बाबरी मस्जिद का विनाश, मुगल सम्राट बाबर-कॅप्टन अजीत वाडकायिल
शनिवार, 10 नवंबर, 2012
यह पोस्ट नीचे लिंक के पोस्ट का हिन्दी अनुवाद है:-
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बाबरी मस्जिद विवाद,पानीपत की पहली लड़ाई(1526), कोहिनूर हीरा,अयोध्या श्री राम मंदिर का वास्तु,विष्णु के वराहा और वामन अवतार,गोधरा दंगे,राणा संघा,सिल्हदि- कॅप्टन अजीत वाडकायिल
नीचे तस्वीर : सबसे पहली चीज़.बाबरी मस्जिद की नींव के नीचे अयोध्या के प्राचीन राम मंदिर के विशाल स्तंभों को देखें. तुलना में एक आदमी का आकार देखें. क्या वे अब भी यही कहते हैं कि बाबरी मस्जिद एक मंदिर के ऊपर नहीं बनाया गया था?
नीचे तस्वीर:-इस राम मंदिर के बारे में प्राचीन दस्तावेज से क्या पता चला?
हरि-विष्णु शिलालेख -
इस शिलालेख की पंक्ति 15 स्पष्ट रूप से हमें बताती है कि:-
लाइन 1 का वर्णन -
गोरे इतिहासकार प्राचीन भारतीय इतिहास को उजागर करने के लिए ग़ैर-आबाद रेगिस्तान में खुदाई कर रहे है,ताकि मिट्टी के बर्तनों और कीचड़ झोंपड़ी के अवशेषों को प्राप्त करके वे प्राचीन भारत का मज़ाक उड़ा सकें.
अरे उज्जैन, अयोध्या, दिल्ली, उदयपुर, पाटलिपुत्र आदि जैसे प्राचीन शहरों के मध्य केंद्रों में एक स्थान क्यूँ नही चुन लेते?अरे मैं भूल गया, आप तो ऐसे सर्जन की तरह हैं जो जानबूझकर दिल को किडनी समझकर मरीज़ को मार डालेगा,है ना?
मिया साहेब, ऐस क्यून है? मस्जिद के नीचे मंदिर?
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के कुछ साल बाद,मैं एक पाकिस्तानी मुख्य ऑफिसर और एक पाकिस्तानी 3र्ड इंजीनियर के साथ जहाज पे था।
मुख्य ऑफीसर एक सुन्नी मुसलमान था. वह बहुत धार्मिक नहीं था और रात "8 बजे समुद्री घड़ी" के बाद मेरे केबिन में मेरे साथ वह बीयर पीने आता था. वह काला हिन्दुस्तानी बिहारी जैसा दिखता था.
3र्ड इंजिनियर शिया मुसलमान था। वह एक धार्मिक विद्वान था. वह एक मुल्ला बन सकता था, क्योंकि उसने कंदहार(आफ्गानिस्तान) और तेहरान(ईरान) से इस्लामिक स्टडीस की थी . वह इमरान खान की तरह हॅंडसम और सुंदर दिखता था. वह मेरे केबिन में बैठता था और कभी-कभी 1930 से 2000 बजे तक मेरे साथ कोक पीता थे।
3र्ड इंजिनियर मेरा प्रशंसक था, और मुझपे भरोसा करता था। वह मेरे साथ इस्लाम और कुरान पर चर्चा करना पसंद करता था। वह अपने इस्लामी विचारों में इतना कट्टर था, कि अपनी सभी किताबों के पहले पन्ने पे उसने "अमरीका मुर्दाबाद,इज़राईल मुर्दाबाद" लिखा हुआ था हालाकि वो दिल का अच्छा था. जब मैं केबिन निरीक्षण के लिए गया था और वह इंजन कक्ष में था, तब मैने ऐसा देखा था. उसके केबिन में एक कुरान थी, एक चुंबकीय कम्पास, और एक नमाज़ की चटाई थी, जो शान से रखी हुई थी.
3र्ड इंजिनियर, मुग़ल सम्राट बाबर के बारे में बहुत कुछ जानता था,क्योंकि यह उसके इस्लामी स्टडीस का हिस्सा था। कैप्टन के केबिन में 3 इंजिनियर का आना सामान्य नहीं है. लेकिन वह जहाज़ पे अकेला था क्योंकि वहाँ उसके ज़्यादा दोस्त नहीं थे और सुन्नी शीया से बात नहीं करते. मुझसे बात करके उसे राहत मिलती थी. मैं उसको अच्छे से समझता था.
जिस दिन उसे जहाज़ से जाना था, उसने मुझसे कहा कि मैं उससे ज़्यादा इस्लाम के बारे में जानता हूं। उसने मुझे अपना टेलीफोन नंबर दिया और कहा,कि कभी भी मेरा जहाज पाकिस्तान में आए तो मुझे उसे फोन करना चाहिए और फिर वह मुझे एक दौरे के लिए बाहर ले जाएगा. उसने कहा की उसकी पोलिटिकल लोगों से जान-पहचान है क्योंकि हिंदुस्तानियों को शोर पास नहीं मिलता. यदि आप पकड़े जाते हैं, तो इसका मतलब आपको 2 दशकों तक जेल होगा(जैसे कुलभूषण जाधव).
वह एक इस्लामिक विद्वान से करने वाला था . उसने मुझे उसकी फोटो दिखाई- वह बहुत सुंदर महिला थी. मैंने उसे सलाह दी, कि उसे एक ऐसी लड़की से शादी करनी चाहिए, जिसका कट्टर धर्म से कोई लेना-देना ना है, क्योंकि वह उसे खुश नहीं रख पाएगी.
जब वह कैश और दस्तावेजों को इकट्ठा करके जहाज़ छोड़ने वाला था तब उसने मुझे कहा कि वह मेरी सलाह के अनुसार एक ऐसी लड़की से शादी करेगा जो खुश और दुनियादारी हो. उसने मुझे ये भी बताया कि उसने अपनी किताबों से "अमेरिका /इसराइल मुर्दाबाद" का लेख हटा दिया और वह कट्टर इस्लामवादी नहीं रहा.
जिस दिन मैं जहाज में गया और उसका कमांड ले लिया तब चीफ़ इंजिनियर मेरे पास आया और बोला कि 3र्ड इंजिनियर(शीया मुस्लिम) विरोध पर है और काम नहीं कर रहा.उसने बताया कि शीया को सेकेंड ऑफीसर ने मक्का की दिशा ग़लत बताई.
खैर,जहाज बंदरगाह से बाहर निकल जाने के बाद, मैं दोपहर के भोजन के लिए नीचे चला गया। कॅप्टन की मेज 6 कुर्सियों के साथ थी. दोपहर के भोजन के बाद मैंने चीफ़ इंजिनियर को बताया कि उन्हें 3र्ड इंजिनियर को 12 से 4 घंटे की ड्यूटी में राहत मिले और उसके साथ उसे ओफ़िसेरोन के सैलून में आना होगा।
वो जल्द ही आगया और मैने उससे उसकी प्राब्लम के बारे में पूछा. शुरू में उसने कहा कि वह घर जाना चाहता है वग़ैरह-वग़ैरह. थोड़ी देर बाद उसने असली वजह बताई .सेकंड ऑफीसर ने उसको मक्का की उल्टी दिशा बताई जिससे उसकी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँची. आमतौर पे वह अपने कम्पास से ही दिशा का पता लगाता था लेकिन उस दिन समुद्र तूफ़ानी था और बारिश भी हो रही थी.
तो मैं गोल टेबल पे घड़ी के 12 की दिशा में बैठ गया. मैने उसे घड़ी के 4 की दिशा में चेयर पे बैठाया. मैने उससे पूछा,"क्या मैं तुम्हारे दाएँ पे हूँ या बाएँ पे"? उसने कहा-"आप मेरे दाएँ पे हैं".तब मैने उसे घड़ी के 8 वाली चेयर पे बिठाया.फिर मैने पूछा,"क्या मैं तुम्हारे दाएँ पे हूँ या बाएँ पे?" तब उसने कहा, "अब आप मेरी बाईं ओर हैं".
तब मैंने कहा "कल्पना करो कि मैं मक्का हूं .और अब कल्पना करो कि तुम्हारा परिप्रेक्ष्य(नज़रिया) बदल गया है क्योंकि जहाज का रास्ता बदल गया है. और मान लो कि यह टेबल एक गोल दुनिया है".
उसे समझ गया. उसने अपनी ग़लती के लिए माफी मांगी और बात ख़तम हो गई. उसके बाद उसने अच्छे से अपना काम किया.
जब दुनिया गोल है तो आप दोनो दिशाओं से जाकर भी एक ही जगह पे पहुचेंगे. एक रास्ता बस लंबा पड़ेगा. कभी-कभार लंबी पूरब-पश्चिम यात्रा में हम नाविक /सेलरों को भी यह दिक्कत आती है-यदि पूरब जायें या पश्चिम .
6 9 बन सकता है अगर आप ग़लत दिशा से देखें. अब GOOGLE में टाइप करें-- CULTURAL WISDOM –VADAKAYIL.
कुछ उदाहरण हैं जिन्हें मैंने शिया पुरुष को सिखाया था और वह इसके बारे में बहुत उत्साहित था.
एक दिन हमने बाबरी मस्जिद विध्वंस पर चर्चा की। वह इसके बारे में हक़ीकत में परेशान था। ऐसा नहीं था कि वह राजनीति खेलने की कोशिश कर रहा था. वह मुगल सम्राट बाबर को एक नायक मानता था. हाँ,इमरान खान जैसा दिखने वाले और डीएनए वाले एक व्यक्ति के लिए बाबर हीरो है. इसलिए पाकिस्तान ने अपनी मिसाइल का नाम बाबर रखा है.
तो मैने उससे पूछा,"1947 के बाद बाबरी मस्जिद जैसे और कितने हिन्दुस्तानी मस्जिद तोड़े गए हैं".
वह किसी अन्य के बारे में नहीं जानता था.
फिर मैंने उससे पूछा "अपने दिल पे हाथ रखके मुझे बताओ - 1947 के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कितने हिंदू मंदिर नष्ट हुए हैं?"
उसे बेवक़ूफ़ जैसा महसूस हुआ.
फिर उसने उत्तर दिया, "500 से अधिक" - जिसमें मैंने उसे बताया कि वास्तविक संख्या उस से दोगुनी है।
मैंने उससे पूछा, "क्या तुम जानते हो कि हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद को क्यों तोड़ा?"
उसे इसका जवाब मालूम था. उसने कहा, "इस अयोध्या मस्जिद का असली नाम बाबरी मस्जिद नहीं बल्कि मस्जिद-ए-जन्मस्थान था और यह एक प्राचीन मंदिर के पत्थरों से उसके ही फाउंडेशन पे बनाया गया था."
कुछ दिनों पहले ही मैंने उससे कहा था कि काबा के दक्षिण पूर्व के किनारे 5 फुट ज़मीन से उपर स्थित काला पत्थर,एक शिव लिंग है. वह दंग रह गया था अगले दिन मेरे केबिन में नहीं आया.
उसके कुरान पे नंबर 786 लिखा हुआ था. वह इस संख्या को समझा नहीं सका, वह यह कहने लगा कि यह बिस्मिल्ला का प्रतिनिधित्व करती है. वो दंग रह गया जब मैने उसे बताया कि इस नंबर को शीशे में देखने से ओम दिखता है(संस्कृत नंबर सिस्टम).
वह दो दिन बाद आया, जिसमें उसने कहा कि वह इतना परेशान हुआ कि मक्का का मुख्य आकर्षण शिव लिंगम है- और यहां तक कि उसने शिव के लंड को भी चूमा।
मैने उसे बताया कि यह भगवान शिव की पीनियल ग्रंथि(ग्लैंड) का प्रतिनिधित्व है, न कि उनके लंड का जिसके बाद वह संतुष्ट हो गया.
उसने बताया कि अब वे किसी को काले पत्थर को चुम्बन या स्पर्श करने की अनुमति नहीं देते हैं। वह दस बार से ज़्यादा बार मक्का जा चुका था.
मुसलमान 786 को इस मुहावरे की तरह मानते हैं:
بسم الله الرحمن الرحيم bism illāh ir-raḥmān ir-raḥīm("in the name of Allah, the compassionate, the merciful").
बॉलीवुड फिल्म कुली में अमिताभ बच्चन ने 786 का टैग लगाया था और उसके इस्लामिक विद्वान कूली मित्र ने उसे बताया कि यह इस्लामिक संख्या,हिंदू ओम मंत्र के समान है.
पहली बार, उसके सभी दोस्तों और रिश्तेदारों ने उसे पत्थर पे घिसने के लिए एक रेशम रूमाल दिया फिर उसने एक-एक करके रगड़ना शुरू किया और चौकीदार उससे नाराज हो गया और उसे एक कोड़े से मारने लगा और उसने अपने शरीर के सभी हिस्सों से ब्लीडिंग शुरू होने तक कपड़े के टुकड़ों को रगड़ना जारी रखा।
हमारे वेदों के अनुसार,शिव लिंगम एक काला मीटिओराइट पत्थर है जिसमें से डीएनए ब्रह्मांड से पृथ्वी पर बरसा था. इसमें "जीवन का स्रोत" होता है(सगाला/ डी.एन.ए).
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फिर मैने पूछा-मस्जिद बनने के बाद से ही मुघल वहाँ पे इबादत क्यूँ नही करते थे?
उसने कहा, "इस्लामिक परंपरा के अनुसार यह मस्जिद मस्जिद की तरह नहीं दिखता, इसे बाबर के जनरल मीर बक्शी ने बनाया जो कि हिजड़ा था,जिसे इस्लाम का ज्ञान नही था. मुगलों ने नमाज से पहले शरीर के अंग धोने के लिए उजु और मस्जिद में बड़ी खाली जगह दोनो का निर्माण नहीं किया था.
मैं सहमत हुआ "हां, इस्तांबुल के गुंबद वाले मस्जिदों में आमतौर पर अजन के लिए मीनार होते हैं ताकि वफ़ादारों को नमाज़ के लिए बुलाया जाए,जबकि बाबरी मस्जिद में कोई मीनार नही था .
फिर मैं उसे असली मुद्दे पे ले आया जिसे वो शुरूवात में ना जानने का नाटक कर रहा था.
उसने कहा,"मुगलों को अंदर एक सुअर की मूर्ति मिली। यही वजह थी कि मुसलमान वहाँ पे नमाज़ नही पड़ते थे.कौन जहन्नुम में जाना चाहता है?"
फिर मुझे उसे विष्णु के दस अवतारों को समझाना पड़ा।
विष्णु के दस अवतार हैं:-
1.मत्स्य(मछली)
2.कूरमा(कछुआ /कासव)
3.वराहा(सुअर /डुककर)
4.नरसिम्हा(मानव शेर)
5.वामन(बौना /ठेंगू)
6.परशुराम(क्रोधित पुरुष,कुल्हाड़ी वाला राम)
7.राम(उत्तम पुरुष ,अयोध्या का राजा)
8.कृष्ण(दिव्य राजनेता)
9.अयप्पा
10.कल्कि(महान योद्धा,अंतिम अवतार).
तीसरा अवतार एक सुअर नहीं था, बल्कि एक बोर(BOAR) था, जो निश्चित रूप से उसी श्रेणी में आता है।
भगवान विष्णु ने वराह अवतार या बोर अवतार ग्रहण किया, ताकि वो हीरण्यक्ष को हरा सके जो पृथ्वी को ब्रह्मांडीय महासागर के नीचे तक ले गया था. वराह और हिरण्यकक्षा के बीच लड़ाई में बहुत लंबा समय लगा और आखिर में वराहा जीता।
वराह ने पृथ्वी को अपने दांतों के बीच महासागर से बाहर किया और इसे ब्रह्मांड में अपनी उचित कक्षा में बहाल किया। विष्णु ने इस अवतार में पृथ्वी (भूदेवी) से शादी की. उसने फिर अपने बेटे, एक आशुरा, नारकासुरा को जन्म दिया। वराह को या तो पूरी तरह से पशु या मानव विज्ञान के रूप में दर्शाया गया है, जिसमें मनुष्य के शरीर पर सूअर का सिर होता है।
बाद के रूप में उनके पास चार हथियार दिखाए हैं, जिनमें से दो पहिया और शंख-शेल रखते हैं जबकि अन्य दो एक गदा(MACE), तलवार या कमल धारण करते हैं या आशीर्वाद (या "मुद्रा") देते हैं। धरती को सूअर के दाँतों के बीच दिखाया गया है. यह अवतार ने पृथ्वी को प्रलय(बाड़) से पुनर्जीवित किया और एक नए कल्प (ब्रह्मांडीय चक्र) की स्थापना की.
GOOGLE में टाइप करें:- THE BANYAN TREE – VADAKAYIL
- ब्रह्मांडीय साँस लेना और छोड़ना (तमस / राजस - यिन-यांग) के बारे में जानने के लिए
फिर उसने कहा -ऐसी मूर्तियों के साथ एक इमारत में इबादत करना तो भूल ही जाओ,इस्लाम में तो सुअर की तरफ देखने की भी इजाजत नहीं है.
इसलिए मैंने उन्हें बताया " सिर्फ मुगल ही नहीं बल्कि सभी भारतीय मुसलमान भी उसी तरह महसूस करते हैं. मेरे एक मुस्लिम दोस्त ने चेन्नई में एक नई फिएट कार खरीदी और अपने दोस्त के साथ उसपे सवारी करते हुए, एक चलते हुए सुअर को सड़क पर कुचल दिया. कार को कुछ नहीं हुआ.
लेकिन उसे इसको बेचना पड़ा, क्योंकि उसके मित्र ने मस्जिद में जाकर सभी को बताया। और मस्जिद में सबने उसे कार बेचने की सलाह दी। आख़िरकार वह हिंदुओं से भी अच्छी कीमत नहीं पा सका और उसे इसे एक गरीब ईसाई को बेचना पड़ा, जो इसे अफोर्ड नहीं कर सकता था और उसे बहुत कम पैसे मिले.
बाबर की डायरी बाबरनामा में अयोध्या मस्जिद का कोई संदर्भ नहीं है.समकालीन तारीख-ए-बाबरी में लिखा है कि बाबर की सेना ने "चंदेरी में कई हिंदू मंदिरों को ध्वस्त दिया".
मेरे पाकिस्तानी 3र्ड इंजिनियर के बारे में बहुत हुआ.
1992 में बाबरी दंगों के बाद मुसलमानों की निगरानी में साइट पर एक सरकारी खुदाई हुई थी।
उन्होंने पाया कि मस्जिद वास्तव में एक भव्य हिंदू मंदिर की नींव पर बनाया गया था, एक ही सामग्री का उपयोग करके. उन्हें एक मोटे पत्थर के स्लैब पर संस्कृत शिलालेख भी मिला।
संस्कृत की 20वी कविता में यह लिखा था;
"उसकी आत्मा के उद्धार के लिए राजा ने,वामन अवतार के छोटे पैरों पर अपनी आराधना देके,विष्णु हरि (श्री राम) के लिए एक अद्भुत मंदिर का निर्माण करने गया, आसमान तक पहुंचने वाले पत्थर के अद्भुत स्तंभ और ढांचे के साथ और सोने से रचा हुआ - एक मंदिर इतना बड़ा कि दुनिया के इतिहास में कोई भी अन्य राजा ने ऐसा पहले कभी नही बनाया था.यह मंदिर मंदिर-अयोध्या के शहर में बनाया गया है। "
बर्बादी के दिन 260 से अधिक अन्य हिंदू कलाकृतियों को बरामद किया गया था जिससे साफ-साफ पता चलता है कि यह मस्जिद एक मंदिर के मेटीरियल से ही बनाया गया था.
विशाल पत्थर की स्लैब के शिलालेख पर 20 लाइनें, 30 श्लोक (छंद) हैं, और यह संस्कृत में नागरी लिपी में लिखी गई है।
इस संदेश को एपिग्राफिस्ट, संस्कृत विद्वान, इतिहासकारों और पुरातत्वविदों(ARCHAEOLOGISTS) की एक टीम द्वारा समझा था .
भगवान विष्णु के राजा और वामन अवतार के बारे में अधिक जानने के लिए-
google में टाइप करें ONAM 2012- VADAKAYIL.
यह असुर राजा महाबली, की राजधानी केरल में थी। यही कारण है कि हम केरल में दीवाली नहीं मनाते. दिवाली देवो की असूर पर जीत के जश्न में मनाई जाती है।
भारत के मुस्लिमों को इन सब पर विश्वास ना करने की आज़ादी है. लगे रहो,यहाँ इबादत करो और जन्नत में जाओ.
