेंसर चेयरपर्सन यहूदी लीला सेम्सन और करण जौहर (लेने वाला गे) ने भारतीय स्क्रीन पर समलैंगिकता शुरू की।

बिग ब्रदर के द्वारा टी वी और फिल्मों में समलैंगिकों को अच्छे चरित्र वाले व्यक्ति की तरह चित्रित किया जाता है.

कैथेलिक बिशप ने बच्चों को सेक्स खिलौने की तरह इस्तेमाल करना स्वीकार्य किया है....  पोप फ्रांसिस को समलैंगिक अधिकार पत्रिका द एडवोकेट द्वारा एक पुरस्कार दिया गया था ....

श्री श्री रविशंकर, सद्गुरु जग्गी वासुदेव जैसे दुष्ट गुरु समलैंगिकता को सपोर्ट करते हैं क्यूंकी उन्हें जिओनिस्ट यहूदियों से चंदा मिलता है..

हर शहर की समलैंगिक परेड में वही सड़े हुए चेहरे नज़र आते हैं जो की विदेशी वित्त पोषित एन जी ओ से चंदा प्राप्त करते हैं.

जब दीपिका पादुकोण कहती है कि भारत पिछड़ गया है, तो यह उल्टा है ... इसका मतलब है कि भारत ने प्रगति की है .... दीपिका पादुकोण भारतीय महिला के नाम पर कलंक है …

ये चित्रपुर मट्ट वाली महिला श्याम बेनेगल और गिरीश कर्नाड जैसे देशद्रोहियों की बिरादरी की है. ये महिला AIB रोस्ट के सामने वाली सीट पर बैठकर हर गान्ड्ड वाले सेक्स के मज़ाक पर ऐसे हंस रही थी जैसे गधा ताज़ी टट्टी को देखकर हंसता है.

आज बॉलीवुड यहूदियों द्वारा चलाया जाता है जो मुसलमान या हिंदू बनने का नाटक करते हैं। इनमे से ज़्यादातर पाकिस्तान के पेशावर शेत्र से आए थे. नीली आँखों वाला कपूर खानदान भी यहूदी है.

बॉलीवुड स्टार जो समलैंगिकता का समर्थन करते हैं उन्हें अमरीकी फिल्मों में काम मिलता है.

हम जानते हैं कि कौलेजियम के न्यायाधीशों के पास विदेशी समर्थन हैजब वे न्यायिक सीमाएँ पार करते हैं। । । । जजों ने समलैंगिकता, बॉलीवुड और क्रिकेट को प्राथमिकता दी है। ।

भारत में बिल्डरबर्ग क्लब के पैसों पर पालने वाली ताकतें हैं जो भारत को नैतिकता ख़तम करना चाहते हैं.

http://captainvadakayilhindi.blogspot.com/2018/08/httpajitvadakayil.html

भारत में बिग बौस लाया गया है ताकि भारतीय समाज समलैंगिक,मलिच,विपरीत लिंग के वस्त्र पहनने वाले लोगों को सामान्य नज़रिए से देखे..

भारातमाता 15 साल में विश्व-शक्ति बनने जा रही है---इससे पहले न्यू वर्ल्ड ऑर्डर चाहता है की भारत अंदर से ध्वस्त हो जाए.

हिजड़ों को समलैंगिकों के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. हमें हिजड़ों के लिए दया है लेकिन समलैंगिकों के लिए नहीं. 

अगर मोदी भारत को समलैंगिक देश बनाने में कामयाब होगा तो उसे नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा. हम भारतीय चरित्रहीन बनने के बजाए गुलाम बनना पसद करेंगे.

http://ajitvadakayil.blogspot.com/2015/08/homosexuality-pedophilia-deviant-porn.html

हमारी गोत्रा प्रणाली ने सुनिश्चित किया कि हमारे पास स्वच्छ डीएनए हो और गंदा खून ना हो सके .... भारत के सभी समलैंगिकों में विदेशी खून होता है.

पश्चिम मुल्क पतनशील(decadent) हैं क्यूंकी उनके पूर्वजों ने इंसान और सुवर का माँस खाकर अपने डी एन ए को दूषित कर दिया. इंसानों और सुवरों का एक जैसा डी एन ए होता है, केवल ईसाई और नास्तिक वाम्पन्ति लोग सुवर का माँस खाते हैं बाकी कोई नहीं खाता..