अयोध्या मंदिर, जिसे बाबर द्वारा नष्ट किया गया था, हिंदू वास्तु के अनुसार बनाया गया था। उत्तर पूर्व में एक जल निकाय है. सरयू नदी इसके पास से बहती है।
सरयू नदी का कई बार वेद (5000 ईसा पूर्व) और रामायण (4300 ईसा पूर्व) में उल्लेख किया गया है। बहराइच जिले में करनाली (या घाघरा) और महाकाली (या शारदा) के संगम से सरयू रूप लेती है। महाकाली या शारदा भारतीय-नेपाली सीमा बनाती है.
ऋग्वेद में नदी का उल्लेख तीन बार किया गया है(आर.वी. 4.30.18 / आरवी 5.53.9). सरयू को बाद में भजन आर.वी. 10.64 में सिंधु और सरस्वती (सबसे प्रमुख ऋग्वेदिक नदियों में से दो) के साथ जोड़ा गया है।
रामायण राम,सीता और लक्ष्मण को सरयू नदी पार करने का वर्णन करता है। रामायण (1.5.6) में, सरयू प्राचीन शहर अयोध्या के पास प्रवाहित हुआ और यहां पर भगवान राम,विष्णु के सातवें अवतार ने कोशल के सिंहासन से अवकाश(रिटाइर) लेने के बाद खुद को अपने अनन्त, वास्तविक महाविष्णु रूप में वापस जाने के लिए विसर्जित किया. उनके भाई, भरत और शत्रुघ्न भी उनके साथ जुड़ गए, जैसा कि कई अनुयायियों ने भी किया। सरयू नदी के किनारे पर राजा राम का जन्म हुआ था।
रामायण के अनुसार, सरयू नदी का किनारा भी वही स्थान है जहां राजा दशरथ ने गलती से श्रवण कुमार को मार डाला था और इसे पृथ्वी के नीचे बहने वाली एकमात्र नदी भी कहा जाता है।
इटॅलियन 'वेट्रेस बनी महारानी' ,उसके कम बुद्धि वाले बेटे और उनके साथ की मंडली के अनुसार भगवान राम एक मिथ्या है.
लेकिन कोरियाई वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए यहां आते हैं।
वे यहां तक कि अयोध्या शहर प्रायोजित भी करना चाहते हैं-ऐसा उनका विश्वास है।
google में टाइप करें :-THE KOREAN BRAHMINS- VADAKAYIL
पुराने मंदिर के खंभे फिर से इस्तेमाल किये गये, जिसमें हिंदू देवताओं और देवियों की प्रतिमाएं थीं जो कि इस्लाम की बुनियाद के विरुद्ध है .. तीनों न्यायाधीशों ने स्वीकार किया कि मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर है और राम मंदिर को विशेष रूप से ध्वस्त किया गया था। अन्य बड़े बड़े मंदिर जो मस्जिद में परिवर्तित हुए थे वो हैं कृष्णा जनंभूमि(मथुरा), काशी विश्वनाथ (बनारस).
जब से बाबरी मस्जिद बनी,तब से इस मस्जिद पर हिंदुओं द्वारा सैकड़ों हमले किए गए. मुस्लिम आक्रमणकारी शासन के दौरान, इन विद्रोहों को सार्वजनिक रूप से टॉर्चर और फांसी देकर दबाया गया. ब्रिटिश शासन के दौरान, वे इसे "डिवाइड आंड रूल" के लिए इस्तेमाल किया . बल्कि वे हिंदुओं को याद दिलाते थे कि यह उनका राम मंदिर है।
फैजाबाद के जिला गैजेटियर(अंग्रेज़) 1905 के अनुसार,1855 तक, हिन्दू उस बिल्डिंग में पूजते थे. लेकिन सिपाही विद्रोह (1857) के बाद, एक बाहरी दीवार मस्जिद के सामने बनाई गया और हिंदुओं को अंदर यार्ड तक पहुचने से मना किया गया . इसलिए हिंदुओं ने प्रार्थना करने के लिए एक चबूतरा बनाया, जो की दीवार के बाहर है।
1934 के (अंग्रेजों द्वारा कराए गए) हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक दंगों के दौरान,मस्जिद के चारों ओर की दीवारों और मस्जिद के एक गुंबद को क्षतिग्रस्त किया गया था। इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा फिर से बनवाया गया था।
स्वतंत्रता से पहले 1947 में, लॉर्ड माउंटबैटन ने एक लिखित हुकूमनामा देकर मुस्लिमों के मस्जिद के 200 मीटर के भीतर आने पर रोक लगा दी. इसे अँग्रेज़ों ने लागू किया. मुख्य गेट को लौक कर दिया गया. हालांकि, उन्होंने हिंदू तीर्थयात्रियों को साइड के दरवाज़े के माध्यम से प्रवेश करने की इजाज़त दी।
भारतीय गृह मंत्री शंकर राव चव्हाण ने साइट पर एक हाई प्रोफ़ाइल यात्रा की। उनके साथ कई हिंदू और मुस्लिम विशेषज्ञ भी थे। हिंदू वास्तु, हिंदू मूर्तियों का निरीक्षण करने के बाद, उन्होंने कहा,"अब मैं बाबरी मस्जिद देखना चाहता हूं।" उन्हें बताया गया की यही बाबरी मस्जिद है. चव्हावान ने खुद को बेवकूफ़ जैसा महसूस किया.
मिसटर के.के. मुहम्मद, उप अधीक्षक पुरातत्वविद् (archaeologist, मद्रास सर्कल ) ने अंग्रज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस को 15 दिसंबर 1990 में यह कहा:-
"मैं बड़े प्रमाण के साथ इसे दौहरा सकता हूं(यानी बाबरी मस्जिद द्वारा विस्थापित होने से पहले हिंदू मंदिर की मौजूदगी)--क्योंकि मैं एकमात्र मुस्लिम था जिसने 1976 में प्रोफेसर लाल के अंडर 1976 में अयोध्या की खुदाई में भाग लिया था।. मैंने बाबरी साइट के पास उत्खनन(excavation) का दौरा किया है और खुदाई के आधार स्तंभों को देखा।
मुहम्मद ने और कहा:"जैसे मक्का मुसलमानों के लिए पवित्र है वैसे ही अयोध्या हिंदुओं के लिए पवित्र है.मुसलमानों को अपने हिंदू भाइयों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और राम मंदिर के निर्माण के लिए ढाँचे को खुद से सौंप देना चाहिए "
क्या कोई भी मुसलमान इस मस्जिद में इबादत करेगा, जिसमे मुघलों ने नेमाज पड़ने पे रोक लगाई थी?
क्यूँ इतना हल्ला हो रहा है?
केवल पॉलिटिक्स के लिए?
अगर मक्का अयोध्या के स्थान पर होता, तो मुसलमानों का क्या रवैया होता?हक़ीकत में पाकिस्तानियों को हिन्दुस्तानी मुसलमानों से ज़्यादा चिंता है बाबरी मस्जिद की. पाकिस्तानियों को मालूम है कि बाबरी मस्जिद हिंदुओं का काबा है।
उन्होंने अभी तक इस सच्चाई को स्वीकार नहीं किया है कि भारत के मुसलमान पाकिस्तान में जाना नहीं चाहते,जबकि पाकिस्तान के सभी हिंदू भारत में आना चाहते हैं.
क्या पाकिस्तानी हिन्दुस्तानी मुसलमानों में एक गुप्त मतदान या पोल(निष्पक्ष थर्ड पार्टी द्वारा) करवाना चाहेंगे यदि वे पाकिस्तान जाना चाहेंगे या नहीं और यही पोल उल्टा पाकिस्तानी हिंदुओं में भी करवाएँगे? मैं आपको बताउ, इसका नतीजा शून्य पर्सेंट और सौ पर्सेंट होगा.
शर्त लगाओगे?
लानत हो!!
हमारे तीन मुस्लिम राष्ट्रपति रहे हैं-- क्या कोई हिंदू पाकिस्तान का राष्ट्रपति बन सकता है?
भारत में पूरी दुनिया से ज़्यादा मुसलमान हैं(इंडोनेषिया को छोड़के).
1947 के पारटिशन के बाद, हिन्दू भारत में आए, पर मुसलमान पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। ब्रिटिश (रोथसचाइल्ड) ने जान-बूझकर दंगे करवाए ताकि मुसलमान पश्चिम और ईस्ट पाकिस्तान में जाएँ.
यह हिमालय के दोनों ओर एक इस्लामिक अवरोध(barrier) था ताकि सोविएत या चाइनीस कम्यूनिस्ट(साम्यवादी) इंडियन महासागर पे पकड़ ना बना लें. याद रहे,इस्लाम और कम्यूनिसम तेल और पानी की तरह हैं.
अब, मैं बहुत सारे ऐतिहासिक झूठों का पर्दाफाश करूँगा, जो मुघलों ने खुद को "गुलाब की सुगंध" जैसा दिखाने के लिए लिखा था.
बाबर आधा ही पड़ा-लिखा था. क्योंकि वह 11 वर्ष की उम्र से ही युद्ध का अभ्यास कर रहा था। वह एक कवि या लेखक नहीं था.वो खुद के लेखकों को साथ लेकर चलता था,जिन्हें वो बताता था की क्या लिखना है.ये सामान्य था. यहां तक कि अलेक्जेंडर द ग्रेट का भी कवियों और लेखकों का गैंग था जिनका काम था उसे महानायक जैसा दिखना.
ऐसे सम्राट कभी भी युद्ध में हार के दौरान पीछे हट नही सकते,वे केवल निर्देशन में बड़े सम्मान से आगे बढ़ेंगे।
लगान फिल्म में,अँग्रेज़ एक क्रिकेट मैच ऐसे गाओंवालों से हार गए जिन्होने कभी क्रिकेट खेला ही नहीं था,और अँग्रेज़ों को सौदे के मुताबिक गाओं छोड़कर जाना पड़ा---पर वे बड़े स्टाइल में छोड़कर गए और पूरा गाओं हीन भावना से उन्हें जाते हुए देख रहा था.
बाबरनामा(बाबर की चिट्ठियाँ या तुज़क-ए-बाबरी) ज़हीर-उद्-दीन मोहम्मद बाबर(1483-1530) की संस्मरण(memoirs) हैं जो कि मुघल राज का स्थापक था."कहा जाता है" कि वह तिमूर के पोते के पोते का पोता था.
यदि आप तिमूर के हारेम के आकार के बारे में जानते हैं तो आपको "कहा जाता है" का मतलब समझेगा. बाबर भाड़े का सिपाही(mercenary) था.कोई भी सफलता सफलता जैसी नहीं होती, है ना?
इसे एक आत्मकथात्मक कार्य माना जाता है जिसे मूल रूप से छगाताई भाषा में लिखा गया था जिसे बाबर "तुर्की" कहता था जो कि अन्डिज़न-टिमुरिड्स की बोली जाने वाली भाषा थी.
बाबर के पाँच बच्चे थे-हुमायूँ(उसका वारिस) ,अस्करी मिर्ज़ा,गुलरुख बेगम,कामरन मिर्ज़ा. हुमायूँ के दो बच्चे थे--अकबर और मोहम्मद हकीम.
अकबर ने अपने दादा के संस्मरणों की बुरी स्थिति देखी और उसने इसे एक अति उत्तम रचना में बदलने का फैसला किया. असल में यह स्वार्थ का कार्य था, धोखाधड़ी, धोखे, 420सी, वासना से रहित अपने भव्य जीनों और रक्त को दिखाने के लिए.
ये वैसे ही है कि कई लोग टाई-सूट पहें कर एक साथ फोटो खिचवाएँ. भारत में उसके दादा के अभियान बहुत शर्मनाक थे और इसलिए अकबर,अपने दादाजी की तुलना में अधिक क्लास वाले, ने उन बुरे पन्नों को मिटा दिया.
अकबर के शासनकाल में, बाबर की डायरी को पूरी तरह से मुगल बादशाह द्वारा फारसी में अनुवाद करवाया गया;अब्दुल रहीम ने खुद से थोडा मिर्च-मसाला भी डाला.
अन्यथा, कितने लोग इन खराब शब्दों के साथ शुरू होने वाली डायरी लिखेंगे-------
अब बस आगे के रत्नों की जांच करें,छोटे से छोटा हिसाब-किताब, सब उसकी तरफ़दारी कर रहे हैं. इराक में अमेरिकी सरकार ने भी ऐसा ही किया. एक सबसे शर्मनाक युद्ध एम्बेडेड पत्रकारों द्वारा एक सम्माननीय युद्ध में परिवर्तित किया गया था. इन झूठे प्रचार खातों में अमेरिकी सैनिकों की "टट्टी की बदबू" भी नहीं आ रही थी।
बाद में एक एंबेडेड पत्रकार की अंतर-आत्मा जाग उठी और उसने कई चौका देने वाले राज़ खोले,जो कोई हिंदू या मुस्लिम राजा भी नहीं करेगा क्यूंकी ऐसा हमारी संस्कृति के खिलाफ है.
अब मैं चाहता हूं कि आप सभी बहुत ही चौंकाने वाले और परेशान करने वाले इराक़ी हाइवे-80 की कत्लोगारत के बारे में।
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2012/07/leander-bhupati-sania-ego-clashes-and.html
मैने जान-बूझकर इसकी ग़लत हेड्डिंग डाली क्योंकि यह पोस्ट यहूदी बिग ब्रदर द्वारा इंटरनेट से हटा दिया जाता.
अब बाबर की डायरी से "अच्छे" पैरा की जांच करें--
Quote---" एक व्यक्ति ने इब्राहिम बेग पर निशाना सादा.लेकिन तब इब्राहिम बेग चिल्लाया, "हाय हाय!";और उसने उसे जाने दिया और गलती से मेरी कांख(armpit) में गोली मार दी,ठीक उतनी ही दूरी से जितना एक चोवकिदार और गेट के बीच में होती है.मेरे कवच की दो प्लेटें टूट गईं. मैंने एक आदमी को मारा, जो रणभूमि से भाग रहा था, युद्ध के मैदान में अपनी टोपी का समायोजन कर रहा था।उसकी टोपी गिरी,वह दीवार से चिपक गया,उसकी पगड़ी से साष निकला."
अब मैं थोड़ा मसले से भटकता हूँ:
अब मुझे एक दिलचस्प घटना बताना है.अपने मास्टर्स रीवैलीडेशन कोर्स ख़त्म होने के बाद मैं ट्रेन में चेन्नई से कालीकट लौट रहा था फर्स्ट AC में. मैंने पाया कि सभी कालीकट के रोटरी क्लब से थे। जब भी मैं छुट्टी पे होता हूँ तब मैं रोटरी क्लब स्विमिंग पूल और हेल्थ क्लब में जाता हूं. वे रोटरीयन की शादी के लिए चेन्नई गए थे और वे एक साथ वापस आ रहे थे।
बीच में, डिब्बे में लगभग 20 वर्ष का एक युवा लड़का था.उसने लगभग हर किसी को दो बार देखा और फिर वह मेरे पास आया और 200 रुपये के लिए मुझसे पूछा, जो कि उस ज़माने में बहुत होता था. उसने कहा कि वह दिल्ली के एक कॉलेज का छात्र है जिसने चेन्नई में अपने सारे पैसे खो दिए और अब वह घर वापस जाना चाहता है।
तो मैंने उससे कहा "सुनो, मैं तुम्हें लंबे समय से देख रहा हूं। तुम काफ़ी लोगों को रेलवे प्लेटफॉर्म पर देख रहे थे, और अब मुझसे भीख माँगने के लिए आ गये हो.बात क्या है?क्या मैं तुझे गान्डू दिखता हाऊं?"
उसने जवाब दिया "महोदय, आप बड़े दिलवाले दिखते हैं। अन्य कोई 5 रुपया भी नही देंगे,200 रुपय तो दूर की बात है. घरपहुचने के बाद, मैं यह धन आपको आपके घर भेज दूंगा "।
परिचित कहानी-केवल एक मूर्ख और उसका पैसा हमेशा जुदा हो जाता है.
इसलिए मैंने उससे पूछा "कॉलेज में तुम्हारा सब्जेक्ट क्या है"
उसने जवाब दिया,"इतिहास,और मैं यहाँ प्रॉजेक्ट के मकसद से आया हूँ."
फिर मैने उसे साफ़तौर पे कहा,"मैं तुमसे इतिहास का एक सरल प्रश्न पूछूँगा जिसका जवाब हर हिस्टरी छात्र को पता है.अगर तुम्हे नहीं मालूम फिर भी मुझे जवाब चाहिए बस ये देखने के लिए कि तुम कितने दशक या शताब्दी दूर हो. "
उसने मुझे एक जवाब दिया जो कि सही उत्तर से 200 साल दूर था।
तो मैंने कहा "क्षमा करो दोस्त,तुम किसी अन्य अमीर गधे के साथ अपनी किस्मत ट्राई करना ".
वह डिब्बे से नीचे गया। मैं खिड़की से उसे करीब से देख रहा था. 5 मिनट के बाद, वह फिर से मेरे पास आ गया।
उसने पूछा, "सर, सही तारीख क्या है?"
तो मैंने उसे 200 रुपये दिए और कहा "साल 1526 है".
वह इतना खुश हुआ कि उसने मेरे पैरों को छुआ। मुझे लगता है केवल एक इतिहास का छात्र ही सही जवाब पूछने के लिए वापस आएगा.
पानीपत की पहली लड़ाई (दिल्ली से कुछ मील की दूरी पर) भारत में बाबर की पहली लड़ाई थी,उसके हमले के बाद. भाग्य के इस सैनिक ने 21 अप्रैल 1526 को इब्राहिम लोदी की सेना को हरा दिया।
इससे भारत में मुगल साम्राज्य की शुरुआत हुई. यह सबसे पहले लड़ाइयों में से एक था, जिसमें गनपाउडर आग्नेयास्त्रों और फील्ड आर्टिलरी शामिल थे। बाबर के पास बंदूकें और तोप थे। इब्राहिम लोढ़ी की सेना सैकड़ों हाथियों के साथ,12 गुना बड़ी थी.
इस महत्वपूर्ण लड़ाई का ऐतिहासिक रिकॉर्ड एक बड़ा झूठ है।
बाबर को एक भाड़े के सैनिक(mercenary) के रूप में भारत में आमंत्रित किया गया था।
मुसलमानों 335 साल पहले, भारत में बहुत समान तरीके से सत्ता मिली थी। 1191 ईस्वी में काबुल के शासक शहाबुद्दीन मुहम्मद घोरी को जयचंद्र राठोड द्वारा सोने की रिश्वत (सुपारी) दी गई थी. 1191 ईस्वी में काबुल के शासक शहाबुद्दीन मुहम्मद घोरी को जयचंद्र राठोड द्वारा सोने की रिश्वत (सुपारी) दी गई थी. जयचंद्र गुज्जर जातीय समूह के कन्नौज का गहदवाल राजा था,जो कि सुंदर दिखने वाले भारतीय राजा पृथ्वीराज चौहान iii (राजपूत की छहनाम राजवंश का राजा) को सबक सीखना चाहता था क्योंकि उसकी बेटी पृथ्वीराज के साथ भाग गई थी.
संयोगिता या समयुक्ता,राठौड़ की हठी लेकिन खूबसूरत बेटी थी। उसने चौहान की वीरता और सुंदरता के बारे में सुना था और उसे पसंद करती थी। उसने चुपके-चुपके उससे संवाद किया क्योंकि उसके पिता और चौहान में छत्तीस का आँकड़ा था. पृथ्वीराज और समयुक्ता का प्यार भारत का सबसे लोकप्रिय मध्यकालीन रोमांस है।
गुप्त अफ़फेयर के बारे में जानकार,राजा जयचंद्र को नाराज़गी हुई कि इस तरह की मनाही उसकी पीठ के पीछे हो रही थी. उन्होंने,एक स्वयंवर द्वारा,अपनी बेटी की जल्द शादी करवाने का निर्णय लिया. जल्दबाजी में उन्होंने दूर-दूर तक की रॉयल्टी को समारोह में आमंत्रित किया. पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर प्रत्येक योग्य राजकुमार और राजा वहाँ आमंत्रित थे जिससे संयुक्ता चिड़ गई.
चौहान को अपमानित करने के लिए, जयचंद ने स्वयंवर मैदान के गेट पर चौहान की जीवन आकार की मूर्ति स्थापित की. द्वारपाल के रूप में तैयार चौहान भड़क गया और उसने संयुक्ता को साथ ले जाने का फैसला किया।
समारोह के दिन,समयुक्ता ने हॉल से चलते-चलते सभी लड़कों को नज़रअंदाज़ करके शादी की माला पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना दी और उसे अपना पती घोषित किया.
चौहान, जो गुप्त रूप से छिपा हुआ था,उसने समयुक्ता को अपनी बाहों में लिया और तुरंत अपने घोड़े पे उसे ले गया. यह बहुत मशहूर कहानी है.
जयचंद ने गुस्से में बदला लेने की ठान ली.
छिपे हुए रणनीतिक खैबर पास हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला से 53 किलोमीटर की दूरी पर है। यह सफेद कोह पहाड़ों के पूर्वोत्तर भाग से कट जाता है. अपने सबसे कम पॉइंट पर,यह पास केवल 3 मीटर चौड़ा है। यह अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की उत्तरी सीमा को जोड़ता है और प्राचीन भारत में आने का एकमात्र रास्ता था. यदि आपके पास कोई मार्गदर्शक नहीं है तो आप मर जाते हैं.
जयचंद युद्ध में चौहान को पराजित करने के लिए ज़्यादा ताकतवर नहीं था,इसलिए उसने विदेशी मर्सिनरी मोहम्मद घोरी को सुपारी दी और खैबेर पास से आने की जानकारी भी दी.
1191 में,120,000 पुरुषों और घोड़ों की सेना के नेतृत्व में,शहाबुद्दीन मुहम्मद घोरी ने खैबर पास के माध्यम से भारत पर आक्रमण किया और पंजाब तक पहुंचने में सफल रहा। चौहान के पास 20000 पुरुषों और 300 हाथियों की ज़्यादा बड़ी सेना थी। तारायण शहर में थानेसर के निकट, वर्तमान हरियाणा में (दिल्ली से 150 किमी उत्तर) में दोनों सेनाएँ मिले।
इतिहास ने दोहराया (जैसे अलेक्जेंडर के लिए 326 ईसा पूर्व में) और शहाबुद्दीन मोहम्मद घोरी के घोड़े के घुड़सवार सैनिक 300 हाथियों के खिलाफ अपनी पकड़ नहीं बना सके। भयभीत घुड़सवार सेना ने रैंकों को तोड़ दिया और पूरी तरह से भ्रम में चौहान आसानी से जीत गया.
घोरी को कैदी बना दिया गया. उन्होंने अपनी जिंदगी की मांग की और सम्माननीय चौहान ने मूर्खता से उसे,समयुक्ता और बुद्धिमान मंत्रियों की सलाह के खिलाफ, काबुल लौटने की अनुमति दी। यह सबसे बड़ी ग़लती थी, जो ब्रिटिश शासन से 650 साल पहले मुक्त भारत में हुई जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम शासन भारत में आया.
घोरी वापस आफ्गानिस्तान गया और फिर एक साल बाद 1192 में ताराइन की दूसरी लड़ाई में, चौहान को एक मजबूत और बुद्धिमान सेना के द्वारा हराया.
पृथ्वीराज चौहान ने इसकी कभी उम्मीद नहीं थी क्योंकि उसकी सेना तब तक अपनी पत्नियों के साथ जीत का जश्न माना रहे थे. चौहान ने अपने ससुर जय चंद से सैन्य सहायता मांगी । जयचंद ने मायूसी में इसे ठुकरा दिया था.
पृथ्वीराज को बंधक बनाया गया और उसे ज़ंजीरों में घोरी के सामने लाया गया. उसने घोरी को आँख से आँख मिलके बात की जिससे घोरी बहुत क्रोधित हुआ. घोरी ने उसे आँखें करने करने का आदेश दिया, जिसपे निडर पृथ्वीराज ने घोषणा किया कि राजपूत की आँखें केवल मृत्यु आने पे ही नीचे होती हैं.
घोरी ने चौहान की आंखों में लाल गर्म कोयले डाल दिए और उसे अंधा कर दिया। उसने चौहान को कई दिनों तक अपमानित करने के बाद उसकी हत्या कर दी.
बेकार शकल वाले घोरी ने समयुक्ता का बेरेहमी से बलात्कार किया जिसके बाद समयुक्ता ने आत्महत्या कर ली. उसके पिता जयचंद को पश्चाताप हुआ,उसने बाद में यमुना नदी में खुद को डूबा दिया.
हजारों राजपूत महिलाओं ने अपने बच्चों के साथ आग में कूद कर खुद को मार डाला(जौहर). अनगिनत हिंदुओं को जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया.
घोरी के लेफ्टिनेंट, कुतुब-उददीन ऐबक ने बाद में भारत पर शासन किया और भारत के पहले मुस्लिम शासक वंश की स्थापना की। उसने 14 साल तक राज किया
उसके दामाद ने उसकी याद में प्रसिद्ध कुतुब मीनार और मस्जिद का निर्माण किया. इसे बाबरी मस्जिद की तरह बनाया गया था। ध्रुव स्तम्भ के नाम से एक खगोलीय वेधशाला(astronomical observatory) थी यहां। कुतुब मीनार सिर्फ एक सतही रूपान्तरण है।
पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद ही दिल्ली में हिंदू शासन का अंत हो गया.1192 ईस्वी में यह भारतीय इतिहास का बड़ा मोड़ था.
भारत, धरती पर सबसे अमीर और शानदार भूमि, अब 855 साल की गुलामी सहेगी.
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब तक 9 करोड़ हिंदू सबसे क्रूर तरीकों से मारे जाएँगे. तुर्क साम्राज्य अपने चरम पर, भारत से वित्त पोषित(फंडेड)) किया गया था।
ऊपर: कश्मीर का मार्थांडा सूर्य मंदिर।
1947 में ,जब हमने गुलामी के बंधन तोड़ दिए, तब भारत ग्रह का सबसे गरीब देश होगा;कुली और सपेरों का बदनाम देश.
English post:
ajitvadakayil.blogspot.com/2011/07/unquantified-holocaust-and-genocide.html
Hindi:-
http://captainvadakayilhindi.blogspot.in/2018/01/blog-post.html
वर्ष 1494 में, बाबर अपने पिता के मरने के बाद ,फर्गाना का शासक बन गया जो वर्तमान उजबेकिस्तान में स्थित है. 7000 ईसा पूर्व में, राजा विक्रमादित्य के शासन के दौरान, उजबेकिस्तान भारत का हिस्सा था।
बाबर ने समरकंद नामक एक शहर पर हमला किया और सात महीने के संघर्ष के बाद इस्पे कब्जा कर लिया।
बाबर ने,लोदी वंश के दौरान ,पंजाब की सीमा से चार बार भारत पर हमला किया। वह काबुल में अपनी राजधानी से आक्रमण किया करता था. जब भी वह बंदूकों के साथ आता था तब वह शक्तिशाली सेना से बुरी तरह मात ख़ाता था. ये बातें उसकी डायरी कभी नहीं बताएगी.
फिर 1526 में, उसे महल षड़यंत्र द्वारा हमला करने के लिए आमंत्रित किया गया---और उसे जीत का आश्वासन दिया गया, बशर्ते वह सही कीमत चुकाए.
शासक इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान लोधी, धोखे से सिंहासन को हड़पना चाहते थे।
यह जाना-माना तथ्य था कि मेवाड़ के राजपूत राजा राणा संघा की सेना इब्राहिम लोदी की सेना से ज्यादा शक्तिशाली सेना थी और वह दिल्ली से अफगान राजा इब्राहिम लोढ़ी को भागने के लिए तैयार था।
राणा संघा का हमला होने के बाद बहुत देर हो जाती. राणा संघा सूर्यवंशी राजपूतों के सिसोदिया कबीले का वंशज था. वह 1509 में वह मेवाड़ के राजा राणा रयमाल का वारिस हुआ और वह पूरे उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राजा था.
दौलत खान लोदी के नाम का एक दूत ,जो आलम खान के प्रति वफादार था,उसे गुप्त गुप्त रूप से काबुल भेजा गया था। दौलत खान पंजाब का राज्यपाल था।
बाबर अपने 17 साल के बेटे हुमायूं और 11,000 की मजबूत सेना और फील्ड आर्टिलरी के साथ भारत आया. इब्राहिम लोदी के 150,000 सैनिक और 500 युद्ध हाथी हैं, लेकिन उसके पास कोई बंदूक नहीं थी।
इतिहासकारों के दावे के विपरीत, इब्राहिम लोही के हाथी,बंदूक की गोलीबारी को अनदेखा करने के लिए प्रशिक्षित किए गए थे और उनके कानों में पैडिंग की गई थी. हुमायूं के लिए कोई मौका नहीं था, जो कि मुख्य हमले दल में था।
एक घंटे की लड़ाई के भीतर, आलम खान लोधी द्वारा युद्ध के मैदान पर ,इब्राहिम लोदी की हत्या कर दी गई और उसे उसके गद्दार जेनरल्स द्वारा मरने के लिए छोड़ दिया गया जो बाबर के साइड हो गए
इब्राहिम की मीलों तक लंबी विशाल सेना,वास्तव में एक भी वार नहीं कर पाई. बाबर ने इब्राहिम लोदी की सेना का नरसंहार नहीं किया - यह रेकॉर्ड में है। वैसे भी वह ऐसा कैसे कर सकता था? शायद ही कोई मरा था. मुझे यकीन है कि बाबरनामा (बाबर का प्रचार टुकड़ा) ने इस शर्मनाक घटना को रिकॉर्ड नहीं किया होगा. मुस्लिम युद्धों में कभी कोई सम्मान या शिष्टता नहीं थी.
बाबर के पानीपत में विजयी होने के बाद दिल्ली पर कब्जा कर लिया। हजारों हिंदुओं को तलवार से मार दिया गया, और महिलाओं का बलात्कार किया गया. बाबर के दिल्ली के क्रूर अपराध,उसके समरकंद के अपराधों से कहीं अधिक थे,जहाँ उसने 700,000 निवासियों को मौत के घाट उतारा,सुंदर लड़कियों को क़ब्ज़े में लिया और सुंदर लड़कों की गोटियाँ काटके उन्हे हिजड़ा बना दिया.
फिर उसने अपने बेटे हुमायूं को इब्राहिम लोदी की राजधानी आगरा के रॉयल महल और ख़ज़ाने पे कब्जा करने के लिए भेजा. इसके तुरंत बाद, बाबर हुमायूं के साथ शामिल हुआ और आगरा को अपने राज्य की राजधानी बनाया.
राणा संघ ने इस बीच, गुजरात को पहले ही कुचल दिया और माल्वा पर विजय प्राप्त करके आगरा की ओर रवाना हुआ. इस मौके पर उसने सुना की बाबर ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया और उसे मारकर दिल्ली सुलतनत का मास्टर हो गया. बाबर खुद को 'पड़शाह' का सर्वोच्च पद प्रदान करने वाला पहला व्यक्ति था.
राणा संघा परेशान हो गया जब उसने सुना कि बाबर ने खुद को सम्राट घोषित किया. अब वह जानता था कि बाबर का वापस काबुल जाने का कोई इरादा नहीं है, और इसलिए उसने लड़ाई करने का फैसला किया क्यूंकी वह ताकतवर था.
पहले कदम में, उसने इब्राहिम लोदी के वफादार अफघानी भगोड़े महमूद लोदी और हसन खान मेवाती जैसे राजकुमारों को शरण प्रदान की। फिर उसने आधिकारिक रूप से बाबर को चेतावनी दी और एक समय सीमा के भीतर उसे भारत छोड़ने के लिए कहा। उसे उम्मीद थी की यह मसला बात-चीत से सुलझ जाएगा और उसने अपने दूत 'रायसें के सिलहदी' को भी भेजा.
1527 में, सिलहदी ने मुगल बादशाह बाबर के खिलाफ एक भव्य राजपूत सम्मलेन में मेवाड़ के राणा संघा के साथ गठबंधन किया। राणा संघा ने अपनी बेटी का हाथ सिह्हदी के बेटे को अपने गठबंधन के प्रतीक के रूप में दिया था। यह सबसे बड़ा सम्मान था जिसके लिए एक वासदार(vassal) कामना कर सकता था क्योंकि राणा राजपूतों के सबसे प्रतिष्ठित कबीले का था.
राजा शिलादित्य(सिलहदी ),जिसने राणा संघा को धोखा दिया,पूर्वोत्तर मालवा का 'तोमर सरदार' था. उसने पूर्बीय सैनिकों के एक भाड़े के बल(mercenary force) का नेतृत्व किया. यह पूर्बीय सैनिक पूर्बी उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले थे.
इस आदमी में गद्दार का खून था. वह अपने जीवन के दौरान उत्तर और मध्य भारत की राजनीति में निर्णायक कारक बना रहा और अपने अचानक दल-बदल से कई राजाओं की किस्मत डूबाने का जिम्मेदार था. उसने खानवा की लड़ाई में राणा सांगा को धोखा देकर और राजपूत सम्मलेन की हार के कारण अनन्त कुख्याति(बदनामी) प्राप्त की।
शिलादित्य भी "छड़ी पर गाजर विश्वासघात" पे गिर गया, जिसके द्वारा इब्राहिम लोधी को भी धोखा दिया गया था। शिलादित्य, जो 35,000 पुरुषों के बड़े दल का मालिक, केंद्रीय रैंक में होगा. वह युद्ध के महत्वपूर्ण क्षण में अचानक बाबर के कैम्प में शामिल होगा और इस तरह राणा संघा को धोखे से पराजित करेगा, जो कभी युद्ध में नहीं हारा था.
शिलादित चित्तोर वापस चला गया और राणा को बताया कि युद्ध करना जरूरी है, और बाबर को पराजित करना आसान है।
हसन खान और महमूद लोदी की अफगान टुकड़ी के साथ राजपूत सेना ,1527 में,फतेहपुर सिकरी के पास खानवा में बाबर की सेना से भिड़े. लड़ाई 10 घंटे तक चली और यह बिल्कुल खूनी थी.
लड़ाई के एक महत्वपूर्ण और नियोजित पल में, सिल्हदि और उसके दल के दल-परिवर्तन से राजपूत के सामने की रैंकों में महत्वपूर्ण दरार आ गई और राणा सांगा ने व्यक्तिगत तौर पर संभ्रमित मोर्चे के पुनर्निर्माण करने की कोशिश की पर वो गंभीर रूप से घायल हुआ और फिर बेहोश हो गया।
राजपूत सेना ने सोचा कि उनका बहादुर राजा मर गया और अचानक अराजकता हो गई. राणा संघा को मारवाड़ से राठौड़ टुकड़ी द्वारा सुरक्षा के लिए ले जाया गया और होश में आने के बाद उसे विश्वासघात और हार का पता चला। लेकिन राणा सागा हार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था,उसने फिरसे सेना खड़ी करके बाबर से फिरसे युद्ध करने का फ़ैसला लिया. उसने बाबर को हराने तक चित्तोर में कदम ना रखने की कसम खाई.
1528 में, वह चंदेरी के मेदिनी राय(जिसपर बाबर ने हमला किया था) की मदद करने गया. लेकिन उसे सिल्हदि के जासूसों ने ज़हर दे दिया और वह अपने कल्पी कैंप में मारा गया. सिल्हदि को मालूम था उसका क्या हश्र होगा अगर वो पकड़ा जाएगा.
ये जानते हुए कि राणा संघा की शराब(वाइन) में ज़हर मिलाया गया था,बाबर ने अचानक शराब पीना छोड़ दिया और वह अफ़ीम का नशेड़ी हो गया. उसने कई शराब की पेटियों को तोड़ने का बड़ा तमाशा बनाया। इस्लाम में शराब पीना हराम(मना) है.अफ़ीम से बर्बाद बाबर,दिसंबर 1530 में मर गया और उसका बेटा हुमायूँ उसका उत्तराधिकारी बना.
बाबर ने लिखित में निर्देश दिए थे कि उसे काबुल में दफन किया जाय. थोड़े समय के लिए, ताजमहल के स्थल के सामने आगरा के अराम बाग में उसका शरीर रखा गया था।
1543 में, उसके अवशेष काबुल में अपने अंतिम विश्राम स्थान तक पहुचाए गए, जिस जगह को उसने खुद चुना था ..बाबर के गार्डन, जिसे बाग-ए-बाबर कहा जाता है, काबुल, अफगानिस्तान में एक ऐतिहासिक पार्क है और उसके अंतिम विश्राम स्थान पर भी है।
दिल्ली के मार्ग पर, बाबर ने सिंध प्रांत के समृद्ध शहर मुल्तान को तबाह कर दिया था.
बहुत खून-ख़राबा हुआ और हज़ारों पे तलवारें चलीं. गुरू नानक ने अपने प्रचार पर्यटन के तीसरे भाग के लिए (बाबर के हमले से पहले) मुल्तान शहर पहुचे थे.
शहर की बर्बादी के दौरान, गुरु नानक को एक जेल में डाला गया और आक्रमणकारियों की सेना ने उन्हें चक्की पीसने का काम(मकई) दिया.
जल्द ही बाबर के गार्ड ने उसे बताया कि जेल में एक पवित्र बाबा है. बाबर ने गुरु नानक के साथ एक बैठक की और वह उनके मक्का,अल्लाह और इस्लामिक ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ.
ऊपर: बाबर के पास एक प्रशिक्षित बाज़ था जो संदेश भेज सकता था और सेना की गतिविधिका का संकेत दे सकता था.
उसने नानक को आज़ाद कर दिया क्यूंकी उसे लगा की उन्हें जैल में रखना अपशकुन होगा. यह घटना गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज की गई है, और अध्याय को बाबर वाणी कहा जाता है। गुरु नानक ने पंजाब में बाबर और उसके लोगों के अत्याचारों का वर्णन किया।
विकिपीडिया और पश्चिमी इतिहासकारों ने इस क्रूर तानाशाह को एक महान, धर्मनिरपेक्ष, काव्य, दयालु, कला का प्रेमी,वग़ैरह-वग़ैरह के रूप में वर्णित किया है.
मैं उस समय के गवाह 'गुरु नानक' पे विश्वास करना चाहूँगा. सैदपुर में बाबर की क्रूरता से गुरू नानक बड़े विचलित हुए थे। उन्होंने हिंदुओं के दुखों का वर्णन किया। गुरु नानक के शब्दों में बाबर की खूनी वाली सेना "पाप की दुल्हन जुलूस" थी.
बाबर ने उन हिंदुओं को छोड़ दिया जो इस्लाम में परिवर्तित हुए। उसने इन 'परिवर्तित मुसलमानों' को संपत्ति दिया. बाबर ने हर हिंदू मंदिर को नष्ट कर दिया। बाबर खुद 'गाजी' बन गया, जो इस्लामी शब्दावली में सकारात्मक माना जाता है और इसका मतलब है "एक मुसलमान जिसने जिसने काफिर को मार डाला हो".
इस तरह के व्यक्ति को स्वर्ग की "सुंदर महिलाओं, शराब और मधु की नदियों" की गारंटी दी जाती है। बाबर को गैर-विश्वासियों के सिर कटके उनके बनाने का अजीब शैतानी जुनून था। जिस किसी ने इस तरह के एक स्तंभ को देखा, वह निश्चित रूप से इस्लाम में परिवर्तित हो गया।
अब कोहिनूर हीरे के बारे में --
बाबर को खबर मिली की आगरा के किले में विशाल खजाना है,जिसमें एक बड़ा हीरा शामिल था जो सभी विवरण को के परे था. उसे बताया गया कि इसका आकार, रंग और चमक तुलना से परे है. हुमायूं ने धोखे से आगरा में कोहिनूर हीरा दबोच लिया. उसने ग्वालियर के राजा की पत्नी को बोला,"तुम मुझे चमकीला पत्थर दो और फिर तुम्हारा पति बख्शा जाएगा".
आगमन पर, आगरा में बाबर को शानदार हीरे के साथ प्रस्तुत किया गया था।
बाबर ने इसकी कीमत पूरे विश्व के लिए ढाई दिन के भोजन जितना बताया. कहा जाता है कि उस समय उसका वजन 789 कैरेट या लगभग छह ट्रॉय औंस था।
उसकी मृत्यु के बाद, अपने पुत्र हुमायूं और बाद में मुघल शासकों की अगली पीढ़ी के लिए कीमती पत्थर पारित कर दिया गया था, जिसमें ताजमहल के निर्माता शाह जेहां भी शामिल थे, जिन्होंने अपने प्रसिद्ध मयूर सिंहासन पे इसे मोर की आँख के रूप में रखा था.