प्रतिशत से, पूरी दुनिया में भारत में सबसे कम -
  • समलैंगिक,
  •  खूनी-वारदातें,
  • यौन उत्पीड़न,
  • परेशानियाँ,
  होती हैं.

मुझे परवाह नहीं की बेनामी मीडीया इसके बारे मेंक्या बोलता है,मैने पूरी दुनिया घूमी है इसलिए मुझे मालूम है.

कुछ सफेद देशों में हर 7 में से 1 व्यक्ति गे होता है. मैने दुनिया देखी है;मुझे मालूम है.

इसका कारण भ्रष्ट डीएनए प्रोग्रामिंग है ... यदि इन देशों की सरकारें इस समस्या को संबोधित नहीं करतीं  तो एक क्रांति आएगी जिसे प्राचीन रोम के नीरो के खेल जैसी व्याकुलताएँ द्वारा प्रबंधित नहीं किया जा सकेगा... इन सभी देशों में रौक म्यूसिक, फुटबॉल मैच जनता को भटकाए रखने का काम करते हैं। ।

हमारे मुल्क में ये गे वाली प्राब्लम नहीं है.

बिग ब्रदर ने समलैंगिकों, क्रॉस ड्रेसर्स (कपिल शर्मा के शो में) और हर बिग बॉस रियलिटी शो में विचित्र प्राणियों को  वैध बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि हमारे बच्चों को यह सोचना चाहिए कि यह सब cool और सामान्य है ..

कपिल शर्मा के शो में तो क्रॉस-ड्रेसर कंडी दादी भी है.

श्री श्री रविशंकर और जग्गी वासुदेव जैसे दुष्ट गुरु हिंदू मज़हब के प्रतिनिधि नहीं हैं. ये दोनो टी वी पर आकर समलैंगिकता का समर्थन करते हैं ताकि इनके विदेशी ब्रांचें बंद ना हो जाएँ. फिर उन्हें विदेशी यू एन और फ्रीमेसन सेमिनारों में कोई नहीं बुलाएगा.


सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म में कोई आदमी पूजा नहीं कर सकता जो शादी-शुदा ना हो.

अनल सेक्स पाप है.

समलैंगिकता पाप है..

समलैंगिक समस्या से ग्रस्त जर्मनी, होलैंड, स्पेन, पोर्तुगाल, इज़राइल जैसे राष्ट्र अब भारत जैसे अन्य राष्ट्रों को अपनी तरह बनना चाहते हैं.


सेक्स के समय प्यार होना चाहिए, वासना नहीं.

भगवान ने ठहराया है की सेक्स योनि में मिशनरी पोजिशन में आँखें बंद रखकर,दोनो चाक्रों के मेल से ही किया जाना चाहिए.

ऐसा करने से स्पर्म एलेकट्रीकली चार्ज हो जाता है जिसके फलस्वरूप चैंपियन बच्चे पैदा होते हैं.

मौत के बाद, सबसे कम आवृत्ति(frequency) वाली आत्माएँ पहली नाक्षत्रिक स्तर पर जाती है. समलैंगिक और क़ातिलों की आत्माएँ इस स्तर पर जाती हैं. बाकी लोगों की आत्माएँ 2 से 6 स्तर तक जाती हैं,ये स्तर उनके कर्मों के हिसाब से तय होता है.

अच्छे कर्म वालों की आत्माएँ ज़्यादा frequency पर होती हैं.


हमें पता है की इंदु मल्होत्रा सुप्रीम कोर्ट की जज कैसे बनी...उसे कैसे मालूम की कितने जानवरों में समलैंगिकता होती है. ये सब उसे किसने बताया? क्या ये "वकील से जज बनी" इंदु मल्होत्रा ने स्वतःस्फूर्त ज्ञान प्राप्त किया? हमें मालूम है किसने उसे बताया है.

https://en.wikipedia.org/wiki/Chelsea_Manning

अमरीका ने चेल्सी मैनिन्ग नामक समलैंगिक व्यक्ति पर भरोसा किया और उसने ख़ुफ़िया जानकारी सबके सामने उजागर कर दीं.

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यह हिंदी पोस्ट नीचे के अंग्रेजी पोस्ट का हिंदी में अनुवाद है:
http://ajitvadakayil.blogspot.com/2018/09/supreme-court-strikes-down-sec-377.html



कप्तान अजीत वाडकायिल