शाहजहां की मृत्यु के बाद, कोहिनूर हीरा उसके बेटे औरंगजेब को मिला. जब उसके कब्जे में था,तब इसे टॅवर्नियर को दिखाया गया- जो एक उद्यमी फ्रांसीसी यात्री था,जो दुर्लभ और अद्भुत रत्नों की तलाश में पूर्व में यात्रा कर रहा था.
टॅवर्नियर ने दुनिया में पहली बार कोहिनूर हीरे का स्केच बनाया. औरंगजेब को वेनिस के हॉर्टेंसियो बोरगियो(Hortensio Borgio) ने बेवकूफ़ बनाया, जिसने हीरों को फिर से कटने और "सूरज की तरह चमकीला" करने का वायदा किया. जब पत्थर को औरंगज़ेब के पास वापिस दिया गया, तो वह यह जानकर चौंक गया कि 789 कैरेट का पत्थर 280 कैरेट तक घटा दिया गया है.
औरंगज़ेब इतना क्रोधित हो गया, कि उसने पैसा देने से इनकार कर दिया। यह देखते हुए कि बोर्गियो ने हीरे का एक टुकड़ा चुरा लिया, उसने थोड़े समय के लिए उसे कैद कर दिया लेकिन उसे जान से नहीं मारा.
मोहम्मद शाह(1719-1748) हीरे को अपनी पगड़ी में ले जाया करता था. इसकी जानकारी कुछ ही लोगों को थी जिनमें से एक हरेम(स्त्रीघर) का हिजड़ा भी था. नादिर शाह के पक्ष को खुश करने के लिए, उस नमकहराम हिजड़े ने नादिर के कानों में सम्राट के रहस्य को फुसफुसाया और नदिर शाह ने बदले में मुहम्मद शाह को उसके हीरे से वंचित करने के लिए एक योजना तैयार की। नादिर शाह को वापिस पर्षिया(ईरान) जाने के दिन आ रहे थे. नादिर शाह ने एक भव्य दरबार को आयोजित करने का आदेश दिया, जहां वह मुगल साम्राज्य के नियंत्रण को वापस मुहम्मद शाह को सौंप देगा।
1 मई 1739 को, समारोह के दौरान, उसने राजाओं के बीच पगड़ी के आदान-प्रदान करने की प्राचीन परंपरा को मुहम्मद शाह को याद दिलाया। नादिर शाह ने शब्द और कार्रवाई के बीच विराम के लिए बहुत कम जगह दी, और अपने सिर से पगड़ी को हटा दिया और इसे मुहम्मद शाह के सिर पर रखा, जिससे मोहम्मद को खुद की पगड़ी उतरने के इलावा कोई विकल्प नही था. मुहम्मद शाह ने खुद को समारोह के दौरान इतनी शिष्टता से प्रस्तुत किया की नादिर शाह हैरान रह गाया. क्या कोहिनूर वास्तव में उसकी पगड़ी के नीचे छिपा हुआ था, जैसा कि हिजड़े ने बताया, या फिर यह एक धोखा था?
समारोह के बाद, नादिर शाह अपने कमरे में जाकर जल्दी से पगड़ी खोली जहाँ उसे हीरा मिल गया. उसके आकार, सुंदरता और प्रतिभा देखकर वो पागल जैस हो गया. उसने चिल्लाया "कोहिनूर" जिसको फारसी में "प्रकाश का पहाड़" कहते हैं और इस तरीके से इस हीरे का नाम ये पड़ गया. पर्षिया में लौटने के बाद, नादिर शाह ने अपनी पहुच के भीतर खुद के पास हीरा रखा।
नादीर शाह को जल्द ही हत्या कर दी गई और ये हीरा उसके सक्षम जनरल अहमद शाह अब्दाली के हाथों लग गया, जो फिर अफगानिस्तान का राजा बन गया। 1772 में उसकी मृत्यु के बाद, कोहिनूर हीरा उसके उत्तराधिकारियों(succesors) के हाथों में पारित हो गया।
उसके उत्तराधिकार की लड़ाई में, कोहिनूर उसके बेटे शाह शुजा मिर्जा के पास गया. निरंतर युद्ध के बाद शुजा मिर्जा पराजित किया गया और उसे उसके भाई, महमूद शाह के सहयोगियों द्वारा कैदी बना दिया गया. हालांकि, पकड़े जाने से पहले, उसने अपने परिवार को महाराजा रणजीत सिंह(1801-1839) के पास शरण लेने के लिए पंजाब भेज दिया। शुजा मिर्जा की पत्नी वफा बेगम, कोहिनूर हीरे को अपने साथ लाहौर ले गयी.
वफा बेगम बहुत परेशान हो गए जब उसने अपने पति की बुरी खबर सुनी. उसने रंजीत सिंह को दूत भेजे और उन्हें अपने पति को रिहा करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और उनकी मदद के लिए उन्हें कोहिनूर हीरा देने का भी वादा किया। रंजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ लड़ाई की और शाह शुजा को रिहा करवा दिया. कोहिनूर हीरा मिलने के बाद, रणजीत सिंह की पगड़ी में यह बेशकीमती गहने फिट कर दिया गया. बाद में उन्होंने इसे अपने आर्मलेट में सिल दिया, जो वह सभी महत्वपूर्ण राज्य अवसरों पर पहनते थे. यह हीरा उनके पास बीस साल तक रहा।
रंजीत सिंह की 1839 में मृत्यु से पहले, उनके पुजारियों ने उन्हें हीरे को जगन्नाथ मंदिर में दान करने को कहा. जाहिर है वह सहमत हो गया, लेकिन इस समय तक वह बोलने में असमर्थ था और शाही खजाने के रक्षक ने पत्थर को छोड़ने से मना कर दिया, इस आधार पर कि उन्हें ऐसा आदेश नहीं मिला है.
1849 में, कोहिनूर को 11 साल के राजा दुलीप सिंग ने क्वीन विक्टोरीया को सौप दिया जब वो निर्वासन में था.
दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध(1848–49) के अंत में संधि की शर्तों में यह उल्लेख किया गया था: "कोह-इनूर नामक मणि, जिसे महाराजा रंजीत सिंह द्वारा शाह शुजा-उल-मुल्क से लिया गया था,यह लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैंड की महारानी को समर्पण किया जाएगा.
जॉन लॉरेंस, कोलोनियल प्रशासक ने इसे अपनी कोट की जेब में डाल दिया और इसके बारे में भूल गया। जब पुरस्कार के बारे में पूछा गया तो लॉरेंस को पता नहीं था कि यह कहां है. घर भागकर उसने अपने नौकर से पूछा- जिसने कहा हाँ, उसे एक छोटा से बॉक्स मिल गया, जिसमें उसके मालिक के कांच का एक टुकड़ा था!
प्रसिद्ध हीरा प्राप्त करने के बाद, गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी ने तुरंत कोहिनूर को इंग्लैंड भेज दिया. जमीन और समुद्री मार्गों पर इस हीरे का विशेष रूप से ख्याल रखा गया.
6 अप्रैल 1850 को, कोहिनूर ने जहाज़ एचएमएस मेडीया पर भारत को छोड़ दिया. रहस्य में लिपटे जाने से इसका पता जहाज़ मेडिया के कप्तान को भी नहीं था.
3 जुलाई को बकिंघम पैलेस में आयोजित एक निजी समारोह में ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक रोथसचाइल्ड ने स्वयं ये हीरा रानी विक्टोरिया को सौंप दिया. कोह-ए-नूर को अपने माउंट से हटा दिया गया और इसका वजन, क्वीन के जौहरी की गणना के अनुसार 186 कैरेट था। ऐसा लगता है कि इस मणि को इंग्लैंड पहुंचने से पहले एक बार फिर से कटा गया था.
जब यह क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शित किया गया, तब जनता मुघल-स्टाइल-कट से निराश हो गई क्यूंकी वे शानदार-कट देखने के आदी थे. रानी ने महल में अन्य लोगों के साथ, फैसला किया कि हीरे की प्रतिभा को काटकर बढ़ाया जाएगा.
कोहिनूर के पुनर्निर्माण में केवल 38 दिन और 8000 पाउंड की लागत आई ; अंतिम परिणाम 108.93 कैरेट वजनी अंडाकार(oval) था। प्रयासों के बावजूद, परिणाम सबसे दुर्भाग्यपूर्ण थे, क्योंकि हीरे का वज़न कम हो गया और इसे अपने सभी ऐतिहासिक और खनिज मूल्यों से वंचित कर दिया गया. कोहिनूर हीरा, हालांकि, अपने मूल रहस्यों में वैसा ही है.
1992 में, 'ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स एंड रेगेलिया' पर 'एचएम स्टेशनरी कार्यालय प्रकाशन' ने कोह-ई-नूर का संशोधित वज़न 105.602 कैरेट बताया और पहले से प्रकाशित 108.93-कैरेट आंकड़ा ग़लत बताया. पत्थर मापने के बाद 36.00 × 31.90 × 13.04 मिमी का पाया गया और इसे महारानी एलिजाबेथ के लिए बनाए गए मुकुट के सामने माल्टीज़ क्रॉस में सेट किया गया है।
एलिजाबेथ (वर्तमान रानी एलिजाबेथ 2 की मां) बहुत ही चतुराई और लोहे की इच्छा से सभी मामलों का प्रबंधन किया करती थी.
वैसे, भगवान कृष्ण ने कोहिनूर हीरे को स्यमन्तकम नाम दिया और यह केवल देवताओं या हार्मनी में महिलाओं द्वारा पहना जा सकता था।
अँग्रेज़ों को ये मालूम नही है की स्यमन्तकम के श्राप के कारण उनके साम्राज्य का पतन हो गया और उनके लोगों की मानसिक स्थिति भी बिगड़ गई(मैड काउ बीमारी).
ऐसे महान पत्थर खनन नहीं किए जा सकते हैं बल्कि नदी के किनारे प्राकृतिक अवस्था में पाए जाते हैं। 6100 साल पहले एक गुलाम ने ये हीरा भगवान कृष्ण से चुरा लिया था जब वह सो रहे थे. कृष्णा ने इसे अपने पिताजी जाम्बवान से दहेज में प्राप्त किया था।
दुनिया में 150 साल पहले तक भारत ही हीरों का एकमात्र स्रोत/ source था.
आज, कोह-ई-नूर को लंदन के टॉवर के "ज्वेल हाउस" के तहखाने में एक गोल ग्लास में ब्रिटिश क्राउन के अन्य मूल्यवान वस्तुओं के साथ रखा गया है।
अब कुछ बाबर के हिजड़ों के बारे में;
बाबर के ज़्यादातर गुलाम हिजड़े थे. उसके हरेम में एक हज़ार से ज़्यादा सुंदर महिलाएँ थी. उसने कई सुंदर लड़कों को पकड़कर उनकी गोटी काटकर उन्हें हिजड़ा बना दिया.
हिजड़े हरेम के गार्ड और अभिभावक थे.
वे हरेम में महिलाओं की सेवा भी करते थे. उनका पदानुक्रमित(hierarchical) ढाँचा था.वरिष्ठ हिजड़ों को नज़ीर और ख्वाजा सारस कहा जाता था. उनमें से हर एक के नीचे कई जूनियर हिजड़े थे.
नए सुल्तान के आने के बाद पुराने गुलामों को ख़त्म कर दिया जाता था और सुल्तान नए हिजड़े चुनता था. उन्हें महिलाओं की गतिविधियों पर एक बाज़ की आंखें जैसी नज़र बनाए रखना पड़ता था ताकि वे किसी असली आदमी के साथ मानसिक संभोग ना कर सकें।
लेकिन ये हिजड़े अपनी खुद की मिस्ट्रस के रहस्यों की रक्षा करते थे. वे हरेम में उनके लिए मर्द,ड्रग्स,शराब की तस्करी करते थे. ऐसी नाजुक और खतरनाक सेवाओं के बदले में वे कुछ भी प्राप्त कर सकते थे, क्योंकि वे ग्राहक महिलाओं को ब्लैकमेल कर सकते थे।
बदले में, हरेम की सेक्स-की-भूखी महिलाएँ हिजड़ों को उनकी क्षमता के अनुसार मज़े लेने देती थीं. आहा!
जब कोई पुरुष हिजड़ा बन जाता है तो उसकी मर्दानगी और आत्म-निष्ठा ख़त्म हो जाती है और वह वफ़ादार दासी बन जाता है--यह फ़र्क नहीं पड़ता की उसकी वफ़ादारी मजबूरी के कारण हुई.
तो हिजड़े बनाने की प्रथा मुस्लिम राज में चलती रही. कुछ समलैंगिक मुस्लिम राजा लड़की नहीं बल्कि हिजड़े से सेवा लेते थे.
औरंगज़ेब ने इस घिनौनी प्रथा पे रोक लगा दी.
अब अद्भुत ताजमहल के बारे में (अंदर अजीब है, उपेक्षित और ब्रिक्ड्ड किया गया)
जब पर्यटक ताजमहल में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें पूरे ढांचे के बहुत छोटे हिस्से में प्रवेश करने की अनुमति होती है। यहाँ एक मुस्लिम रानी (शाहजहां की पत्नी) की कब्र है। लेकिन इससे पहले यह एक आलीशान राजपूत महल था.
कुछ तस्वीरें देखो,खुद महसूस करके अपने अंदर रखो
एक मक़बरे में इतने कमरे और दर्जनों टाय्लेट की क्या ज़रूरत है?
एक इस्लामी मकबरा दक्षिण का सामना क्यों कर रहा है?
नीचे: बाराबर गुफाएं भारत .... प्रवेश आर्च शैली अफगान, तुर्की या मुगल नहीं है - यह शुद्ध भारतीय है. ई. एम. फॉर्स्टर ने अपनी किताब "अ पैसेज टू इंडिया" में बकवास लिखा था की यह गुफा 300 ईसा पूर्व(2300 साल पहले) में खोदी गई थी. इस गुफा का वर्णन महाभारत में गोरातगिरी नाम से किया गया है.
ज्ञानवापी मस्जिद - वास्तविक काशी विश्वनाथ मंदिर
चेतावनी - अयोध्या बाबरी मसला - चेतावनी ......
हम हिंदू कॉलेजियम जजों का "क़ानून अँधा है" का बकवास नहीं स्वीकार करेंगे. नैतिक न्याय कौंटेक्स्ट(सन्दर्भ) के अंतर्गत होना चाहिए.
1947 तक बाबरी एक शिया मस्जिद था.
आज सुन्नी इसमे क्यूँ कूद गए हैं?
राम मंदिर तोड़ने के बाद, शिया मुस्लिम मीर बाकी ताशक़ांडी(अवध का गवर्नर) 1528 में बाबरी मस्जिद पे इबादत करने वाला पहला मुसलमान था.
1940 के दशक से पहले, इसे मस्जिद-ए-जन्मस्थान ("जन्मस्थान का मस्जिद") कहा जाता था. अफीशियल रिकॉर्ड और दस्तावेजों में भी यही नाम इस्तेमाल किया जाता था.
शिया मुस्लिमों ने मस्जिद के 'सुन्नी ओनरशिप' पर विवाद किया और दावा किया कि यह साइट उनकी थी क्योंकि मीर बाकी एक शिया था ... बाबर भी शीया था ...
सुन्नियों ने मुगल सम्राट के लिए नमाज-ए-जनाज़ा की पेशकश नहीं की ... शाहजहां एक शिया था और ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार उन्हें शीया तौर-तरीकों से दफनाया गया। रानी.... मुमताज महल भी शीआ थी...
ताजमहल के मीनारों पर हथेली के संकेत हैं, जो मोहर्रम शोक में अलाम जुलूस के दौरान शिया द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं ......
बाबरी में सुअर(वराहा) की मूर्ति मिलने के बाद से ही मुसलमानों(शिया और सुन्नी दोनो) ने वहाँ पर नमाज़ पड़ना छोड़ दिया.
ये साफ है की मुसलमान 'हिंदुओं के मक्का' के लिए बड़ा दिल नहीं दिखाएँगे.
कोरिया ने अयोध्या और राम मन्दिर को स्वीकार किया है, लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट और नास्तिक, हिंदू इतिहास का मज़ाक उड़ते हैं...
नीचे वाला पोस्ट पड़ो:-
ajitvadakayil.blogspot.com/2012/07/korean-brahmins-kim-hae-clan-capt-ajit.html
Captain Ajit Vadakayil
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मुसलमान मक्का क्यूँ जाते हैं
मैक्का के दक्षिण-ईस्ट कॉर्नर पर एक काले शिव लिंग का पत्थर, 5 फीट भूगोल के ऊपर को चूमने(का प्रयास) के लिए जाते हैं --फिर भी वे दावा करते हैं कि वे मूर्ति-पूजन नहीं करते.
ये काला METEORITE पत्थर दशकों पहले चोरी किया गया था-और आज तक इसका कोई रीप्लेस्मेंट नहीं पाया गया है.
यह वर्तमान पत्थर 'काला PUMICE टुकड़ा' और काले सीमेंट का मिश्रण है. पीयुमैस पानी में फ्लोट करता है.
शिव लिंग स्टील जितना भारी होता है .
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2009/07/vedic-practises-in-mecca-ajit-vadakayil.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/11/the-sack-of-somnath-temple-by-mahmud-of.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2015/09/sanatana-dharma-hinduism-exhumed-and_30.html
कोई मुसलमान अगर कहे की वो पैगंबर मोहम्मद के दरगाह में जाना चाहता है, तो वह "गुप्त-यहूदी" अल सौउद तानाशाही के द्वारा मारा जाएगा और मिट्टी में दफ़नाया जाएगा..
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2015/09/sanatana-dharma-hinduism-exhumed-and_30.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2015/05/lawrence-of-arabia-part-3-crypto-jewish.html
CAPT Ajit Vadakayil.
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https://timesofindia.indiatimes.com/india/friday-first-woman-who-led-prayer-in-kerala-faces-backlash/articleshow/62677491.cms
मुसलमानों को ये मालूम होना चाहिए-
या तो तुम मोहम्मद के तरीके से नमाज़ पड़ो या फिर बिल्कुल भी इबादत मत करो-- "गुप्त-यहूदी मुल्ला" तुम्हे ग़लत तरीके बता रहे हैं.
पहला अज़ान 'नौरमल गोधूलि(TWILIGHT) स्टार्ट टाइम' के पहले नहीं होना चाहिए (सूर्य का केन्द्र होराइज़न से छह डिग्री नीचे होना चाहिए).
भारत में, हम सुबह सूर्योदय से 75 मिनट पहले फज्र अज़ान को सुनते हैं..कोरान में इसकी अनुमति नहीं है.
पहला अज़ान सूर्योदय के 48 मिनट पहले से पहले नहीं हो सकता.
दूसरा अज़ान ज़ोहार(दुहृ) शांति से होता है - जब सूरज अपने उँची बिंदु पर होता है और उसका azimuth उत्तर या दक्षिण में होता हैं.
चौथा जोरदार अज़ान मघृब सूर्यास्त के तुरंत बाद होता है.
तीसरा अज़ान अस्र ,शांति से होता है--अस्र इबादत तब तक की जा सकती है जब तक सूरज उज्ज्वल हो या दिन में आदमी इबादत करके 6 मील दूर तक जा सकता हो.
आखरी अज़ान ईशा ज़ोर का होता है---और इसे शाम के गोधूलि/twilight खत्म होने के बाद ही शुरू किया जाना चाहिए--जब सूरज होराइज़न के 6 डिग्री नीचे हो.
गोधूलि ऊपरी वायुमंडल में सूर्य के प्रकाश बिखरने से उत्पन्न होता है,यह निचले वातावरण को रोशन करता है ताकि पृथ्वी की सतह पूरी तरह उजाला न हो और पूरी तरह से अंधेरा बजी ना हो।
ये हास्यास्पद है की एक हिंदू ब्लॉग-लेखक को ये सब बताना पड़ रहा है.
असली कोरान कोडूनगल्लूर(केरल) के चेरामन पेरूमल मस्जिद में लिखी गई थी. फ्रेंच रोत्सचाइल्ड के भाड़े के सिपाहियों ने इसे जलाने की कोशिश की-पर वे कामयाब नहीं हो पाए.
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/01/mansa-musa-king-of-mali-and-sri.html
यह पोस्ट नीचे लिंक के पोस्ट का हिन्दी अनुवाद है:-
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2012/11/babri-masjid-demolition-mughal-emperor.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/
बाबरी मस्जिद विवाद,पानीपत की पहली लड़ाई(1526), कोहिनूर हीरा,अयोध्या श्री राम मंदिर का वास्तु,विष्णु के वराहा और वामन अवतार,गोधरा दंगे,राणा संघा,सिल्हदि- कॅप्टन अजीत वाडकायिल
नीचे तस्वीर : सबसे पहली चीज़.बाबरी मस्जिद की नींव के नीचे अयोध्या के प्राचीन राम मंदिर के विशाल स्तंभों को देखें. तुलना में एक आदमी का आकार देखें. क्या वे अब भी यही कहते हैं कि बाबरी मस्जिद एक मंदिर के ऊपर नहीं बनाया गया था?
नीचे तस्वीर:-इस राम मंदिर के बारे में प्राचीन दस्तावेज से क्या पता चला?
हरि-विष्णु शिलालेख -
इस शिलालेख की पंक्ति 15 स्पष्ट रूप से हमें बताती है कि:-
विष्णु-हरि का एक सुंदर मंदिर, पत्थरों के ढेर के साथ बनाया गया था और सुनहरा शिखर के साथ सुशोभित किया गया था--पहले के राजाओं द्वारा निर्मित किसी भी अन्य मंदिर के अद्वितीय था...यह अद्भुत मंदिर साकेतमंदला में स्थित अयोध्या के मंदिर शहर में बनाया गया था।
लाइन 1 का वर्णन -
भगवान विष्णु राजा बलि और दस सिर वाले रावण को ख़त्म करते हुए.
गोरे इतिहासकार प्राचीन भारतीय इतिहास को उजागर करने के लिए ग़ैर-आबाद रेगिस्तान में खुदाई कर रहे है,ताकि मिट्टी के बर्तनों और कीचड़ झोंपड़ी के अवशेषों को प्राप्त करके वे प्राचीन भारत का मज़ाक उड़ा सकें.
अरे उज्जैन, अयोध्या, दिल्ली, उदयपुर, पाटलिपुत्र आदि जैसे प्राचीन शहरों के मध्य केंद्रों में एक स्थान क्यूँ नही चुन लेते?अरे मैं भूल गया, आप तो ऐसे सर्जन की तरह हैं जो जानबूझकर दिल को किडनी समझकर मरीज़ को मार डालेगा,है ना?
मिया साहेब, ऐस क्यून है? मस्जिद के नीचे मंदिर?
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के कुछ साल बाद,मैं एक पाकिस्तानी मुख्य ऑफिसर और एक पाकिस्तानी 3र्ड इंजीनियर के साथ जहाज पे था।
मुख्य ऑफीसर एक सुन्नी मुसलमान था. वह बहुत धार्मिक नहीं था और रात "8 बजे समुद्री घड़ी" के बाद मेरे केबिन में मेरे साथ वह बीयर पीने आता था. वह काला हिन्दुस्तानी बिहारी जैसा दिखता था.
3र्ड इंजिनियर शिया मुसलमान था। वह एक धार्मिक विद्वान था. वह एक मुल्ला बन सकता था, क्योंकि उसने कंदहार(आफ्गानिस्तान) और तेहरान(ईरान) से इस्लामिक स्टडीस की थी . वह इमरान खान की तरह हॅंडसम और सुंदर दिखता था. वह मेरे केबिन में बैठता था और कभी-कभी 1930 से 2000 बजे तक मेरे साथ कोक पीता थे।
3र्ड इंजिनियर मेरा प्रशंसक था, और मुझपे भरोसा करता था। वह मेरे साथ इस्लाम और कुरान पर चर्चा करना पसंद करता था। वह अपने इस्लामी विचारों में इतना कट्टर था, कि अपनी सभी किताबों के पहले पन्ने पे उसने "अमरीका मुर्दाबाद,इज़राईल मुर्दाबाद" लिखा हुआ था हालाकि वो दिल का अच्छा था. जब मैं केबिन निरीक्षण के लिए गया था और वह इंजन कक्ष में था, तब मैने ऐसा देखा था. उसके केबिन में एक कुरान थी, एक चुंबकीय कम्पास, और एक नमाज़ की चटाई थी, जो शान से रखी हुई थी.
3र्ड इंजिनियर, मुग़ल सम्राट बाबर के बारे में बहुत कुछ जानता था,क्योंकि यह उसके इस्लामी स्टडीस का हिस्सा था। कैप्टन के केबिन में 3 इंजिनियर का आना सामान्य नहीं है. लेकिन वह जहाज़ पे अकेला था क्योंकि वहाँ उसके ज़्यादा दोस्त नहीं थे और सुन्नी शीया से बात नहीं करते. मुझसे बात करके उसे राहत मिलती थी. मैं उसको अच्छे से समझता था.
जिस दिन उसे जहाज़ से जाना था, उसने मुझसे कहा कि मैं उससे ज़्यादा इस्लाम के बारे में जानता हूं। उसने मुझे अपना टेलीफोन नंबर दिया और कहा,कि कभी भी मेरा जहाज पाकिस्तान में आए तो मुझे उसे फोन करना चाहिए और फिर वह मुझे एक दौरे के लिए बाहर ले जाएगा. उसने कहा की उसकी पोलिटिकल लोगों से जान-पहचान है क्योंकि हिंदुस्तानियों को शोर पास नहीं मिलता. यदि आप पकड़े जाते हैं, तो इसका मतलब आपको 2 दशकों तक जेल होगा(जैसे कुलभूषण जाधव).
वह एक इस्लामिक विद्वान से करने वाला था . उसने मुझे उसकी फोटो दिखाई- वह बहुत सुंदर महिला थी. मैंने उसे सलाह दी, कि उसे एक ऐसी लड़की से शादी करनी चाहिए, जिसका कट्टर धर्म से कोई लेना-देना ना है, क्योंकि वह उसे खुश नहीं रख पाएगी.
जब वह कैश और दस्तावेजों को इकट्ठा करके जहाज़ छोड़ने वाला था तब उसने मुझे कहा कि वह मेरी सलाह के अनुसार एक ऐसी लड़की से शादी करेगा जो खुश और दुनियादारी हो. उसने मुझे ये भी बताया कि उसने अपनी किताबों से "अमेरिका /इसराइल मुर्दाबाद" का लेख हटा दिया और वह कट्टर इस्लामवादी नहीं रहा.
जिस दिन मैं जहाज में गया और उसका कमांड ले लिया तब चीफ़ इंजिनियर मेरे पास आया और बोला कि 3र्ड इंजिनियर(शीया मुस्लिम) विरोध पर है और काम नहीं कर रहा.उसने बताया कि शीया को सेकेंड ऑफीसर ने मक्का की दिशा ग़लत बताई.
खैर,जहाज बंदरगाह से बाहर निकल जाने के बाद, मैं दोपहर के भोजन के लिए नीचे चला गया। कॅप्टन की मेज 6 कुर्सियों के साथ थी. दोपहर के भोजन के बाद मैंने चीफ़ इंजिनियर को बताया कि उन्हें 3र्ड इंजिनियर को 12 से 4 घंटे की ड्यूटी में राहत मिले और उसके साथ उसे ओफ़िसेरोन के सैलून में आना होगा।
वो जल्द ही आगया और मैने उससे उसकी प्राब्लम के बारे में पूछा. शुरू में उसने कहा कि वह घर जाना चाहता है वग़ैरह-वग़ैरह. थोड़ी देर बाद उसने असली वजह बताई .सेकंड ऑफीसर ने उसको मक्का की उल्टी दिशा बताई जिससे उसकी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँची. आमतौर पे वह अपने कम्पास से ही दिशा का पता लगाता था लेकिन उस दिन समुद्र तूफ़ानी था और बारिश भी हो रही थी.
तो मैं गोल टेबल पे घड़ी के 12 की दिशा में बैठ गया. मैने उसे घड़ी के 4 की दिशा में चेयर पे बैठाया. मैने उससे पूछा,"क्या मैं तुम्हारे दाएँ पे हूँ या बाएँ पे"? उसने कहा-"आप मेरे दाएँ पे हैं".तब मैने उसे घड़ी के 8 वाली चेयर पे बिठाया.फिर मैने पूछा,"क्या मैं तुम्हारे दाएँ पे हूँ या बाएँ पे?" तब उसने कहा, "अब आप मेरी बाईं ओर हैं".
तब मैंने कहा "कल्पना करो कि मैं मक्का हूं .और अब कल्पना करो कि तुम्हारा परिप्रेक्ष्य(नज़रिया) बदल गया है क्योंकि जहाज का रास्ता बदल गया है. और मान लो कि यह टेबल एक गोल दुनिया है".
उसे समझ गया. उसने अपनी ग़लती के लिए माफी मांगी और बात ख़तम हो गई. उसके बाद उसने अच्छे से अपना काम किया.
जब दुनिया गोल है तो आप दोनो दिशाओं से जाकर भी एक ही जगह पे पहुचेंगे. एक रास्ता बस लंबा पड़ेगा. कभी-कभार लंबी पूरब-पश्चिम यात्रा में हम नाविक /सेलरों को भी यह दिक्कत आती है-यदि पूरब जायें या पश्चिम .
6 9 बन सकता है अगर आप ग़लत दिशा से देखें. अब GOOGLE में टाइप करें-- CULTURAL WISDOM –VADAKAYIL.
कुछ उदाहरण हैं जिन्हें मैंने शिया पुरुष को सिखाया था और वह इसके बारे में बहुत उत्साहित था.
एक दिन हमने बाबरी मस्जिद विध्वंस पर चर्चा की। वह इसके बारे में हक़ीकत में परेशान था। ऐसा नहीं था कि वह राजनीति खेलने की कोशिश कर रहा था. वह मुगल सम्राट बाबर को एक नायक मानता था. हाँ,इमरान खान जैसा दिखने वाले और डीएनए वाले एक व्यक्ति के लिए बाबर हीरो है. इसलिए पाकिस्तान ने अपनी मिसाइल का नाम बाबर रखा है.
तो मैने उससे पूछा,"1947 के बाद बाबरी मस्जिद जैसे और कितने हिन्दुस्तानी मस्जिद तोड़े गए हैं".
वह किसी अन्य के बारे में नहीं जानता था.
फिर मैंने उससे पूछा "अपने दिल पे हाथ रखके मुझे बताओ - 1947 के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कितने हिंदू मंदिर नष्ट हुए हैं?"
उसे बेवक़ूफ़ जैसा महसूस हुआ.
फिर उसने उत्तर दिया, "500 से अधिक" - जिसमें मैंने उसे बताया कि वास्तविक संख्या उस से दोगुनी है।
मैंने उससे पूछा, "क्या तुम जानते हो कि हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद को क्यों तोड़ा?"
उसे इसका जवाब मालूम था. उसने कहा, "इस अयोध्या मस्जिद का असली नाम बाबरी मस्जिद नहीं बल्कि मस्जिद-ए-जन्मस्थान था और यह एक प्राचीन मंदिर के पत्थरों से उसके ही फाउंडेशन पे बनाया गया था."
कुछ दिनों पहले ही मैंने उससे कहा था कि काबा के दक्षिण पूर्व के किनारे 5 फुट ज़मीन से उपर स्थित काला पत्थर,एक शिव लिंग है. वह दंग रह गया था अगले दिन मेरे केबिन में नहीं आया.
उसके कुरान पे नंबर 786 लिखा हुआ था. वह इस संख्या को समझा नहीं सका, वह यह कहने लगा कि यह बिस्मिल्ला का प्रतिनिधित्व करती है. वो दंग रह गया जब मैने उसे बताया कि इस नंबर को शीशे में देखने से ओम दिखता है(संस्कृत नंबर सिस्टम).
वह दो दिन बाद आया, जिसमें उसने कहा कि वह इतना परेशान हुआ कि मक्का का मुख्य आकर्षण शिव लिंगम है- और यहां तक कि उसने शिव के लंड को भी चूमा।
मैने उसे बताया कि यह भगवान शिव की पीनियल ग्रंथि(ग्लैंड) का प्रतिनिधित्व है, न कि उनके लंड का जिसके बाद वह संतुष्ट हो गया.
उसने बताया कि अब वे किसी को काले पत्थर को चुम्बन या स्पर्श करने की अनुमति नहीं देते हैं। वह दस बार से ज़्यादा बार मक्का जा चुका था.
मुसलमान 786 को इस मुहावरे की तरह मानते हैं:
بسم الله الرحمن الرحيم bism illāh ir-raḥmān ir-raḥīm("in the name of Allah, the compassionate, the merciful").
बॉलीवुड फिल्म कुली में अमिताभ बच्चन ने 786 का टैग लगाया था और उसके इस्लामिक विद्वान कूली मित्र ने उसे बताया कि यह इस्लामिक संख्या,हिंदू ओम मंत्र के समान है.
पहली बार, उसके सभी दोस्तों और रिश्तेदारों ने उसे पत्थर पे घिसने के लिए एक रेशम रूमाल दिया फिर उसने एक-एक करके रगड़ना शुरू किया और चौकीदार उससे नाराज हो गया और उसे एक कोड़े से मारने लगा और उसने अपने शरीर के सभी हिस्सों से ब्लीडिंग शुरू होने तक कपड़े के टुकड़ों को रगड़ना जारी रखा।
हमारे वेदों के अनुसार,शिव लिंगम एक काला मीटिओराइट पत्थर है जिसमें से डीएनए ब्रह्मांड से पृथ्वी पर बरसा था. इसमें "जीवन का स्रोत" होता है(सगाला/ डी.एन.ए).
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फिर मैने पूछा-मस्जिद बनने के बाद से ही मुघल वहाँ पे इबादत क्यूँ नही करते थे?
उसने कहा, "इस्लामिक परंपरा के अनुसार यह मस्जिद मस्जिद की तरह नहीं दिखता, इसे बाबर के जनरल मीर बक्शी ने बनाया जो कि हिजड़ा था,जिसे इस्लाम का ज्ञान नही था. मुगलों ने नमाज से पहले शरीर के अंग धोने के लिए उजु और मस्जिद में बड़ी खाली जगह दोनो का निर्माण नहीं किया था.
मैं सहमत हुआ "हां, इस्तांबुल के गुंबद वाले मस्जिदों में आमतौर पर अजन के लिए मीनार होते हैं ताकि वफ़ादारों को नमाज़ के लिए बुलाया जाए,जबकि बाबरी मस्जिद में कोई मीनार नही था .
फिर मैं उसे असली मुद्दे पे ले आया जिसे वो शुरूवात में ना जानने का नाटक कर रहा था.
उसने कहा,"मुगलों को अंदर एक सुअर की मूर्ति मिली। यही वजह थी कि मुसलमान वहाँ पे नमाज़ नही पड़ते थे.कौन जहन्नुम में जाना चाहता है?"
फिर मुझे उसे विष्णु के दस अवतारों को समझाना पड़ा।
विष्णु के दस अवतार हैं:-
1.मत्स्य(मछली)
2.कूरमा(कछुआ /कासव)
3.वराहा(सुअर /डुककर)
4.नरसिम्हा(मानव शेर)
5.वामन(बौना /ठेंगू)
6.परशुराम(क्रोधित पुरुष,कुल्हाड़ी वाला राम)
7.राम(उत्तम पुरुष ,अयोध्या का राजा)
8.कृष्ण(दिव्य राजनेता)
9.अयप्पा
10.कल्कि(महान योद्धा,अंतिम अवतार).
तीसरा अवतार एक सुअर नहीं था, बल्कि एक बोर(BOAR) था, जो निश्चित रूप से उसी श्रेणी में आता है।
भगवान विष्णु ने वराह अवतार या बोर अवतार ग्रहण किया, ताकि वो हीरण्यक्ष को हरा सके जो पृथ्वी को ब्रह्मांडीय महासागर के नीचे तक ले गया था. वराह और हिरण्यकक्षा के बीच लड़ाई में बहुत लंबा समय लगा और आखिर में वराहा जीता।
वराह ने पृथ्वी को अपने दांतों के बीच महासागर से बाहर किया और इसे ब्रह्मांड में अपनी उचित कक्षा में बहाल किया। विष्णु ने इस अवतार में पृथ्वी (भूदेवी) से शादी की. उसने फिर अपने बेटे, एक आशुरा, नारकासुरा को जन्म दिया। वराह को या तो पूरी तरह से पशु या मानव विज्ञान के रूप में दर्शाया गया है, जिसमें मनुष्य के शरीर पर सूअर का सिर होता है।
बाद के रूप में उनके पास चार हथियार दिखाए हैं, जिनमें से दो पहिया और शंख-शेल रखते हैं जबकि अन्य दो एक गदा(MACE), तलवार या कमल धारण करते हैं या आशीर्वाद (या "मुद्रा") देते हैं। धरती को सूअर के दाँतों के बीच दिखाया गया है. यह अवतार ने पृथ्वी को प्रलय(बाड़) से पुनर्जीवित किया और एक नए कल्प (ब्रह्मांडीय चक्र) की स्थापना की.
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- ब्रह्मांडीय साँस लेना और छोड़ना (तमस / राजस - यिन-यांग) के बारे में जानने के लिए
फिर उसने कहा -ऐसी मूर्तियों के साथ एक इमारत में इबादत करना तो भूल ही जाओ,इस्लाम में तो सुअर की तरफ देखने की भी इजाजत नहीं है.
इसलिए मैंने उन्हें बताया " सिर्फ मुगल ही नहीं बल्कि सभी भारतीय मुसलमान भी उसी तरह महसूस करते हैं. मेरे एक मुस्लिम दोस्त ने चेन्नई में एक नई फिएट कार खरीदी और अपने दोस्त के साथ उसपे सवारी करते हुए, एक चलते हुए सुअर को सड़क पर कुचल दिया. कार को कुछ नहीं हुआ.
लेकिन उसे इसको बेचना पड़ा, क्योंकि उसके मित्र ने मस्जिद में जाकर सभी को बताया। और मस्जिद में सबने उसे कार बेचने की सलाह दी। आख़िरकार वह हिंदुओं से भी अच्छी कीमत नहीं पा सका और उसे इसे एक गरीब ईसाई को बेचना पड़ा, जो इसे अफोर्ड नहीं कर सकता था और उसे बहुत कम पैसे मिले.
बाबर की डायरी बाबरनामा में अयोध्या मस्जिद का कोई संदर्भ नहीं है.समकालीन तारीख-ए-बाबरी में लिखा है कि बाबर की सेना ने "चंदेरी में कई हिंदू मंदिरों को ध्वस्त दिया".
मेरे पाकिस्तानी 3र्ड इंजिनियर के बारे में बहुत हुआ.
1992 में बाबरी दंगों के बाद मुसलमानों की निगरानी में साइट पर एक सरकारी खुदाई हुई थी।
उन्होंने पाया कि मस्जिद वास्तव में एक भव्य हिंदू मंदिर की नींव पर बनाया गया था, एक ही सामग्री का उपयोग करके. उन्हें एक मोटे पत्थर के स्लैब पर संस्कृत शिलालेख भी मिला।
संस्कृत की 20वी कविता में यह लिखा था;
"उसकी आत्मा के उद्धार के लिए राजा ने,वामन अवतार के छोटे पैरों पर अपनी आराधना देके,विष्णु हरि (श्री राम) के लिए एक अद्भुत मंदिर का निर्माण करने गया, आसमान तक पहुंचने वाले पत्थर के अद्भुत स्तंभ और ढांचे के साथ और सोने से रचा हुआ - एक मंदिर इतना बड़ा कि दुनिया के इतिहास में कोई भी अन्य राजा ने ऐसा पहले कभी नही बनाया था.यह मंदिर मंदिर-अयोध्या के शहर में बनाया गया है। "
ऊपर: नागरी लिपि स्क्रिप्ट का एक उदाहरण।
विशाल पत्थर की स्लैब के शिलालेख पर 20 लाइनें, 30 श्लोक (छंद) हैं, और यह संस्कृत में नागरी लिपी में लिखी गई है।
इस संदेश को एपिग्राफिस्ट, संस्कृत विद्वान, इतिहासकारों और पुरातत्वविदों(ARCHAEOLOGISTS) की एक टीम द्वारा समझा था .
भगवान विष्णु के राजा और वामन अवतार के बारे में अधिक जानने के लिए-
google में टाइप करें ONAM 2012- VADAKAYIL.
यह असुर राजा महाबली, की राजधानी केरल में थी। यही कारण है कि हम केरल में दीवाली नहीं मनाते. दिवाली देवो की असूर पर जीत के जश्न में मनाई जाती है।
भारत के मुस्लिमों को इन सब पर विश्वास ना करने की आज़ादी है. लगे रहो,यहाँ इबादत करो और जन्नत में जाओ.
अयोध्या मंदिर, जिसे बाबर द्वारा नष्ट किया गया था, हिंदू वास्तु के अनुसार बनाया गया था। उत्तर पूर्व में एक जल निकाय है. सरयू नदी इसके पास से बहती है।
सरयू नदी का कई बार वेद (5000 ईसा पूर्व) और रामायण (4300 ईसा पूर्व) में उल्लेख किया गया है। बहराइच जिले में करनाली (या घाघरा) और महाकाली (या शारदा) के संगम से सरयू रूप लेती है। महाकाली या शारदा भारतीय-नेपाली सीमा बनाती है.
ऋग्वेद में नदी का उल्लेख तीन बार किया गया है(आर.वी. 4.30.18 / आरवी 5.53.9). सरयू को बाद में भजन आर.वी. 10.64 में सिंधु और सरस्वती (सबसे प्रमुख ऋग्वेदिक नदियों में से दो) के साथ जोड़ा गया है।
रामायण राम,सीता और लक्ष्मण को सरयू नदी पार करने का वर्णन करता है। रामायण (1.5.6) में, सरयू प्राचीन शहर अयोध्या के पास प्रवाहित हुआ और यहां पर भगवान राम,विष्णु के सातवें अवतार ने कोशल के सिंहासन से अवकाश(रिटाइर) लेने के बाद खुद को अपने अनन्त, वास्तविक महाविष्णु रूप में वापस जाने के लिए विसर्जित किया. उनके भाई, भरत और शत्रुघ्न भी उनके साथ जुड़ गए, जैसा कि कई अनुयायियों ने भी किया। सरयू नदी के किनारे पर राजा राम का जन्म हुआ था।
रामायण के अनुसार, सरयू नदी का किनारा भी वही स्थान है जहां राजा दशरथ ने गलती से श्रवण कुमार को मार डाला था और इसे पृथ्वी के नीचे बहने वाली एकमात्र नदी भी कहा जाता है।
इटॅलियन 'वेट्रेस बनी महारानी' ,उसके कम बुद्धि वाले बेटे और उनके साथ की मंडली के अनुसार भगवान राम एक मिथ्या है.
लेकिन कोरियाई वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए यहां आते हैं।
वे यहां तक कि अयोध्या शहर प्रायोजित भी करना चाहते हैं-ऐसा उनका विश्वास है।
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पुराने मंदिर के खंभे फिर से इस्तेमाल किये गये, जिसमें हिंदू देवताओं और देवियों की प्रतिमाएं थीं जो कि इस्लाम की बुनियाद के विरुद्ध है .. तीनों न्यायाधीशों ने स्वीकार किया कि मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर है और राम मंदिर को विशेष रूप से ध्वस्त किया गया था। अन्य बड़े बड़े मंदिर जो मस्जिद में परिवर्तित हुए थे वो हैं कृष्णा जनंभूमि(मथुरा), काशी विश्वनाथ (बनारस).
जब से बाबरी मस्जिद बनी,तब से इस मस्जिद पर हिंदुओं द्वारा सैकड़ों हमले किए गए. मुस्लिम आक्रमणकारी शासन के दौरान, इन विद्रोहों को सार्वजनिक रूप से टॉर्चर और फांसी देकर दबाया गया. ब्रिटिश शासन के दौरान, वे इसे "डिवाइड आंड रूल" के लिए इस्तेमाल किया . बल्कि वे हिंदुओं को याद दिलाते थे कि यह उनका राम मंदिर है।
फैजाबाद के जिला गैजेटियर(अंग्रेज़) 1905 के अनुसार,1855 तक, हिन्दू उस बिल्डिंग में पूजते थे. लेकिन सिपाही विद्रोह (1857) के बाद, एक बाहरी दीवार मस्जिद के सामने बनाई गया और हिंदुओं को अंदर यार्ड तक पहुचने से मना किया गया . इसलिए हिंदुओं ने प्रार्थना करने के लिए एक चबूतरा बनाया, जो की दीवार के बाहर है।
1934 के (अंग्रेजों द्वारा कराए गए) हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक दंगों के दौरान,मस्जिद के चारों ओर की दीवारों और मस्जिद के एक गुंबद को क्षतिग्रस्त किया गया था। इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा फिर से बनवाया गया था।
स्वतंत्रता से पहले 1947 में, लॉर्ड माउंटबैटन ने एक लिखित हुकूमनामा देकर मुस्लिमों के मस्जिद के 200 मीटर के भीतर आने पर रोक लगा दी. इसे अँग्रेज़ों ने लागू किया. मुख्य गेट को लौक कर दिया गया. हालांकि, उन्होंने हिंदू तीर्थयात्रियों को साइड के दरवाज़े के माध्यम से प्रवेश करने की इजाज़त दी।
भारतीय गृह मंत्री शंकर राव चव्हाण ने साइट पर एक हाई प्रोफ़ाइल यात्रा की। उनके साथ कई हिंदू और मुस्लिम विशेषज्ञ भी थे। हिंदू वास्तु, हिंदू मूर्तियों का निरीक्षण करने के बाद, उन्होंने कहा,"अब मैं बाबरी मस्जिद देखना चाहता हूं।" उन्हें बताया गया की यही बाबरी मस्जिद है. चव्हावान ने खुद को बेवकूफ़ जैसा महसूस किया.
मिसटर के.के. मुहम्मद, उप अधीक्षक पुरातत्वविद् (archaeologist, मद्रास सर्कल ) ने अंग्रज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस को 15 दिसंबर 1990 में यह कहा:-
"मैं बड़े प्रमाण के साथ इसे दौहरा सकता हूं(यानी बाबरी मस्जिद द्वारा विस्थापित होने से पहले हिंदू मंदिर की मौजूदगी)--क्योंकि मैं एकमात्र मुस्लिम था जिसने 1976 में प्रोफेसर लाल के अंडर 1976 में अयोध्या की खुदाई में भाग लिया था।. मैंने बाबरी साइट के पास उत्खनन(excavation) का दौरा किया है और खुदाई के आधार स्तंभों को देखा।
मुहम्मद ने और कहा:"जैसे मक्का मुसलमानों के लिए पवित्र है वैसे ही अयोध्या हिंदुओं के लिए पवित्र है.मुसलमानों को अपने हिंदू भाइयों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और राम मंदिर के निर्माण के लिए ढाँचे को खुद से सौंप देना चाहिए "
क्या कोई भी मुसलमान इस मस्जिद में इबादत करेगा, जिसमे मुघलों ने नेमाज पड़ने पे रोक लगाई थी?
क्यूँ इतना हल्ला हो रहा है?
केवल पॉलिटिक्स के लिए?
अगर मक्का अयोध्या के स्थान पर होता, तो मुसलमानों का क्या रवैया होता?हक़ीकत में पाकिस्तानियों को हिन्दुस्तानी मुसलमानों से ज़्यादा चिंता है बाबरी मस्जिद की. पाकिस्तानियों को मालूम है कि बाबरी मस्जिद हिंदुओं का काबा है।
उन्होंने अभी तक इस सच्चाई को स्वीकार नहीं किया है कि भारत के मुसलमान पाकिस्तान में जाना नहीं चाहते,जबकि पाकिस्तान के सभी हिंदू भारत में आना चाहते हैं.
क्या पाकिस्तानी हिन्दुस्तानी मुसलमानों में एक गुप्त मतदान या पोल(निष्पक्ष थर्ड पार्टी द्वारा) करवाना चाहेंगे यदि वे पाकिस्तान जाना चाहेंगे या नहीं और यही पोल उल्टा पाकिस्तानी हिंदुओं में भी करवाएँगे? मैं आपको बताउ, इसका नतीजा शून्य पर्सेंट और सौ पर्सेंट होगा.
शर्त लगाओगे?
लानत हो!!
हमारे तीन मुस्लिम राष्ट्रपति रहे हैं-- क्या कोई हिंदू पाकिस्तान का राष्ट्रपति बन सकता है?
भारत में पूरी दुनिया से ज़्यादा मुसलमान हैं(इंडोनेषिया को छोड़के).
1947 के पारटिशन के बाद, हिन्दू भारत में आए, पर मुसलमान पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। ब्रिटिश (रोथसचाइल्ड) ने जान-बूझकर दंगे करवाए ताकि मुसलमान पश्चिम और ईस्ट पाकिस्तान में जाएँ.
यह हिमालय के दोनों ओर एक इस्लामिक अवरोध(barrier) था ताकि सोविएत या चाइनीस कम्यूनिस्ट(साम्यवादी) इंडियन महासागर पे पकड़ ना बना लें. याद रहे,इस्लाम और कम्यूनिसम तेल और पानी की तरह हैं.
अब, मैं बहुत सारे ऐतिहासिक झूठों का पर्दाफाश करूँगा, जो मुघलों ने खुद को "गुलाब की सुगंध" जैसा दिखाने के लिए लिखा था.
बाबर आधा ही पड़ा-लिखा था. क्योंकि वह 11 वर्ष की उम्र से ही युद्ध का अभ्यास कर रहा था। वह एक कवि या लेखक नहीं था.वो खुद के लेखकों को साथ लेकर चलता था,जिन्हें वो बताता था की क्या लिखना है.ये सामान्य था. यहां तक कि अलेक्जेंडर द ग्रेट का भी कवियों और लेखकों का गैंग था जिनका काम था उसे महानायक जैसा दिखना.
ऐसे सम्राट कभी भी युद्ध में हार के दौरान पीछे हट नही सकते,वे केवल निर्देशन में बड़े सम्मान से आगे बढ़ेंगे।
लगान फिल्म में,अँग्रेज़ एक क्रिकेट मैच ऐसे गाओंवालों से हार गए जिन्होने कभी क्रिकेट खेला ही नहीं था,और अँग्रेज़ों को सौदे के मुताबिक गाओं छोड़कर जाना पड़ा---पर वे बड़े स्टाइल में छोड़कर गए और पूरा गाओं हीन भावना से उन्हें जाते हुए देख रहा था.
बाबरनामा(बाबर की चिट्ठियाँ या तुज़क-ए-बाबरी) ज़हीर-उद्-दीन मोहम्मद बाबर(1483-1530) की संस्मरण(memoirs) हैं जो कि मुघल राज का स्थापक था."कहा जाता है" कि वह तिमूर के पोते के पोते का पोता था.
यदि आप तिमूर के हारेम के आकार के बारे में जानते हैं तो आपको "कहा जाता है" का मतलब समझेगा. बाबर भाड़े का सिपाही(mercenary) था.कोई भी सफलता सफलता जैसी नहीं होती, है ना?
इसे एक आत्मकथात्मक कार्य माना जाता है जिसे मूल रूप से छगाताई भाषा में लिखा गया था जिसे बाबर "तुर्की" कहता था जो कि अन्डिज़न-टिमुरिड्स की बोली जाने वाली भाषा थी.
बाबर के पाँच बच्चे थे-हुमायूँ(उसका वारिस) ,अस्करी मिर्ज़ा,गुलरुख बेगम,कामरन मिर्ज़ा. हुमायूँ के दो बच्चे थे--अकबर और मोहम्मद हकीम.
अकबर ने अपने दादा के संस्मरणों की बुरी स्थिति देखी और उसने इसे एक अति उत्तम रचना में बदलने का फैसला किया. असल में यह स्वार्थ का कार्य था, धोखाधड़ी, धोखे, 420सी, वासना से रहित अपने भव्य जीनों और रक्त को दिखाने के लिए.
ये वैसे ही है कि कई लोग टाई-सूट पहें कर एक साथ फोटो खिचवाएँ. भारत में उसके दादा के अभियान बहुत शर्मनाक थे और इसलिए अकबर,अपने दादाजी की तुलना में अधिक क्लास वाले, ने उन बुरे पन्नों को मिटा दिया.
अकबर के शासनकाल में, बाबर की डायरी को पूरी तरह से मुगल बादशाह द्वारा फारसी में अनुवाद करवाया गया;अब्दुल रहीम ने खुद से थोडा मिर्च-मसाला भी डाला.
अन्यथा, कितने लोग इन खराब शब्दों के साथ शुरू होने वाली डायरी लिखेंगे-------
"1494 में ,फरगाना प्रांत में,जब मैं बारा साल का था,तब मैं राजा बन गया."हा हा हा हा हा!
अब बस आगे के रत्नों की जांच करें,छोटे से छोटा हिसाब-किताब, सब उसकी तरफ़दारी कर रहे हैं. इराक में अमेरिकी सरकार ने भी ऐसा ही किया. एक सबसे शर्मनाक युद्ध एम्बेडेड पत्रकारों द्वारा एक सम्माननीय युद्ध में परिवर्तित किया गया था. इन झूठे प्रचार खातों में अमेरिकी सैनिकों की "टट्टी की बदबू" भी नहीं आ रही थी।
बाद में एक एंबेडेड पत्रकार की अंतर-आत्मा जाग उठी और उसने कई चौका देने वाले राज़ खोले,जो कोई हिंदू या मुस्लिम राजा भी नहीं करेगा क्यूंकी ऐसा हमारी संस्कृति के खिलाफ है.
अब मैं चाहता हूं कि आप सभी बहुत ही चौंकाने वाले और परेशान करने वाले इराक़ी हाइवे-80 की कत्लोगारत के बारे में।
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2012/07/leander-bhupati-sania-ego-clashes-and.html
मैने जान-बूझकर इसकी ग़लत हेड्डिंग डाली क्योंकि यह पोस्ट यहूदी बिग ब्रदर द्वारा इंटरनेट से हटा दिया जाता.
अब बाबर की डायरी से "अच्छे" पैरा की जांच करें--
Quote---" एक व्यक्ति ने इब्राहिम बेग पर निशाना सादा.लेकिन तब इब्राहिम बेग चिल्लाया, "हाय हाय!";और उसने उसे जाने दिया और गलती से मेरी कांख(armpit) में गोली मार दी,ठीक उतनी ही दूरी से जितना एक चोवकिदार और गेट के बीच में होती है.मेरे कवच की दो प्लेटें टूट गईं. मैंने एक आदमी को मारा, जो रणभूमि से भाग रहा था, युद्ध के मैदान में अपनी टोपी का समायोजन कर रहा था।उसकी टोपी गिरी,वह दीवार से चिपक गया,उसकी पगड़ी से साष निकला."
अब मैं थोड़ा मसले से भटकता हूँ:
अब मुझे एक दिलचस्प घटना बताना है.अपने मास्टर्स रीवैलीडेशन कोर्स ख़त्म होने के बाद मैं ट्रेन में चेन्नई से कालीकट लौट रहा था फर्स्ट AC में. मैंने पाया कि सभी कालीकट के रोटरी क्लब से थे। जब भी मैं छुट्टी पे होता हूँ तब मैं रोटरी क्लब स्विमिंग पूल और हेल्थ क्लब में जाता हूं. वे रोटरीयन की शादी के लिए चेन्नई गए थे और वे एक साथ वापस आ रहे थे।
बीच में, डिब्बे में लगभग 20 वर्ष का एक युवा लड़का था.उसने लगभग हर किसी को दो बार देखा और फिर वह मेरे पास आया और 200 रुपये के लिए मुझसे पूछा, जो कि उस ज़माने में बहुत होता था. उसने कहा कि वह दिल्ली के एक कॉलेज का छात्र है जिसने चेन्नई में अपने सारे पैसे खो दिए और अब वह घर वापस जाना चाहता है।
तो मैंने उससे कहा "सुनो, मैं तुम्हें लंबे समय से देख रहा हूं। तुम काफ़ी लोगों को रेलवे प्लेटफॉर्म पर देख रहे थे, और अब मुझसे भीख माँगने के लिए आ गये हो.बात क्या है?क्या मैं तुझे गान्डू दिखता हाऊं?"
उसने जवाब दिया "महोदय, आप बड़े दिलवाले दिखते हैं। अन्य कोई 5 रुपया भी नही देंगे,200 रुपय तो दूर की बात है. घरपहुचने के बाद, मैं यह धन आपको आपके घर भेज दूंगा "।
परिचित कहानी-केवल एक मूर्ख और उसका पैसा हमेशा जुदा हो जाता है.
इसलिए मैंने उससे पूछा "कॉलेज में तुम्हारा सब्जेक्ट क्या है"
उसने जवाब दिया,"इतिहास,और मैं यहाँ प्रॉजेक्ट के मकसद से आया हूँ."
फिर मैने उसे साफ़तौर पे कहा,"मैं तुमसे इतिहास का एक सरल प्रश्न पूछूँगा जिसका जवाब हर हिस्टरी छात्र को पता है.अगर तुम्हे नहीं मालूम फिर भी मुझे जवाब चाहिए बस ये देखने के लिए कि तुम कितने दशक या शताब्दी दूर हो. "
उसने मुझे एक जवाब दिया जो कि सही उत्तर से 200 साल दूर था।
तो मैंने कहा "क्षमा करो दोस्त,तुम किसी अन्य अमीर गधे के साथ अपनी किस्मत ट्राई करना ".
वह डिब्बे से नीचे गया। मैं खिड़की से उसे करीब से देख रहा था. 5 मिनट के बाद, वह फिर से मेरे पास आ गया।
उसने पूछा, "सर, सही तारीख क्या है?"
तो मैंने उसे 200 रुपये दिए और कहा "साल 1526 है".
वह इतना खुश हुआ कि उसने मेरे पैरों को छुआ। मुझे लगता है केवल एक इतिहास का छात्र ही सही जवाब पूछने के लिए वापस आएगा.
पानीपत की पहली लड़ाई (दिल्ली से कुछ मील की दूरी पर) भारत में बाबर की पहली लड़ाई थी,उसके हमले के बाद. भाग्य के इस सैनिक ने 21 अप्रैल 1526 को इब्राहिम लोदी की सेना को हरा दिया।
इससे भारत में मुगल साम्राज्य की शुरुआत हुई. यह सबसे पहले लड़ाइयों में से एक था, जिसमें गनपाउडर आग्नेयास्त्रों और फील्ड आर्टिलरी शामिल थे। बाबर के पास बंदूकें और तोप थे। इब्राहिम लोढ़ी की सेना सैकड़ों हाथियों के साथ,12 गुना बड़ी थी.
इस महत्वपूर्ण लड़ाई का ऐतिहासिक रिकॉर्ड एक बड़ा झूठ है।
बाबर को एक भाड़े के सैनिक(mercenary) के रूप में भारत में आमंत्रित किया गया था।
मुसलमानों 335 साल पहले, भारत में बहुत समान तरीके से सत्ता मिली थी। 1191 ईस्वी में काबुल के शासक शहाबुद्दीन मुहम्मद घोरी को जयचंद्र राठोड द्वारा सोने की रिश्वत (सुपारी) दी गई थी. 1191 ईस्वी में काबुल के शासक शहाबुद्दीन मुहम्मद घोरी को जयचंद्र राठोड द्वारा सोने की रिश्वत (सुपारी) दी गई थी. जयचंद्र गुज्जर जातीय समूह के कन्नौज का गहदवाल राजा था,जो कि सुंदर दिखने वाले भारतीय राजा पृथ्वीराज चौहान iii (राजपूत की छहनाम राजवंश का राजा) को सबक सीखना चाहता था क्योंकि उसकी बेटी पृथ्वीराज के साथ भाग गई थी.
संयोगिता या समयुक्ता,राठौड़ की हठी लेकिन खूबसूरत बेटी थी। उसने चौहान की वीरता और सुंदरता के बारे में सुना था और उसे पसंद करती थी। उसने चुपके-चुपके उससे संवाद किया क्योंकि उसके पिता और चौहान में छत्तीस का आँकड़ा था. पृथ्वीराज और समयुक्ता का प्यार भारत का सबसे लोकप्रिय मध्यकालीन रोमांस है।
गुप्त अफ़फेयर के बारे में जानकार,राजा जयचंद्र को नाराज़गी हुई कि इस तरह की मनाही उसकी पीठ के पीछे हो रही थी. उन्होंने,एक स्वयंवर द्वारा,अपनी बेटी की जल्द शादी करवाने का निर्णय लिया. जल्दबाजी में उन्होंने दूर-दूर तक की रॉयल्टी को समारोह में आमंत्रित किया. पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर प्रत्येक योग्य राजकुमार और राजा वहाँ आमंत्रित थे जिससे संयुक्ता चिड़ गई.
चौहान को अपमानित करने के लिए, जयचंद ने स्वयंवर मैदान के गेट पर चौहान की जीवन आकार की मूर्ति स्थापित की. द्वारपाल के रूप में तैयार चौहान भड़क गया और उसने संयुक्ता को साथ ले जाने का फैसला किया।
समारोह के दिन,समयुक्ता ने हॉल से चलते-चलते सभी लड़कों को नज़रअंदाज़ करके शादी की माला पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना दी और उसे अपना पती घोषित किया.
चौहान, जो गुप्त रूप से छिपा हुआ था,उसने समयुक्ता को अपनी बाहों में लिया और तुरंत अपने घोड़े पे उसे ले गया. यह बहुत मशहूर कहानी है.
जयचंद ने गुस्से में बदला लेने की ठान ली.
छिपे हुए रणनीतिक खैबर पास हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला से 53 किलोमीटर की दूरी पर है। यह सफेद कोह पहाड़ों के पूर्वोत्तर भाग से कट जाता है. अपने सबसे कम पॉइंट पर,यह पास केवल 3 मीटर चौड़ा है। यह अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की उत्तरी सीमा को जोड़ता है और प्राचीन भारत में आने का एकमात्र रास्ता था. यदि आपके पास कोई मार्गदर्शक नहीं है तो आप मर जाते हैं.
जयचंद युद्ध में चौहान को पराजित करने के लिए ज़्यादा ताकतवर नहीं था,इसलिए उसने विदेशी मर्सिनरी मोहम्मद घोरी को सुपारी दी और खैबेर पास से आने की जानकारी भी दी.
1191 में,120,000 पुरुषों और घोड़ों की सेना के नेतृत्व में,शहाबुद्दीन मुहम्मद घोरी ने खैबर पास के माध्यम से भारत पर आक्रमण किया और पंजाब तक पहुंचने में सफल रहा। चौहान के पास 20000 पुरुषों और 300 हाथियों की ज़्यादा बड़ी सेना थी। तारायण शहर में थानेसर के निकट, वर्तमान हरियाणा में (दिल्ली से 150 किमी उत्तर) में दोनों सेनाएँ मिले।
इतिहास ने दोहराया (जैसे अलेक्जेंडर के लिए 326 ईसा पूर्व में) और शहाबुद्दीन मोहम्मद घोरी के घोड़े के घुड़सवार सैनिक 300 हाथियों के खिलाफ अपनी पकड़ नहीं बना सके। भयभीत घुड़सवार सेना ने रैंकों को तोड़ दिया और पूरी तरह से भ्रम में चौहान आसानी से जीत गया.
घोरी को कैदी बना दिया गया. उन्होंने अपनी जिंदगी की मांग की और सम्माननीय चौहान ने मूर्खता से उसे,समयुक्ता और बुद्धिमान मंत्रियों की सलाह के खिलाफ, काबुल लौटने की अनुमति दी। यह सबसे बड़ी ग़लती थी, जो ब्रिटिश शासन से 650 साल पहले मुक्त भारत में हुई जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम शासन भारत में आया.
घोरी वापस आफ्गानिस्तान गया और फिर एक साल बाद 1192 में ताराइन की दूसरी लड़ाई में, चौहान को एक मजबूत और बुद्धिमान सेना के द्वारा हराया.
पृथ्वीराज चौहान ने इसकी कभी उम्मीद नहीं थी क्योंकि उसकी सेना तब तक अपनी पत्नियों के साथ जीत का जश्न माना रहे थे. चौहान ने अपने ससुर जय चंद से सैन्य सहायता मांगी । जयचंद ने मायूसी में इसे ठुकरा दिया था.
पृथ्वीराज को बंधक बनाया गया और उसे ज़ंजीरों में घोरी के सामने लाया गया. उसने घोरी को आँख से आँख मिलके बात की जिससे घोरी बहुत क्रोधित हुआ. घोरी ने उसे आँखें करने करने का आदेश दिया, जिसपे निडर पृथ्वीराज ने घोषणा किया कि राजपूत की आँखें केवल मृत्यु आने पे ही नीचे होती हैं.
घोरी ने चौहान की आंखों में लाल गर्म कोयले डाल दिए और उसे अंधा कर दिया। उसने चौहान को कई दिनों तक अपमानित करने के बाद उसकी हत्या कर दी.
बेकार शकल वाले घोरी ने समयुक्ता का बेरेहमी से बलात्कार किया जिसके बाद समयुक्ता ने आत्महत्या कर ली. उसके पिता जयचंद को पश्चाताप हुआ,उसने बाद में यमुना नदी में खुद को डूबा दिया.
हजारों राजपूत महिलाओं ने अपने बच्चों के साथ आग में कूद कर खुद को मार डाला(जौहर). अनगिनत हिंदुओं को जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया.
घोरी के लेफ्टिनेंट, कुतुब-उददीन ऐबक ने बाद में भारत पर शासन किया और भारत के पहले मुस्लिम शासक वंश की स्थापना की। उसने 14 साल तक राज किया
उसके दामाद ने उसकी याद में प्रसिद्ध कुतुब मीनार और मस्जिद का निर्माण किया. इसे बाबरी मस्जिद की तरह बनाया गया था। ध्रुव स्तम्भ के नाम से एक खगोलीय वेधशाला(astronomical observatory) थी यहां। कुतुब मीनार सिर्फ एक सतही रूपान्तरण है।
पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद ही दिल्ली में हिंदू शासन का अंत हो गया.1192 ईस्वी में यह भारतीय इतिहास का बड़ा मोड़ था.
भारत, धरती पर सबसे अमीर और शानदार भूमि, अब 855 साल की गुलामी सहेगी.
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब तक 9 करोड़ हिंदू सबसे क्रूर तरीकों से मारे जाएँगे. तुर्क साम्राज्य अपने चरम पर, भारत से वित्त पोषित(फंडेड)) किया गया था।
ऊपर: कश्मीर का मार्थांडा सूर्य मंदिर।
1947 में ,जब हमने गुलामी के बंधन तोड़ दिए, तब भारत ग्रह का सबसे गरीब देश होगा;कुली और सपेरों का बदनाम देश.
English post:
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Hindi:-
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वर्ष 1494 में, बाबर अपने पिता के मरने के बाद ,फर्गाना का शासक बन गया जो वर्तमान उजबेकिस्तान में स्थित है. 7000 ईसा पूर्व में, राजा विक्रमादित्य के शासन के दौरान, उजबेकिस्तान भारत का हिस्सा था।
बाबर ने समरकंद नामक एक शहर पर हमला किया और सात महीने के संघर्ष के बाद इस्पे कब्जा कर लिया।
बाबर ने,लोदी वंश के दौरान ,पंजाब की सीमा से चार बार भारत पर हमला किया। वह काबुल में अपनी राजधानी से आक्रमण किया करता था. जब भी वह बंदूकों के साथ आता था तब वह शक्तिशाली सेना से बुरी तरह मात ख़ाता था. ये बातें उसकी डायरी कभी नहीं बताएगी.
फिर 1526 में, उसे महल षड़यंत्र द्वारा हमला करने के लिए आमंत्रित किया गया---और उसे जीत का आश्वासन दिया गया, बशर्ते वह सही कीमत चुकाए.
शासक इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान लोधी, धोखे से सिंहासन को हड़पना चाहते थे।
यह जाना-माना तथ्य था कि मेवाड़ के राजपूत राजा राणा संघा की सेना इब्राहिम लोदी की सेना से ज्यादा शक्तिशाली सेना थी और वह दिल्ली से अफगान राजा इब्राहिम लोढ़ी को भागने के लिए तैयार था।
राणा संघा का हमला होने के बाद बहुत देर हो जाती. राणा संघा सूर्यवंशी राजपूतों के सिसोदिया कबीले का वंशज था. वह 1509 में वह मेवाड़ के राजा राणा रयमाल का वारिस हुआ और वह पूरे उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राजा था.
दौलत खान लोदी के नाम का एक दूत ,जो आलम खान के प्रति वफादार था,उसे गुप्त गुप्त रूप से काबुल भेजा गया था। दौलत खान पंजाब का राज्यपाल था।
बाबर अपने 17 साल के बेटे हुमायूं और 11,000 की मजबूत सेना और फील्ड आर्टिलरी के साथ भारत आया. इब्राहिम लोदी के 150,000 सैनिक और 500 युद्ध हाथी हैं, लेकिन उसके पास कोई बंदूक नहीं थी।
इतिहासकारों के दावे के विपरीत, इब्राहिम लोही के हाथी,बंदूक की गोलीबारी को अनदेखा करने के लिए प्रशिक्षित किए गए थे और उनके कानों में पैडिंग की गई थी. हुमायूं के लिए कोई मौका नहीं था, जो कि मुख्य हमले दल में था।
एक घंटे की लड़ाई के भीतर, आलम खान लोधी द्वारा युद्ध के मैदान पर ,इब्राहिम लोदी की हत्या कर दी गई और उसे उसके गद्दार जेनरल्स द्वारा मरने के लिए छोड़ दिया गया जो बाबर के साइड हो गए
इब्राहिम की मीलों तक लंबी विशाल सेना,वास्तव में एक भी वार नहीं कर पाई. बाबर ने इब्राहिम लोदी की सेना का नरसंहार नहीं किया - यह रेकॉर्ड में है। वैसे भी वह ऐसा कैसे कर सकता था? शायद ही कोई मरा था. मुझे यकीन है कि बाबरनामा (बाबर का प्रचार टुकड़ा) ने इस शर्मनाक घटना को रिकॉर्ड नहीं किया होगा. मुस्लिम युद्धों में कभी कोई सम्मान या शिष्टता नहीं थी.
बाबर के पानीपत में विजयी होने के बाद दिल्ली पर कब्जा कर लिया। हजारों हिंदुओं को तलवार से मार दिया गया, और महिलाओं का बलात्कार किया गया. बाबर के दिल्ली के क्रूर अपराध,उसके समरकंद के अपराधों से कहीं अधिक थे,जहाँ उसने 700,000 निवासियों को मौत के घाट उतारा,सुंदर लड़कियों को क़ब्ज़े में लिया और सुंदर लड़कों की गोटियाँ काटके उन्हे हिजड़ा बना दिया.
फिर उसने अपने बेटे हुमायूं को इब्राहिम लोदी की राजधानी आगरा के रॉयल महल और ख़ज़ाने पे कब्जा करने के लिए भेजा. इसके तुरंत बाद, बाबर हुमायूं के साथ शामिल हुआ और आगरा को अपने राज्य की राजधानी बनाया.
राणा संघ ने इस बीच, गुजरात को पहले ही कुचल दिया और माल्वा पर विजय प्राप्त करके आगरा की ओर रवाना हुआ. इस मौके पर उसने सुना की बाबर ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया और उसे मारकर दिल्ली सुलतनत का मास्टर हो गया. बाबर खुद को 'पड़शाह' का सर्वोच्च पद प्रदान करने वाला पहला व्यक्ति था.
राणा संघा परेशान हो गया जब उसने सुना कि बाबर ने खुद को सम्राट घोषित किया. अब वह जानता था कि बाबर का वापस काबुल जाने का कोई इरादा नहीं है, और इसलिए उसने लड़ाई करने का फैसला किया क्यूंकी वह ताकतवर था.
पहले कदम में, उसने इब्राहिम लोदी के वफादार अफघानी भगोड़े महमूद लोदी और हसन खान मेवाती जैसे राजकुमारों को शरण प्रदान की। फिर उसने आधिकारिक रूप से बाबर को चेतावनी दी और एक समय सीमा के भीतर उसे भारत छोड़ने के लिए कहा। उसे उम्मीद थी की यह मसला बात-चीत से सुलझ जाएगा और उसने अपने दूत 'रायसें के सिलहदी' को भी भेजा.
1527 में, सिलहदी ने मुगल बादशाह बाबर के खिलाफ एक भव्य राजपूत सम्मलेन में मेवाड़ के राणा संघा के साथ गठबंधन किया। राणा संघा ने अपनी बेटी का हाथ सिह्हदी के बेटे को अपने गठबंधन के प्रतीक के रूप में दिया था। यह सबसे बड़ा सम्मान था जिसके लिए एक वासदार(vassal) कामना कर सकता था क्योंकि राणा राजपूतों के सबसे प्रतिष्ठित कबीले का था.
राजा शिलादित्य(सिलहदी ),जिसने राणा संघा को धोखा दिया,पूर्वोत्तर मालवा का 'तोमर सरदार' था. उसने पूर्बीय सैनिकों के एक भाड़े के बल(mercenary force) का नेतृत्व किया. यह पूर्बीय सैनिक पूर्बी उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले थे.
इस आदमी में गद्दार का खून था. वह अपने जीवन के दौरान उत्तर और मध्य भारत की राजनीति में निर्णायक कारक बना रहा और अपने अचानक दल-बदल से कई राजाओं की किस्मत डूबाने का जिम्मेदार था. उसने खानवा की लड़ाई में राणा सांगा को धोखा देकर और राजपूत सम्मलेन की हार के कारण अनन्त कुख्याति(बदनामी) प्राप्त की।
शिलादित्य भी "छड़ी पर गाजर विश्वासघात" पे गिर गया, जिसके द्वारा इब्राहिम लोधी को भी धोखा दिया गया था। शिलादित्य, जो 35,000 पुरुषों के बड़े दल का मालिक, केंद्रीय रैंक में होगा. वह युद्ध के महत्वपूर्ण क्षण में अचानक बाबर के कैम्प में शामिल होगा और इस तरह राणा संघा को धोखे से पराजित करेगा, जो कभी युद्ध में नहीं हारा था.
शिलादित चित्तोर वापस चला गया और राणा को बताया कि युद्ध करना जरूरी है, और बाबर को पराजित करना आसान है।
हसन खान और महमूद लोदी की अफगान टुकड़ी के साथ राजपूत सेना ,1527 में,फतेहपुर सिकरी के पास खानवा में बाबर की सेना से भिड़े. लड़ाई 10 घंटे तक चली और यह बिल्कुल खूनी थी.
लड़ाई के एक महत्वपूर्ण और नियोजित पल में, सिल्हदि और उसके दल के दल-परिवर्तन से राजपूत के सामने की रैंकों में महत्वपूर्ण दरार आ गई और राणा सांगा ने व्यक्तिगत तौर पर संभ्रमित मोर्चे के पुनर्निर्माण करने की कोशिश की पर वो गंभीर रूप से घायल हुआ और फिर बेहोश हो गया।
राजपूत सेना ने सोचा कि उनका बहादुर राजा मर गया और अचानक अराजकता हो गई. राणा संघा को मारवाड़ से राठौड़ टुकड़ी द्वारा सुरक्षा के लिए ले जाया गया और होश में आने के बाद उसे विश्वासघात और हार का पता चला। लेकिन राणा सागा हार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था,उसने फिरसे सेना खड़ी करके बाबर से फिरसे युद्ध करने का फ़ैसला लिया. उसने बाबर को हराने तक चित्तोर में कदम ना रखने की कसम खाई.
1528 में, वह चंदेरी के मेदिनी राय(जिसपर बाबर ने हमला किया था) की मदद करने गया. लेकिन उसे सिल्हदि के जासूसों ने ज़हर दे दिया और वह अपने कल्पी कैंप में मारा गया. सिल्हदि को मालूम था उसका क्या हश्र होगा अगर वो पकड़ा जाएगा.
ये जानते हुए कि राणा संघा की शराब(वाइन) में ज़हर मिलाया गया था,बाबर ने अचानक शराब पीना छोड़ दिया और वह अफ़ीम का नशेड़ी हो गया. उसने कई शराब की पेटियों को तोड़ने का बड़ा तमाशा बनाया। इस्लाम में शराब पीना हराम(मना) है.अफ़ीम से बर्बाद बाबर,दिसंबर 1530 में मर गया और उसका बेटा हुमायूँ उसका उत्तराधिकारी बना.
बाबर ने लिखित में निर्देश दिए थे कि उसे काबुल में दफन किया जाय. थोड़े समय के लिए, ताजमहल के स्थल के सामने आगरा के अराम बाग में उसका शरीर रखा गया था।
1543 में, उसके अवशेष काबुल में अपने अंतिम विश्राम स्थान तक पहुचाए गए, जिस जगह को उसने खुद चुना था ..बाबर के गार्डन, जिसे बाग-ए-बाबर कहा जाता है, काबुल, अफगानिस्तान में एक ऐतिहासिक पार्क है और उसके अंतिम विश्राम स्थान पर भी है।
दिल्ली के मार्ग पर, बाबर ने सिंध प्रांत के समृद्ध शहर मुल्तान को तबाह कर दिया था.
बहुत खून-ख़राबा हुआ और हज़ारों पे तलवारें चलीं. गुरू नानक ने अपने प्रचार पर्यटन के तीसरे भाग के लिए (बाबर के हमले से पहले) मुल्तान शहर पहुचे थे.
शहर की बर्बादी के दौरान, गुरु नानक को एक जेल में डाला गया और आक्रमणकारियों की सेना ने उन्हें चक्की पीसने का काम(मकई) दिया.
जल्द ही बाबर के गार्ड ने उसे बताया कि जेल में एक पवित्र बाबा है. बाबर ने गुरु नानक के साथ एक बैठक की और वह उनके मक्का,अल्लाह और इस्लामिक ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ.
ऊपर: बाबर के पास एक प्रशिक्षित बाज़ था जो संदेश भेज सकता था और सेना की गतिविधिका का संकेत दे सकता था.
उसने नानक को आज़ाद कर दिया क्यूंकी उसे लगा की उन्हें जैल में रखना अपशकुन होगा. यह घटना गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज की गई है, और अध्याय को बाबर वाणी कहा जाता है। गुरु नानक ने पंजाब में बाबर और उसके लोगों के अत्याचारों का वर्णन किया।
विकिपीडिया और पश्चिमी इतिहासकारों ने इस क्रूर तानाशाह को एक महान, धर्मनिरपेक्ष, काव्य, दयालु, कला का प्रेमी,वग़ैरह-वग़ैरह के रूप में वर्णित किया है.
मैं उस समय के गवाह 'गुरु नानक' पे विश्वास करना चाहूँगा. सैदपुर में बाबर की क्रूरता से गुरू नानक बड़े विचलित हुए थे। उन्होंने हिंदुओं के दुखों का वर्णन किया। गुरु नानक के शब्दों में बाबर की खूनी वाली सेना "पाप की दुल्हन जुलूस" थी.
बाबर ने उन हिंदुओं को छोड़ दिया जो इस्लाम में परिवर्तित हुए। उसने इन 'परिवर्तित मुसलमानों' को संपत्ति दिया. बाबर ने हर हिंदू मंदिर को नष्ट कर दिया। बाबर खुद 'गाजी' बन गया, जो इस्लामी शब्दावली में सकारात्मक माना जाता है और इसका मतलब है "एक मुसलमान जिसने जिसने काफिर को मार डाला हो".
इस तरह के व्यक्ति को स्वर्ग की "सुंदर महिलाओं, शराब और मधु की नदियों" की गारंटी दी जाती है। बाबर को गैर-विश्वासियों के सिर कटके उनके बनाने का अजीब शैतानी जुनून था। जिस किसी ने इस तरह के एक स्तंभ को देखा, वह निश्चित रूप से इस्लाम में परिवर्तित हो गया।
अब कोहिनूर हीरे के बारे में --
बाबर को खबर मिली की आगरा के किले में विशाल खजाना है,जिसमें एक बड़ा हीरा शामिल था जो सभी विवरण को के परे था. उसे बताया गया कि इसका आकार, रंग और चमक तुलना से परे है. हुमायूं ने धोखे से आगरा में कोहिनूर हीरा दबोच लिया. उसने ग्वालियर के राजा की पत्नी को बोला,"तुम मुझे चमकीला पत्थर दो और फिर तुम्हारा पति बख्शा जाएगा".
आगमन पर, आगरा में बाबर को शानदार हीरे के साथ प्रस्तुत किया गया था।
बाबर ने इसकी कीमत पूरे विश्व के लिए ढाई दिन के भोजन जितना बताया. कहा जाता है कि उस समय उसका वजन 789 कैरेट या लगभग छह ट्रॉय औंस था।
उसकी मृत्यु के बाद, अपने पुत्र हुमायूं और बाद में मुघल शासकों की अगली पीढ़ी के लिए कीमती पत्थर पारित कर दिया गया था, जिसमें ताजमहल के निर्माता शाह जेहां भी शामिल थे, जिन्होंने अपने प्रसिद्ध मयूर सिंहासन पे इसे मोर की आँख के रूप में रखा था.
शाहजहां की मृत्यु के बाद, कोहिनूर हीरा उसके बेटे औरंगजेब को मिला. जब उसके कब्जे में था,तब इसे टॅवर्नियर को दिखाया गया- जो एक उद्यमी फ्रांसीसी यात्री था,जो दुर्लभ और अद्भुत रत्नों की तलाश में पूर्व में यात्रा कर रहा था.
टॅवर्नियर ने दुनिया में पहली बार कोहिनूर हीरे का स्केच बनाया. औरंगजेब को वेनिस के हॉर्टेंसियो बोरगियो(Hortensio Borgio) ने बेवकूफ़ बनाया, जिसने हीरों को फिर से कटने और "सूरज की तरह चमकीला" करने का वायदा किया. जब पत्थर को औरंगज़ेब के पास वापिस दिया गया, तो वह यह जानकर चौंक गया कि 789 कैरेट का पत्थर 280 कैरेट तक घटा दिया गया है.
औरंगज़ेब इतना क्रोधित हो गया, कि उसने पैसा देने से इनकार कर दिया। यह देखते हुए कि बोर्गियो ने हीरे का एक टुकड़ा चुरा लिया, उसने थोड़े समय के लिए उसे कैद कर दिया लेकिन उसे जान से नहीं मारा.
मोहम्मद शाह(1719-1748) हीरे को अपनी पगड़ी में ले जाया करता था. इसकी जानकारी कुछ ही लोगों को थी जिनमें से एक हरेम(स्त्रीघर) का हिजड़ा भी था. नादिर शाह के पक्ष को खुश करने के लिए, उस नमकहराम हिजड़े ने नादिर के कानों में सम्राट के रहस्य को फुसफुसाया और नदिर शाह ने बदले में मुहम्मद शाह को उसके हीरे से वंचित करने के लिए एक योजना तैयार की। नादिर शाह को वापिस पर्षिया(ईरान) जाने के दिन आ रहे थे. नादिर शाह ने एक भव्य दरबार को आयोजित करने का आदेश दिया, जहां वह मुगल साम्राज्य के नियंत्रण को वापस मुहम्मद शाह को सौंप देगा।
1 मई 1739 को, समारोह के दौरान, उसने राजाओं के बीच पगड़ी के आदान-प्रदान करने की प्राचीन परंपरा को मुहम्मद शाह को याद दिलाया। नादिर शाह ने शब्द और कार्रवाई के बीच विराम के लिए बहुत कम जगह दी, और अपने सिर से पगड़ी को हटा दिया और इसे मुहम्मद शाह के सिर पर रखा, जिससे मोहम्मद को खुद की पगड़ी उतरने के इलावा कोई विकल्प नही था. मुहम्मद शाह ने खुद को समारोह के दौरान इतनी शिष्टता से प्रस्तुत किया की नादिर शाह हैरान रह गाया. क्या कोहिनूर वास्तव में उसकी पगड़ी के नीचे छिपा हुआ था, जैसा कि हिजड़े ने बताया, या फिर यह एक धोखा था?
समारोह के बाद, नादिर शाह अपने कमरे में जाकर जल्दी से पगड़ी खोली जहाँ उसे हीरा मिल गया. उसके आकार, सुंदरता और प्रतिभा देखकर वो पागल जैस हो गया. उसने चिल्लाया "कोहिनूर" जिसको फारसी में "प्रकाश का पहाड़" कहते हैं और इस तरीके से इस हीरे का नाम ये पड़ गया. पर्षिया में लौटने के बाद, नादिर शाह ने अपनी पहुच के भीतर खुद के पास हीरा रखा।
नादीर शाह को जल्द ही हत्या कर दी गई और ये हीरा उसके सक्षम जनरल अहमद शाह अब्दाली के हाथों लग गया, जो फिर अफगानिस्तान का राजा बन गया। 1772 में उसकी मृत्यु के बाद, कोहिनूर हीरा उसके उत्तराधिकारियों(succesors) के हाथों में पारित हो गया।
उसके उत्तराधिकार की लड़ाई में, कोहिनूर उसके बेटे शाह शुजा मिर्जा के पास गया. निरंतर युद्ध के बाद शुजा मिर्जा पराजित किया गया और उसे उसके भाई, महमूद शाह के सहयोगियों द्वारा कैदी बना दिया गया. हालांकि, पकड़े जाने से पहले, उसने अपने परिवार को महाराजा रणजीत सिंह(1801-1839) के पास शरण लेने के लिए पंजाब भेज दिया। शुजा मिर्जा की पत्नी वफा बेगम, कोहिनूर हीरे को अपने साथ लाहौर ले गयी.
वफा बेगम बहुत परेशान हो गए जब उसने अपने पति की बुरी खबर सुनी. उसने रंजीत सिंह को दूत भेजे और उन्हें अपने पति को रिहा करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और उनकी मदद के लिए उन्हें कोहिनूर हीरा देने का भी वादा किया। रंजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ लड़ाई की और शाह शुजा को रिहा करवा दिया. कोहिनूर हीरा मिलने के बाद, रणजीत सिंह की पगड़ी में यह बेशकीमती गहने फिट कर दिया गया. बाद में उन्होंने इसे अपने आर्मलेट में सिल दिया, जो वह सभी महत्वपूर्ण राज्य अवसरों पर पहनते थे. यह हीरा उनके पास बीस साल तक रहा।
रंजीत सिंह की 1839 में मृत्यु से पहले, उनके पुजारियों ने उन्हें हीरे को जगन्नाथ मंदिर में दान करने को कहा. जाहिर है वह सहमत हो गया, लेकिन इस समय तक वह बोलने में असमर्थ था और शाही खजाने के रक्षक ने पत्थर को छोड़ने से मना कर दिया, इस आधार पर कि उन्हें ऐसा आदेश नहीं मिला है.
1849 में, कोहिनूर को 11 साल के राजा दुलीप सिंग ने क्वीन विक्टोरीया को सौप दिया जब वो निर्वासन में था.
दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध(1848–49) के अंत में संधि की शर्तों में यह उल्लेख किया गया था: "कोह-इनूर नामक मणि, जिसे महाराजा रंजीत सिंह द्वारा शाह शुजा-उल-मुल्क से लिया गया था,यह लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैंड की महारानी को समर्पण किया जाएगा.
जॉन लॉरेंस, कोलोनियल प्रशासक ने इसे अपनी कोट की जेब में डाल दिया और इसके बारे में भूल गया। जब पुरस्कार के बारे में पूछा गया तो लॉरेंस को पता नहीं था कि यह कहां है. घर भागकर उसने अपने नौकर से पूछा- जिसने कहा हाँ, उसे एक छोटा से बॉक्स मिल गया, जिसमें उसके मालिक के कांच का एक टुकड़ा था!
प्रसिद्ध हीरा प्राप्त करने के बाद, गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी ने तुरंत कोहिनूर को इंग्लैंड भेज दिया. जमीन और समुद्री मार्गों पर इस हीरे का विशेष रूप से ख्याल रखा गया.
6 अप्रैल 1850 को, कोहिनूर ने जहाज़ एचएमएस मेडीया पर भारत को छोड़ दिया. रहस्य में लिपटे जाने से इसका पता जहाज़ मेडिया के कप्तान को भी नहीं था.
3 जुलाई को बकिंघम पैलेस में आयोजित एक निजी समारोह में ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक रोथसचाइल्ड ने स्वयं ये हीरा रानी विक्टोरिया को सौंप दिया. कोह-ए-नूर को अपने माउंट से हटा दिया गया और इसका वजन, क्वीन के जौहरी की गणना के अनुसार 186 कैरेट था। ऐसा लगता है कि इस मणि को इंग्लैंड पहुंचने से पहले एक बार फिर से कटा गया था.
जब यह क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शित किया गया, तब जनता मुघल-स्टाइल-कट से निराश हो गई क्यूंकी वे शानदार-कट देखने के आदी थे. रानी ने महल में अन्य लोगों के साथ, फैसला किया कि हीरे की प्रतिभा को काटकर बढ़ाया जाएगा.
कोहिनूर के पुनर्निर्माण में केवल 38 दिन और 8000 पाउंड की लागत आई ; अंतिम परिणाम 108.93 कैरेट वजनी अंडाकार(oval) था। प्रयासों के बावजूद, परिणाम सबसे दुर्भाग्यपूर्ण थे, क्योंकि हीरे का वज़न कम हो गया और इसे अपने सभी ऐतिहासिक और खनिज मूल्यों से वंचित कर दिया गया. कोहिनूर हीरा, हालांकि, अपने मूल रहस्यों में वैसा ही है.
1992 में, 'ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स एंड रेगेलिया' पर 'एचएम स्टेशनरी कार्यालय प्रकाशन' ने कोह-ई-नूर का संशोधित वज़न 105.602 कैरेट बताया और पहले से प्रकाशित 108.93-कैरेट आंकड़ा ग़लत बताया. पत्थर मापने के बाद 36.00 × 31.90 × 13.04 मिमी का पाया गया और इसे महारानी एलिजाबेथ के लिए बनाए गए मुकुट के सामने माल्टीज़ क्रॉस में सेट किया गया है।
एलिजाबेथ (वर्तमान रानी एलिजाबेथ 2 की मां) बहुत ही चतुराई और लोहे की इच्छा से सभी मामलों का प्रबंधन किया करती थी.
वैसे, भगवान कृष्ण ने कोहिनूर हीरे को स्यमन्तकम नाम दिया और यह केवल देवताओं या हार्मनी में महिलाओं द्वारा पहना जा सकता था।
अँग्रेज़ों को ये मालूम नही है की स्यमन्तकम के श्राप के कारण उनके साम्राज्य का पतन हो गया और उनके लोगों की मानसिक स्थिति भी बिगड़ गई(मैड काउ बीमारी).
ऐसे महान पत्थर खनन नहीं किए जा सकते हैं बल्कि नदी के किनारे प्राकृतिक अवस्था में पाए जाते हैं। 6100 साल पहले एक गुलाम ने ये हीरा भगवान कृष्ण से चुरा लिया था जब वह सो रहे थे. कृष्णा ने इसे अपने पिताजी जाम्बवान से दहेज में प्राप्त किया था।
दुनिया में 150 साल पहले तक भारत ही हीरों का एकमात्र स्रोत/ source था.
आज, कोह-ई-नूर को लंदन के टॉवर के "ज्वेल हाउस" के तहखाने में एक गोल ग्लास में ब्रिटिश क्राउन के अन्य मूल्यवान वस्तुओं के साथ रखा गया है।
अब कुछ बाबर के हिजड़ों के बारे में;
बाबर के ज़्यादातर गुलाम हिजड़े थे. उसके हरेम में एक हज़ार से ज़्यादा सुंदर महिलाएँ थी. उसने कई सुंदर लड़कों को पकड़कर उनकी गोटी काटकर उन्हें हिजड़ा बना दिया.
हिजड़े हरेम के गार्ड और अभिभावक थे.
वे हरेम में महिलाओं की सेवा भी करते थे. उनका पदानुक्रमित(hierarchical) ढाँचा था.वरिष्ठ हिजड़ों को नज़ीर और ख्वाजा सारस कहा जाता था. उनमें से हर एक के नीचे कई जूनियर हिजड़े थे.
नए सुल्तान के आने के बाद पुराने गुलामों को ख़त्म कर दिया जाता था और सुल्तान नए हिजड़े चुनता था. उन्हें महिलाओं की गतिविधियों पर एक बाज़ की आंखें जैसी नज़र बनाए रखना पड़ता था ताकि वे किसी असली आदमी के साथ मानसिक संभोग ना कर सकें।
लेकिन ये हिजड़े अपनी खुद की मिस्ट्रस के रहस्यों की रक्षा करते थे. वे हरेम में उनके लिए मर्द,ड्रग्स,शराब की तस्करी करते थे. ऐसी नाजुक और खतरनाक सेवाओं के बदले में वे कुछ भी प्राप्त कर सकते थे, क्योंकि वे ग्राहक महिलाओं को ब्लैकमेल कर सकते थे।
बदले में, हरेम की सेक्स-की-भूखी महिलाएँ हिजड़ों को उनकी क्षमता के अनुसार मज़े लेने देती थीं. आहा!
जब कोई पुरुष हिजड़ा बन जाता है तो उसकी मर्दानगी और आत्म-निष्ठा ख़त्म हो जाती है और वह वफ़ादार दासी बन जाता है--यह फ़र्क नहीं पड़ता की उसकी वफ़ादारी मजबूरी के कारण हुई.
तो हिजड़े बनाने की प्रथा मुस्लिम राज में चलती रही. कुछ समलैंगिक मुस्लिम राजा लड़की नहीं बल्कि हिजड़े से सेवा लेते थे.
औरंगज़ेब ने इस घिनौनी प्रथा पे रोक लगा दी.
अब अद्भुत ताजमहल के बारे में (अंदर अजीब है, उपेक्षित और ब्रिक्ड्ड किया गया)
जब पर्यटक ताजमहल में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें पूरे ढांचे के बहुत छोटे हिस्से में प्रवेश करने की अनुमति होती है। यहाँ एक मुस्लिम रानी (शाहजहां की पत्नी) की कब्र है। लेकिन इससे पहले यह एक आलीशान राजपूत महल था.
कुछ तस्वीरें देखो,खुद महसूस करके अपने अंदर रखो
हमले के समय ख़ज़ाना छुपाने के लिए कुआँ
ताजमहल के अंदर के ईंट के कमरे. एक कब्र के मकबरे में इतने बड़े कमरों की क्या आवश्यकता है?
नीचे,भागने का रस्ता
नीचे दी गई प्रस्तुतियां इस्लामिक नहीं बल्कि हिंदू हैं
इस्लाम का एक हिंदू कलश(नारियल) से कोई
लेना-देना है --एक शिखर जो गुंबद के ऊपर है
लता और लोटस (केंद्र) एक हिंदू आकृति है
यह ओम मार्बल पे है!
एक मक़बरे में इतने कमरे और दर्जनों टाय्लेट की क्या ज़रूरत है?
एक इस्लामी मकबरा दक्षिण का सामना क्यों कर रहा है?
नीचे: बाराबर गुफाएं भारत .... प्रवेश आर्च शैली अफगान, तुर्की या मुगल नहीं है - यह शुद्ध भारतीय है. ई. एम. फॉर्स्टर ने अपनी किताब "अ पैसेज टू इंडिया" में बकवास लिखा था की यह गुफा 300 ईसा पूर्व(2300 साल पहले) में खोदी गई थी. इस गुफा का वर्णन महाभारत में गोरातगिरी नाम से किया गया है.
ज्ञानवापी मस्जिद - वास्तविक काशी विश्वनाथ मंदिर
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कॉमेंट
कॅप्टन अजीत वाडकायिल , 21 मार्च, 2017 को 8:43 बजे
चेतावनी - अयोध्या बाबरी मसला - चेतावनी ......
1947 तक बाबरी एक शिया मस्जिद था.
आज सुन्नी इसमे क्यूँ कूद गए हैं?
राम मंदिर तोड़ने के बाद, शिया मुस्लिम मीर बाकी ताशक़ांडी(अवध का गवर्नर) 1528 में बाबरी मस्जिद पे इबादत करने वाला पहला मुसलमान था.
1940 के दशक से पहले, इसे मस्जिद-ए-जन्मस्थान ("जन्मस्थान का मस्जिद") कहा जाता था. अफीशियल रिकॉर्ड और दस्तावेजों में भी यही नाम इस्तेमाल किया जाता था.
शिया मुस्लिमों ने मस्जिद के 'सुन्नी ओनरशिप' पर विवाद किया और दावा किया कि यह साइट उनकी थी क्योंकि मीर बाकी एक शिया था ... बाबर भी शीया था ...
सुन्नियों ने मुगल सम्राट के लिए नमाज-ए-जनाज़ा की पेशकश नहीं की ... शाहजहां एक शिया था और ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार उन्हें शीया तौर-तरीकों से दफनाया गया। रानी.... मुमताज महल भी शीआ थी...
ताजमहल के मीनारों पर हथेली के संकेत हैं, जो मोहर्रम शोक में अलाम जुलूस के दौरान शिया द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं ......
बाबरी में सुअर(वराहा) की मूर्ति मिलने के बाद से ही मुसलमानों(शिया और सुन्नी दोनो) ने वहाँ पर नमाज़ पड़ना छोड़ दिया.
ये साफ है की मुसलमान 'हिंदुओं के मक्का' के लिए बड़ा दिल नहीं दिखाएँगे.
कोरिया ने अयोध्या और राम मन्दिर को स्वीकार किया है, लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट और नास्तिक, हिंदू इतिहास का मज़ाक उड़ते हैं...
नीचे वाला पोस्ट पड़ो:-
ajitvadakayil.blogspot.com/2012/07/korean-brahmins-kim-hae-clan-capt-ajit.html
Captain Ajit Vadakayil
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मुसलमान मक्का क्यूँ जाते हैं
मैक्का के दक्षिण-ईस्ट कॉर्नर पर एक काले शिव लिंग का पत्थर, 5 फीट भूगोल के ऊपर को चूमने(का प्रयास) के लिए जाते हैं --फिर भी वे दावा करते हैं कि वे मूर्ति-पूजन नहीं करते.
ये काला METEORITE पत्थर दशकों पहले चोरी किया गया था-और आज तक इसका कोई रीप्लेस्मेंट नहीं पाया गया है.
यह वर्तमान पत्थर 'काला PUMICE टुकड़ा' और काले सीमेंट का मिश्रण है. पीयुमैस पानी में फ्लोट करता है.
शिव लिंग स्टील जितना भारी होता है .
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2009/07/vedic-practises-in-mecca-ajit-vadakayil.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/11/the-sack-of-somnath-temple-by-mahmud-of.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2015/09/sanatana-dharma-hinduism-exhumed-and_30.html
कोई मुसलमान अगर कहे की वो पैगंबर मोहम्मद के दरगाह में जाना चाहता है, तो वह "गुप्त-यहूदी" अल सौउद तानाशाही के द्वारा मारा जाएगा और मिट्टी में दफ़नाया जाएगा..
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2015/09/sanatana-dharma-hinduism-exhumed-and_30.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2015/05/lawrence-of-arabia-part-3-crypto-jewish.html
CAPT Ajit Vadakayil.
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https://timesofindia.indiatimes.com/india/friday-first-woman-who-led-prayer-in-kerala-faces-backlash/articleshow/62677491.cms
मुसलमानों को ये मालूम होना चाहिए-
या तो तुम मोहम्मद के तरीके से नमाज़ पड़ो या फिर बिल्कुल भी इबादत मत करो-- "गुप्त-यहूदी मुल्ला" तुम्हे ग़लत तरीके बता रहे हैं.
पहला अज़ान 'नौरमल गोधूलि(TWILIGHT) स्टार्ट टाइम' के पहले नहीं होना चाहिए (सूर्य का केन्द्र होराइज़न से छह डिग्री नीचे होना चाहिए).
भारत में, हम सुबह सूर्योदय से 75 मिनट पहले फज्र अज़ान को सुनते हैं..कोरान में इसकी अनुमति नहीं है.
पहला अज़ान सूर्योदय के 48 मिनट पहले से पहले नहीं हो सकता.
दूसरा अज़ान ज़ोहार(दुहृ) शांति से होता है - जब सूरज अपने उँची बिंदु पर होता है और उसका azimuth उत्तर या दक्षिण में होता हैं.
चौथा जोरदार अज़ान मघृब सूर्यास्त के तुरंत बाद होता है.
तीसरा अज़ान अस्र ,शांति से होता है--अस्र इबादत तब तक की जा सकती है जब तक सूरज उज्ज्वल हो या दिन में आदमी इबादत करके 6 मील दूर तक जा सकता हो.
आखरी अज़ान ईशा ज़ोर का होता है---और इसे शाम के गोधूलि/twilight खत्म होने के बाद ही शुरू किया जाना चाहिए--जब सूरज होराइज़न के 6 डिग्री नीचे हो.
गोधूलि ऊपरी वायुमंडल में सूर्य के प्रकाश बिखरने से उत्पन्न होता है,यह निचले वातावरण को रोशन करता है ताकि पृथ्वी की सतह पूरी तरह उजाला न हो और पूरी तरह से अंधेरा बजी ना हो।
ये हास्यास्पद है की एक हिंदू ब्लॉग-लेखक को ये सब बताना पड़ रहा है.
असली कोरान कोडूनगल्लूर(केरल) के चेरामन पेरूमल मस्जिद में लिखी गई थी. फ्रेंच रोत्सचाइल्ड के भाड़े के सिपाहियों ने इसे जलाने की कोशिश की-पर वे कामयाब नहीं हो पाए.
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/01/mansa-musa-king-of-mali-and-sri.html
कृपा और शांति.
कॅप्टन अजीत वाडकायिल
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